3 साल के बच्चे की हालत गंभीर, लिवर ट्रांसप्लांट की जरूरत; अब परिवार SC से लगा रहा गुहार

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में याचिका दायर कर प्रवासी भारतीय नागरिकों को परिवार के सदस्यों को अंग दान करने और प्राप्त करने की अनुमति देने के लिए संशोधन की मांग की गई है.

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सु्प्रीम कोर्ट में तीन साल के बच्चे के लिवर ट्रांसप्लांट का मामला
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  • सुप्रीम कोर्ट में 3 साल के बच्चे के लिवर ट्रांसप्लांट का केस
  • अदालत में अंग प्रत्यारोपण और दान नियमों को चुनौती
  • परिवार ने कोर्ट से लगाई नियमों में संशोधन की गुहार
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नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट एक तीन साल के बच्चे के लिवर ट्रांसप्लांट (Supreme Court On Liver Transplant) के मामले पर सुनवाई कर रहा है. कोर्ट ने प्राधिकरण समिति से मामले पर रिपोर्ट मांगी है. अदालत में इस मामले पर दोपहर को 2 बजे सुनवाई होगी. दरअसल सुप्रीम कोर्ट 3 साल के एक बच्चे के माता-पिता की याचिका पर सुनवाई कर रहा है, जो गंभीर अवस्था में है और उसे लिवर ट्रांसप्लांट की जरूरत है. याचिका में वर्तमान अंग प्रत्यारोपण और दान नियमों को चुनौती दी गई है, जो भारत के निवासी नहीं होने वाले व्यक्ति को भारत में परिवार के किसी सदस्य से इलाज और अंग दान प्राप्त करने से रोकता है. याचिकाकर्ता अमेरिकी नागरिक हैं.

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अदालत में बच्चे के लिवर ट्रांसप्लांट का मामला

याचिका में प्रवासी भारतीय नागरिकों को परिवार के सदस्यों को अंग दान करने और प्राप्त करने की अनुमति देने के लिए संशोधन की मांग की गई है. अंगदान प्राधिकरण समिति के उस फैसले को भी चुनौती दी गई है, जिसमें अंगदान की मंजूरी देने से इनकार कर दिया गया था, क्योंकि प्रस्तावित दाता मरीज का चचेरा भाई है और "निकट परिवार" की परिभाषा में नहीं आता है. जब कि अंगदान माता-पिता जीवनसाथी, बच्चे और भाई-बहन ही कर सकते हैं. लिवर की बीमारी से जूझ रहे तीन साल के बच्चे और उसके माता-पिता के पास  OIC कार्ड है और बच्चा फरवरी से भारत में है.

चचेरा भाई दे रहा लिवर कोर्ट की परमिशन की जरूरत

 याचिकाकर्ता के लिए वकील गोपाल शंकरनारायणन ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि नियम में एक वैधानिक रोक है. प्रस्तावित लिवर देने वाला मरीज़ का चचेरा भाई है और "निकट परिवार" की परिभाषा में नहीं आता है. मौजूदा कानून के अनुसार केवल "परिवार का करीबी सदस्य" ही दाता हो सकता है. क्यों कि इस पर पूरी तरह से रोक है, इसलिए अदालत अनुच्छेद 142 लागू कर सकती है. वकील ने कहा कि हमारे पास कोई अन्य विकल्प नहीं है. दरअसल अनुच्छेद 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते हुए ऐसा आदेश दे सकता है जो उसके समक्ष लंबित किसी मामले या मामले में पूर्ण न्याय करने के लिए आवश्यक हो.

जिंदगी का सवाल है तो मामले को जरूर देखेंगे-कोर्ट

जस्टिस पीएस नरसिम्हा ने कहा कि जब वैधानिक रोक है तो यह अनुच्छेद 142 का मामला नहीं है. किसी क़ानून का उल्लंघन नहीं किया जा सकता. लेकिन अदालत ने कहा क्यों कि यह जिंदगी का सवाल है तो वह जरूर देखेंगे कि मामले में क्या हो सकता है. कोर्ट सुनवाई के दौरान ही इस पर फोई फैसला लेगा.
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