श्रद्धा मर्डर मामले (Shraddha Murder) में आरोपी आफताब पूनावाला का अब नार्को टेस्ट होगा. अदालत ने इसकी इजाजत दी है. श्रद्धा की हत्या के बाद उसके शव के टुकड़े-टुकड़े करने के आरोपी आफताब अमीन पूनावाला की नार्को जांच से जांचकर्ताओं को ठोस जानकारियां मिलने में मदद मिल सकती हैं, लेकिन इस तरह की जांच में हमेशा चौंकाने वाले खुलासे नहीं हुए हैं. ऐसे कई बड़े मामले हैं, जिनमें नार्को टेस्ट किया गया. ऐसे मामलों में नार्को टेस्ट कितना कामयाब रहा, आइए जानते हैं.
पूर्व में अहम मामलों की जांच में नार्को जांच की भूमिका इस प्रकार है :
(1) अब्दुल करीम तेलगी फर्जी स्टांप पेपर घोटाला :
महाराष्ट्र की राजनीति में स्टांप पेपर रैकेट की तरह बहुत कम घोटाले ऐसे हुए हैं जिसने इतना बड़ा तूफान पैदा किया हो. इस रैकेट के सरगना अब्दुल करीम ने नार्को जांच के दौरान आरोप लगाया था कि तत्कालीन केंद्रीय मंत्री राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के प्रमुख शरद पवार और राज्य के पूर्व उपमुख्यमंत्री छगन भुगबल ने उससे पैसे लिए थे.
हालांकि, नार्को जांच का तब कोई मतलब नहीं रह गया था जब तेलगी ने एक मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष दर्ज कराए बयान में पवार या भुजबल में से किसी का कोई जिक्र नहीं किया था.
(2) 26/11 मुंबई आतंकवादी हमले के मामला :
मुंबई आतंकवादी हमले के आरोपी अजमल कसाब की जांच के दौरान कबूल की गयी सभी बातों की पुष्टि करने तथा पाकिस्तान सरजमीं से रची गयी इस साजिश के बारे में और जानकारी जुटाने के लिए नार्को जांच की गई.
कसाब ने प्रतिबंधित लश्कर-ए-तैयबा आतंकी समूह से मिले प्रशिक्षण तथा अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि समेत मुंबई आतंकवादी हमले की योजना की कई जानकारियां उपलब्ध कराई थी.
उसकी नार्कों जांच से गरीब पुरुषों तथा उनके परिवारों का ‘ब्रेनवॉश' करने में आतंकी समूह द्वारा इस्तेमाल प्रोपेगैंडा के अलावा लश्कर के संस्थापक हाफिज सईद समेत हमले के मास्टरमाइंड की कई जानकारियां मिली.
3) आरुषि तलवार हत्या मामला :
केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो को आरूषि के माता-पिता नुपुर और राजेश तलवार की नार्को जांच से ऐसा कुछ हाथ नहीं लगा था जिससे किशोरी के हत्या मामले को सुलझाने में जांचकर्ताओं को मदद मिल पाती.
जांच एजेंसी ने 2010 में दंपति तथा अन्य लोगों की नार्को जांच की थी जबकि उसने 2009 में तलवार दंपति की ‘ब्रैन मैपिंग' और ‘लाइ डिटेक्टर' जांच भी की थी.
दंत चिकित्सक दंपति को 15-16 मई 2008 की मध्यरात्रि को अपनी 14 साल की बेटी आरुषि तथा घरेलू सहायक हेमराज की हत्या करने का दोषी पाया गया और उन्हें मौत की सजा सुनाई गई थी. सीबीआई के पहले दल को संदेह था कि नौकर ने अपराध को अंजाम दिया होगा लेकिन तत्कालीन सीबीआई निदेशक अश्वनी कुमार सबूतों के अभाव के कारण इससे सहमत नहीं थे.
दूसरे दल ने घटनाक्रम का हवाला देते हुए क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की थी जिसमें तलवार की भूमिका की ओर इशारा किया गया था लेकिन इसमें उनकी संलिप्तता के संबंध में कोई फॉरेंसिक सबूत पेश नहीं किया था.
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