Monkeypox: क्या कोविड की तरह ही फैलता है मंकीपॉक्स, किस तरह की सावधानियां बरतें? डॉक्टर के पास कब जाएं? जानें इसके बारे में सबकुछ

All About Monkeypox: मंकीपॉक्स से जुड़े कुछ सवालों लेकर हमने डॉ. राजिंदर कुमार सिंघल, वरिष्ठ निदेशक और एचओडी, इंटरनल मेडिसिन, बीएलके, दिल्ली से बात की. यहां पढ़ें.

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Monkeypox एक जूनोटिक डिजीज है.

What To Know About Monkeypox: मंकीपॉक्स पर लगातार बात की जा रही है लेकिन पूरी जानकारी अभी भी किसी के पास नहीं है. हर कोई ये जानना चाह रहा है कि मंकीपॉक्स क्या है, क्या मंकीपॉक्स सिर्फ स्किन इंफेक्शन है? मंकीपॉक्स आम स्किन इंफेक्शन से किस तरह अलग है? मंकीपॉक्स का इलाज और बचाव के तरीके क्या है? ऐसे कई सवाल हैं जिनके सही जवाब अभी तक कई लोगों को पता नहीं है. मंकीपॉक्स से जुड़े कुछ सवालों लेकर हमने डॉ. राजिंदर कुमार सिंघल, वरिष्ठ निदेशक और एचओडी, इंटरनल मेडिसिन, बीएलके, दिल्ली से बात की. यहां पढ़ें.

मंकीपॉक्स क्या है?

ये एक जूनोटिक डिजीज है जो खासकर अफ्रीकन देशों में पाई जाती है. इसका अब ह्यूमन टू ह्यूमन ट्रांसमिशन भी हो रहा है. इसमें फीवर, शरीर में दर्द, कफ और स्किन पर रैशेज और चकत्ते हो रहे हैं जो खासकर हाथ, पैर और चेहरे पर होते हैं. उसके बाद मरीज का खाना-पीना कम हो जाता है और सांस की बीमारी भी हो सकती है.

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मंकीपॉक्स के लक्षणों की पहचान कैसे करें?

अगर बॉडी में रैशेज या चकत्ते ज्यादा है और लिंफ नोड्स में सूजन की वजह से गले में गर्दन में ग्लैंड्स फैल गई हैं. चकत्तों में पानी (चिपचिपा पदार्थ) भर गया है तो समझ जाएं की ये मंकीपॉक्स है.

क्या ये एग्जिमा के समान है?

एग्जिमा में इतना फीवर, दर्द और इतने चकत्ते नहीं होते हैं. उसमें ज्यादातर खुजली होती है या चकत्ते होते हैं. एग्जिमा एक एक्यूट फेज की बीमारी नहीं है बल्कि एग्जिमा क्रोनिक होता है. वहीं मंकीपॉक्स में चकत्ते छोटे लेकिन बहुत सारे होते हैं.

मंकीपॉक्स का पता चलने के बाद घर पर किस तरीके की सावधानियां बरतें

ध्यान रखें कि फैमिली मेंबर मंकीपॉक्स पॉजिटिव के संपर्क में न आएं. अपने कपड़े, बेडशीट, तौलिया सब अलग रखें. खांसी या छींक आने पर अपने हाथों से कवर करें. खुद को आइसोलेट करें. अच्छी तरह से हाथ धोएं और जल्द मेडिकल सहायता लें.

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लक्षण दिखने के बाद किस डॉक्टर के पास जाएं?

आप अपने फैमिली फिजिशियन के पास जा सकते हैं. वह आपको देखकर गाइड कर सकते हैं कि ये मंकीपॉक्स के चांस हैं या नहीं.

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क्या मंकीपॉक्स का इलाज उपलब्ध है?

