International Migrants Day: हर साल 18 दिसंबर को मनाया जाने वाला अंतर्राष्ट्रीय प्रवासी दिवस दुनियाभर के लाखों प्रवासियों के योगदान, चुनौतियों और अधिकारों को उजागर करता है. विश्व में प्रवासियों की संख्या तेजी से बढ़ती देख संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 4 दिसंबर 2000 को इसे आधिकारिक रूप से घोषित किया था. यह दिन प्रवासन की मुश्किलों पर प्रकाश डालता है: संघर्ष, जलवायु संकट, आर्थिक दबाव, और सुरक्षा की तलाश में लोग घर छोड़ते हैं, अक्सर खतरनाक यात्राएं करते हैं. ऐसे में ये दिन उनके योगदान का जश्न मनाता है.
क्या है इस साल की थीम?
संयुक्त राष्ट्र महासभा बताता है कि साल 2025 की थीम 'मेरी महान कहानी: संस्कृति और विकास' है. यह थीम मानव गतिशीलता के सकारात्मक पक्ष पर जोर देती है, कैसे प्रवासन विकास को गति देता है, समाज को समृद्ध बनाता है, संस्कृतियों को जोड़ता है और समुदायों को अनुकूलन और सहयोग की शक्ति देता है. अंतर्राष्ट्रीय प्रवासन संगठन के अनुसार, प्रवासी श्रम बाजारों की कमी पूरी करते हैं, इनोवेशन में सहयोग करते हैं और रेमिटेंस से परिवारों के साथ देश को भी मजबूती देते हैं.
दो करोड़ से ज्यादा प्रवासी
प्रवासन स्वैच्छिक (बेहतर अवसरों के लिए) या अनैच्छिक (युद्ध, प्राकृतिक आपदा) हो सकता है. शरणार्थी सुरक्षा की तलाश में जाते हैं, जबकि आर्थिक प्रवासी रोजगार के लिए. गिरमिटिया प्रथा जैसे ऐतिहासिक कॉन्ट्रैक्ट लेबर भी प्रवासन का रूप थे. भारत के संदर्भ में प्रवासी समुदाय का योगदान शानदार रहा है. विश्व का सबसे बड़ा डायसपोरा भारत का है. अनुमानित 2 करोड़ से अधिक प्रवासी हैं. ये तीन श्रेणियों में बांटे जाते हैं. अनिवासी भारतीय (एनआरआई), यानी वे भारतीय नागरिक जो विदेश में रहते हैं. पीपल ऑफ इंडियन ओरिजिन (पीआईओ), यानी वे भारतीय जो विदेशी नागरिकता ले चुके हैं; और तीसरा है स्टेटलेस पर्सन्स ऑफ इंडियन ओरिजिन (एसपीआईओ).
भारतीय प्रवासन का इतिहास प्राचीन व्यापार से शुरू होकर उपनिवेशिक गिरमिटिया प्रथा तक फैला है, जिसने मॉरीशस, फिजी, त्रिनिदाद आदि में भारतीय समुदाय बसाए. आज खाड़ी देशों में 40 लाख से अधिक भारतीय हैं. रेमिटेंस भारत की अर्थव्यवस्था की मजबूत रेखा है.
देश की अर्थव्यवस्था को बनाते हैं मजबूत
विदेश मंत्रालय के ऑफिशियल वेबसाइट से मिली जानकारी के अनुसार, विदेशों में काम करने वाले भारतीय (प्रवासी समुदाय) अपने परिवार को भेजी गई धनराशि (रेमिटेंस) विदेशी मुद्रा का बहुत बड़ा और महत्वपूर्ण स्रोत है. भारत सरकार ने 1990 के दशक से प्रवासी भारतीयों की भूमिका को विशेष प्राथमिकता दी है, क्योंकि यह पैसा देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाता है, विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ाता है, परिवारों की मदद करता है और विकास में योगदान देता है.
साल 2008 में भारत ने 52 अरब अमेरिकी डॉलर की रेमिटेंस प्राप्त की थी, जो उस समय दुनिया में सबसे ज्यादा थी. वहीं, साल 2024 में यह राशि बढ़कर रिकॉर्ड 129 अरब डॉलर हो गई है, जिससे भारत लगातार टॉप पर बना हुआ है.
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