एक साल से लंबित है चुनावी बॉन्ड पर रोक वाली याचिका, जल्द सुनवाई की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने कही यह बात

चुनावी बॉन्ड पर रोक लगाने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट से जल्द सुनवाई की मांग की गई है. वहीं चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) श्री एन. वी. रमन्ना ने कहा है कि जल्द सुनवाई पर विचार करेंगे.

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अगर कोविड ना होता तो हम सुन लेते, हम मामले की जल्द सुनवाई पर विचार करेंगे: CJI
नई दिल्ली:

चुनावी बॉन्ड पर रोक लगाने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट से जल्द सुनवाई की मांग की गई है. वहीं चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) श्री एन. वी. रमन्ना ने कहा है कि जल्द सुनवाई पर विचार करेंगे. याचिकाकर्ता की ओर से प्रशांत भूषण ने अदालत को बताया कि ये याचिका पिछले साल से लंबित है. एक अखबार में खबर है कि कोलकाता की एक कंपनी ने 40 करोड़ रुपये के बॉन्ड दिए हैं. ताकि एक्साईज की रेड से बच सके. CJI एन वी रमन्ना ने कहा कि अगर कोविड ना होता तो हम सुन लेते. हम मामले की जल्द सुनवाई पर विचार करेंगे. इससे पहले मार्च 2021 में  सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था और इस संबंध में दाखिल की गई याचिका खारिज कर दी थी. 

कोर्ट ने कहा कि ये योजना 2018 में लागू हुई और चल भी रही है. वहीं, इसके लिए सुरक्षा उपाय भी किए गए हैं. पश्चिम पश्चिम बंगाल समेत अन्य राज्यों में चुनाव के दौरान चुनावी बॉन्ड पर रोक लगाने वाली अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट का शुक्रवार को यह फैसला आया है. इस मामले पर 24 मार्च को कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रखा था.

सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि वो चुनावी बांड योजना का समर्थन करते हैं. क्योंकि अगर ये नही होगा तो राजनितिक पार्टियों को चंदा नगद मिलेगा. आयोग ने कहा कि हालांकि वो चुनावी बांड योजना में और पारदर्शिता चाहता है. ADR की ओर से दाखिल याचिका पर प्रशांत भूषण ने कहा था,  'इलेक्टोरल बॉन्ड्स तो सत्ताधारी दल को चंदे के नाम पर रिश्वत देकर अपने काम कराने का जरिया बन गया है.' इस पर सुप्रीम कोर्ट ने अहम टिप्पणी की कि हमेशा यह रिश्वत का चंदा सत्ताधारी दल को ही नहीं बल्कि उस दल को भी चंदा मिलता है, जिसके अगली बार सत्ता में आने के आसार प्रबल रहते हैं. 

भूषण ने कहा कि 'रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने भी इस पर अपनी आपत्ति दर्ज कराई है. क्योंकि आरबीआई का कहना है कि ये बॉन्ड्स का सिस्टम तो एक तरह का हथियार औजार या जरिया है, आर्थिक घपले का. कई लोग देश विदेशो में पैसे इकट्ठा कर औने पौने इलेक्टोरल बॉन्ड्स खरीद सकते हैं. यह दरअसल सरकारों के काले धन के खिलाफ कथित मुहिम की सच्चाई बयान करता है बल्कि उनकी साख पर भी सवाल खड़े करता है.'

दरअसल सुप्रीम कोर्ट में एक अर्जी दाखिल कर केंद्र और अन्य पक्षों को यह निर्देश देने का अनुरोध किया गया था कि चुनावी बॉन्ड की आगे और बिक्री की अनुमति नहीं दी जाए. याचिका में कहा गया था कि राजनीतिक दलों की फंडिंग और उनके खातों में पारदर्शिता की कथित कमी से संबंधित एक मामले का निपटारा होने के बाद ही बॉन्ड की बिक्री की अनुमति हो.

लंबित याचिका में एनजीओ की ओर से दाखिल आवेदन में दावा किया गया कि इस बात की गंभीर आशंका है कि पश्चिम बंगाल और असम समेत कुछ राज्यों में आगामी विधानसभा चुनावों से पहले चुनावी बॉन्डों की आगे और बिक्री से ‘मुखौटा कंपनियों के जरिये राजनीतिक दलों का अवैध और गैरकानूनी वित्तपोषण और बढ़ेगा.'

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आरोप लगाया गया कि राजनीतिक दलों द्वारा 2017-18 और 2018-19 के लिए उनकी ऑडिट रिपोर्ट में घोषित चुनावी बॉन्डों के आंकड़ों के अनुसार ‘सत्तारूढ़ दल को आज तक जारी कुल चुनावी बॉन्ड के 60 प्रतिशत से अधिक बॉन्ड प्राप्त हुए थे.' आवेदन में केंद्र को मामला लंबित रहने तक और चुनावी बॉन्ड की बिक्री नहीं होने देने का निर्देश देने की मांग करते हुए दावा किया गया है कि अब तक 6,500 करोड़ रुपये से अधिक के चुनावी बॉन्ड बेचे गये हैं, जिनमें अधिकतर चंदा सत्तारूढ़ पार्टी को गया है.

शीर्ष अदालत ने पिछले साल 20 जनवरी को 2018 की चुनावी बॉन्ड योजना पर अंतरिम रोक लगाने से इनकार कर दिया था और योजना पर रोक लगाने की एनजीओ की अंतरिम अर्जी पर केंद्र तथा चुनाव आयोग से जवाब मांगा था. सरकार ने 2 जनवरी, 2018 को चुनावी बॉन्ड योजना की अधिसूचना जारी की थी.

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