आपके बच्चे को है कंप्यूटर, मोबाइल की लत तो हो जाएं सावधान! रिसर्च में हुआ चौंकाने वाला खुलासा

आजकल बच्चों का ज्यादा समय मोबाइल, लैपटॉप और टैब को देखने में निकलता है. वो घर से बाहर निकलने और दूसरे लोगों के साथ मिलने और बच्चों के साथ खेलने से ज्यादा घर पर कमरे में बैठ कर मोबाइल चलाना पसंद करते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि उनकी ये आदत उनपर कैसा असर डाल रही है. हाल ही में हुए शोध में इस बात का खुलासा हुआ है.

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आजकल बच्चों का ज्यादा समय मोबाइल, लैपटॉप और टैब को देखने में निकलता है. वो घर से बाहर निकलने और दूसरे लोगों के साथ मिलने और बच्चों के साथ खेलने से ज्यादा घर पर कमरे में बैठ कर मोबाइल चलाना पसंद करते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि उनकी ये आदत उनपर कैसा असर डाल रही है. दरअसल अमेरिका में किए गए एक शोध में पता चला है कि टेक्नोलॉजी और सोशल मीडिया पर ज्यादा समय बिताने से बच्चों को अपने परिवार, दोस्तों और सोसाइटी के साथ कनेक्ट होने में परेशानी आ सकती है. यह निष्कर्ष 1,146 पेरेंट्स पर किये गये एक सर्वे में निकलकर सामने आया है. सर्वे में भाग लेने वाले 50 प्रतिशत माता-पिता का मानना है कि उनके बच्चे टेक्नोलॉजी के साथ बहुत ज्यादा समय बिताते हैं. वहीं, 30 प्रतिशत पेरेंट्स ने कहा है कि वे इस बात से परेशान हैं कि उनके बच्‍चों को स्‍कूल में दूसरे बच्चे परेशान करते हैं. इसके अलावा 22 प्रतिशत ने कहा है कि कोविड-19 महामारी के कारण सोसाइटी में आए बदलाव का उनके बच्चों पर असर पड़ रहा है.

लगभग पांच में से एक माता-पिता (19 प्रतिशत) ने बताया कि नस्ल, जातीयता, कल्चर, सोशल-इकोनॉमिक स्टेट और जेंडर के आधार पर असमानता के कारण उनके बच्चे स्कूल में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाते. 'द किड्स मेंटल हेल्थ फाउंडेशन' की कार्यकारी नैदानिक ​​निदेशक और नेशनवाइड चिल्ड्रन हॉस्पिटल की बाल मनोवैज्ञानिक डॉ. एरियाना होएट ने कहा, "सामाजिक संबंध अपनेपन की भावना को बढ़ावा देते हैं. जो पढ़ाई के साथ आपकी पर्सनैलिटी  के लिए भी आवश्यक है."

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होएट ने कहा, "टेक्नोलॉजी के अपने फायदे और नुकसान हैं. माता-पिता को इन चीजों के प्रति सचेत रहने की जरूरत है, क्‍योंकि बच्‍चों का तकनीक के प्रति ज्यादा रुझान उनकी वास्तविक दुनिया के सामाजिक संबंधों को प्रभावित कर सकता है." होएट ने अभिभावकों को सलाह दी है कि वे अपने बच्चों पर विशेष रूप से ध्‍यान दें. इसके साथ ही वह डिवाइस को कितना समय देते हैं, वास्तविक दुनिया की गतिविधियों से अलग रहने के साथ चिड़चिड़ापन, शारीरिक स्वास्थ्य पर प्रभाव और ऑफ़लाइन बातचीत या स्कूल के प्रदर्शन में बदलाव जैसे संकेतों पर भी नजर रखने की सलाह दी है. बच्‍चों में आ रहे ये बदलाव अभिभावकों को यह समझने में मदद करते हैं कि उनके बच्चे का स्क्रीन टाइम उनके सामाजिक संबंधों पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है या नहीं.

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सर्वे में क्लास से जुड़ी कई और परेशानियां भी उभरकर सामने आई हैं. इनमें 14 प्रतिशत का मानना है कि उनके बच्चों को क्लास में ढलने में परेशानी आ रही है. अभिभावकों में 17 प्रतिशत का कहना है कि उनके बच्चे अपनी क्लास में दोस्त नहीं बना पा रहे हैं. इसके अलावा 13 प्रतिशत अभिभावकों ने कहा है कि उनके बच्चों को क्लास में धमकी या अलग-थलग किए जाने का डर है. पांच प्रतिशत का कहना है कि उनके बच्चे खेल और किसी दूसरी एक्टिविटी में दोस्त नहीं बना पा रहे हैं.

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होएट ने हाशिए पर पड़े या कम प्रतिनिधित्व वाले समूहों के बच्चों को अपनेपन का एहसास कराने में मदद करने के महत्व पर जोर दिया. उन्होंने सजेशन दिया कि माता-पिता और देखभाल करने वाले ऐसे तरीके खोजें, जिससे उनके बच्चे सोशल रिलेशन बना सकें. साथ ही वो ऑनलाइन अनुभवों से संबंधित किसी भी मुद्दे को संबोधित करने के लिए नियमित रूप से अपने बच्चे से संपर्क करें. होएट ने कहा, "शिक्षक और माता-पिता अपनेपन की भावना को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं. लेकिन इसमें यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि यह उन इमीग्रेंट पेरेंट्स के लिए ज्यादा चुनौतीपूर्ण हो सकता है जो स्कूल प्रणाली और संस्कृति को पूरी तरह से नहीं समझते हैं."
 

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(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)

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