"फिर क्‍यों होती है हिन्दू-मुस्लिम की...", बिहार में जातिगत सर्वे को चुनौती देती अर्ज़ी SC द्वारा स्वीकार करने पर डिप्टी CM तेजस्वी यादव

बिहार में जातिगत सर्वे कराने के सरकार के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है. बिहार के उपमुख्‍यमंत्री तेजस्‍वी यादव का कहना है कि ये जातिगत जनगणना नहीं है, कास्‍ट बेस्‍ड सर्वे है. जातीय आधारित जनगणना. इससे तो बजट के मद्देनजर बहुत लाभ होना है.

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पटना. बिहार में जातीय जनगणना को लेकर विवाद थमता नजर नहीं आ रहा है. इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में भी याचिका दायर हुई है, जिसपर जल्‍द ही सुनवाई होगी. इस बीच बिहार के उपमुख्‍यमंत्री तेजस्‍वी यादव ने कहा है कि ये जातिगत जनगणना नहीं, बल्कि कास्‍ट बेस्‍ड सर्वे है. राज्‍य सरकार के पास लोक कल्‍याणकारी नीतियों को बनाने के लिए साइंटिफिक डाटा होना बेहद जरूरी है. 
  
तेजस्‍वी यादव से पूछा गया कि क्‍या जातिगत जनगणना गलत है? इस सवाल के जवाब में उन्‍होंने कहा, 'कहां से गलत है? ये जाति आधारित सर्वे है, जातीय आधारित गनगणना. भारत सरकार जनगणना करा सकती है और राज्‍य सरकार नहीं कर सकती. इसीलिए ये जातिगत जनगणना नहीं है, कास्‍ट बेस्‍ड सर्वे है. जातीय आधारित जनगणना. इससे तो बजट के मद्देनजर बहुत लाभ होना है. ये सिर्फ सर्वे ही नहीं है, बल्कि इसमें लोगों की आर्थिक स्थिति क्‍या है, उसकी भी गणना होनी है. इस सर्वे से पता चलेगा कि कौन लोग किस हालात में हैं. जब तक आपके पास साइंटिफिक डाटा नहीं होगा, तब तक आप काम कैसे करेंगे? आप जनता के लिए कल्‍याणकारी योजनाएं कैसे बनाएंगे? इसलिए ये बेहद जरूरी सर्वे है.'' 

तेजस्‍वी ने कहा कि कई राज्‍यों ने पहले ही ऐसा सर्वे कराया है. बिहार में पहली बार ऐसा सर्वे हो रहा है. इससे लोगों को लाभ ही होगा. फिर अगर हमारा ये सर्वे कराना गलत है, तो सबकुछ गलत है. फिर देश में हिंदू और मुसलमानों की गिनती क्‍यों होती है? अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदाय के लोगों की गिनती क्‍यों होती है? जानवरों की गिनती क्‍यों होती है?         

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बिहार निवासी अखिलेश कुमार ने जातीय जनगणना रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है. सुप्रीम कोर्ट मामले की सुनवाई 20 जनवरी को करेगा. याचिका में कहा गया है कि बिहार राज्य की अधिसूचना और फैसला अवैध, मनमाना, तर्कहीन, असंवैधानिक और कानूनी अधिकार के बिना है. भारत का संविधान वर्ण और जाति के आधार पर भेदभाव पर रोक लगाता है. जाति संघर्ष और नस्लीय संघर्ष को खत्म करने के लिए राज्य संवैधानिक दायित्व के अधीन है. अखिलेश कुमार ने याचिका में सवाल उठाया है कि क्या भारत के संविधान ने राज्य सरकार को ये अधिकार दिया है, जिसके तहत वो जातीय आधार पर जनगणना कर सकती है? 

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बिहार के उपमुख्‍यमंत्री ने कहा, "दुनियाभर के देश और सरकारें अपनी योजनाओं, बजट आवंटन, विभिन्न विभागों, उनकी कार्यप्रणाली, मैनपावर, प्रशिक्षण इत्यादि को प्रभावी बनाने और व्यवस्थात्मक सुधार के लिए हर प्रकार के आँकड़े जुटाती है. इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि जाति भारतीय समाज की कड़वी सच्चाई है. चूँकि हमारे देश में आज भी लोग जाति के आधार पर व्यवसाय/रोजगार करते हैं, विवाह करते हैं, ऊंच-नीच और अपने-पराए की भावना रखते हैं. अतः इसका लोगों की मानसिकता, शिक्षा, आय, सामाजिक अथवा आर्थिक स्थिति पर प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है." 

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उन्‍होंने कहा कि यह सब जानते है कि भारतीय समाज में एक व्यक्ति की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक स्थिति व प्रगति में उसकी जाति का असर कमोबेश रहता है. अगर जाति के आधार पर पिछड़ापन आया, तो पिछड़ेपन का निदान भी जाति के आधार पर आँकड़े जुटाकर ही किया जा सकता है. जाति आधारित जनगणना से विभिन्न वर्गों, गरीबों व समूहों की सटीक और समग्र जानकारी उपलब्ध होगी, सटीक योजनाओं को बनाया जा सकेगा, अनुचित व्यय, लीकेज या संसाधनों की बर्बादी को रोका जा सकेगा, वंचित वर्गों को चिन्हित करने से उनके उत्थान के लिए कदम उठाना पहले से कहीं अधिक आसान एवं व्यवस्थित होगा तथा लोगों तक कहीं अधिक प्रभावी ढंग से सरकारी योजनाओं का लाभ पहुँचाया जा सकेगा. 

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तेजस्‍वी यादव ने कहा कि भाजपा राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए ही इस जनहित के कदम के विषय में भ्रम पैदा कर रही है. हमारी पार्टी और राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद दशकों से जातीय जनगणना करवाने के पक्षधर रहे हैं. वह लगातार सड़क से लेकर सदन तक में पुरजोर तरीके से इस मांग को उठाते रहे है. राजद, जेडीयू और सपा ने संयुक्त रूप से तत्कालीन मनमोहन सरकार पर दबाव बनाकर जाति आधारित आंकड़े जुटवाए थे, लेकिन बीजेपी सरकार ने उनको प्रकाशित नहीं होने दिया. बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में हमारी महागठबंधन सरकार जाति आधारित आंकड़े जुटा रही है, तो बीजेपी को पेट में दर्द हो रहा है। ऐसा क्यों हो रहा है यह आप सोचिए?

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