उन्होंने कहा, "यह बहुत ही दुख की बात है कि ऐसे युवाओं की मौत बहुत कम उम्र में हो जाती है. हमें अपने युवाओं को बचाने के लिए गुटखा, खैनी, पान मसाला आदि के खिलाफ आंदोलन चलाने की जरूरत है."
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क्या कहते हैं आंकडे (World Cancer Day: Cancer Statistics)
ग्लोबल एडल्ट तंबाकू सर्वेक्षण 2017 के अनुसार, देश में धूम्रपान (Smoking and Cancer) करने वाले 10.7 फीसदी वयस्क भारतीय (15 वर्ष और उससे अधिक) की तुलना में धूम्रपान धुआं रहित तंबाकू (एसएलटी) का सेवन करने वाले 21.4 फीसदी हैं. इससे त्रिपुरा (48 फीसदी), मणिपुर (47.7 फीसदी), ओडिशा (42.9 फीसदी) और असम (41 फीसदी) सबसे बुरी तरह प्रभावित राज्य हैं, जबकि हिमाचल प्रदेश (3.1 फीसदी), जम्मू और कश्मीर (4.3 फीसदी), पुदुच्चेरी (4.7 फीसदी) और केरल (5.4 फीसदी) सबसे कम प्रभावित राज्य हैं. संबंध हेल्थ फाउंडेशन (एसएचएफ) के ट्रस्टी संजय सेठ ने कहा, "विभिन्न कार्यक्रमों और बड़े आयोजनों में पान मसालों के आकर्षित करने वाले विज्ञापन होते हैं जो तंबाकू उत्पादों के लिए सरोगेट हैं. पियर्स ब्रॉसनन सहित कई हॉलीवुड सितारे टेलीविजन, सिनेमा और यहां तक कि क्रिकेट मैचों में पान मसाले का प्रचार करते हैं."
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कोर्ट के फैसले के बावजूद सेहत को नहीं चुन रहे लोग
Cancer : उन्होंने कहा, "23 सितंबर, 2016 को सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद भी आदेश का पालन बहुत कम हो रहा है. बच्चों को विज्ञापन के आकर्षण से बचाने के लिए राज्य सरकारों को इसे प्रभावी रूप से लागू करना चाहिए." चिकित्सकों का कहना है कि जो महिलाएं गर्भावस्था के दौरान धुआं रहित तंबाकू का सेवन करती हैं, उनमें एनीमिया होने का खतरा 70 फीसदी अधिक होता है. यह कम जन्म के वजन और फिर भी दो-तीन बार जन्म के जोखिम को बढ़ाता है. महिलाओं में धुआं रहित तंबाकू उपयोगकर्ताओं में मुंह के कैंसर का खतरा पुरुषों की तुलना में आठ गुना अधिक होता है. उन्होंने कहा कि इसी तरह धुआं रहित तंबाकू सेवन करने वाली महिलाओं में हृदय रोग का खतरा पुरुषों की तुलना में दो से चार गुना अधिक होता है. इस तरह की महिलाओं में पुरुषों की तुलना में मृत्युदर भी अधिक होती है.
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तंबाकू का सेवन कम कर कैंसर का खतरा कम किया जा सकता है
वॉयस ऑफ टोबैको विक्टिम्स (वीओटीवी) के संरक्षक व मैक्स अस्पताल के कैंसर सर्जन डॉ. हरित चतुर्वेदी ने कहा, "धूम्ररहित तंबाकू के उपयोगकर्ताओं की संख्या बढ़ी है, क्योंकि पहले के तंबाकू विरोधी विज्ञापनों में सिगरेट और बीड़ी की तस्वीरें ही दिखाई जाती थीं. लोगों में धारणा बन गई कि केवल सिगरेट और बीड़ी का सेवन ही हानिकारक है, इसलिए धीरे-धीरे धुआं रहित तंबाकू की खपत बढ़ गई." उन्होंने कहा, "लोग लंबे समय तक तंबाकू चबाते हैं, ताकि निकोटीन रक्त में पहुंचे. इस तरह वे लंबे समय तक बैक्टीरिया के संपर्क में रहते हैं. ऐसे में कैंसर और अन्य बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है."
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