बचाव सबसे ज्यादा जरूरी है. सबसे पहले खुद को आइसोलेट करें. इसके बाद लक्षणों को इलाज किया जाता है. फीवर और स्किन रैशेज, बॉडी पैन के लिए अलग-अलग दवाइयां दी जाती है. इसके साथ ही न्यूट्रिशन का ध्यान रखना, लिक्विड का ज्यादा से ज्यादा सेवन करना चाहिए. ताकि बॉडी को पोषक तत्व मिल सकें और बॉडी खुद इस बीमारी से लड़ने में सक्षम हो. अभी मंकीपॉक्स के लिए कोई दवाई या मेडिसिन उपलब्ध नहीं है.

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हालाकिं वेस्टर्न देशों में जो मेडिसिन दी जा रही हैं उनको भारत में आने अभी समय लगेगा. वे कितनी प्रभावी होंगी ये तो समय के साथ ही पता चल पाएगा. कुलमिलाकर इसके लिए सबसे ज्यादा जरूरी है वैक्सीनेशन, जिसको हर किसी तक पहुंचाने में भी समय लगेगा. अभी सबसे जरूरी काम है कि आप इससे बचाव पर ध्यान दें.

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यह वायरस कितना पुराना है?

मंकीपॉक्स पहले अफ्रीकन देशों में होता था, हालांकि इसके मामले बहुत कम थे. इस बीमारी का इतिहास 1970 से है. पहला मामला जानवरों से ह्यूमन में 1970 में सामने आया था.

पहले के मुकाबले अब कैसे तेजी से फैल रहा है?

विदेशों से एयर ट्रेवल के कारण अब केस ज्यादा आ रहे हैं. इसलिए पिछले 15-29 दिनों में ही केस इतने सारे बढ़ गए हैं कि देखते ही देखते वर्ल्ड में लगभग 27 हजार मामले सामने आ चुके हैं. हालांकि ये थोड़ा स्लो फैलता है लेकिन एक बार संक्रमण हो गया तो इसे रोकने का कोई तरीका नहीं है.

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इंफेक्शन होने के बाद ठीक होने में कितना समय लगता है?

इसको ठीक होने में 3 से 4 हफ्ते लग जाते हैं. जब लक्षण ठीक होने के बाद रोगी आइसोलेशन की स्थिति में आ जाते हैं तो तो तब उनकी केयर घर पर या हॉस्पिटल में की जा सकती है.

मंकीपॉक्स वायरस की लाइफ कितनी होती है?

अभी इस बीमारी की शुरूआत है तो ज्यादा कुछ अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है. ज्यादातर ये बीमारी नजदीकी संपर्क जैसे स्किन टू स्किन कॉन्टैक्ट से फैलती है.

फैमिली में एक के संक्रमित होने पर क्या सभी को टेस्ट कराना चाहिए?

डॉक्टर का कहना है कि जब तक स्किन पर स्किन पर कुछ लक्षण नहीं दिखाई देते तब तक टेस्ट कर पाना मुश्किल है.

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क्या वाकई मंकीपॉक्स यौन संचारित रोग है?

डॉक्टर का कहना है कि ये डिजीज एसटीडी बिल्कुल भी नहीं है. सिर्फ इसमें एक समानता है कि जिन लोगों में एसटीडी होता है उनमें भी मेल टू मेल यौन संपर्क होता है. मंकीपॉक्स के भी ऐसे लोगों में ज्यादा पाए जाने की संभावना है.

(डॉ. राजिंदर कुमार सिंघल, वरिष्ठ निदेशक और एचओडी, इंटरनल मेडिसिन, बीएलके, दिल्ली)

अस्वीकरण: इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं. एनडीटीवी इस लेख की किसी भी जानकारी की सटीकता, पूर्णता, उपयुक्तता या वैधता के लिए ज़िम्मेदार नहीं है. सभी जानकारी यथास्थिति के आधार पर प्रदान की जाती है. लेख में दी गई जानकारी, तथ्य या राय एनडीटीवी के विचारों को नहीं दर्शाती है और एनडीटीवी इसके लिए कोई जिम्मेदारी या दायित्व नहीं लेता है.

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