Mahatma Gandhi Death Anniversary 2019: महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) को पूरी दुनिया में अहिंसा के सबसे बड़े पुजारी के रूप में जाना जाता है. अहिंसा के बल पर देश को आजादी दिलाने वाले गांधी जी (Gandhi ji) को 5 बार शांति के नोबेल पुरस्कार (Nobel Prize) के लिए नामित किया गया था. लेकिन बापू को 1 बार भी शांति पुरस्कार नहीं दिया गया. महात्मा गांधी को शांति के नोबेल पुरस्कार के लिए पहली बार 1937 में नामिक किया गया था. Nobelprize.org पर दी गई जानकारी के मुताबिक 1937 में पहली बार नॉर्वे की संसद “स्टॉर्टिंग” के लेबर पार्टी सदस्य ओले कोल्बजोर्नसन ने एमके गांधी का नाम सुझाया था. कोल्बजोर्नसन नोबेल कमेटी के 13 सदस्यों में से एक थे. कोल्बजोर्नसन ने गांधी जी को खुद से नामित नहीं किया था. उन्होंने मशहूर गांधीवादी संस्था “फ्रेंड्स ऑफ़ इंडिया” की नार्वे शाखा की एक शीर्ष महिला सदस्य से गांधी जी का नाम नामांकित करवाया था. जिसके बाद लगातार दूसरी और तीसरी बार 1938 और 1939 में भी गांधी जी को शांति पुरस्कार के लिए नामित किया गया. चौथी बार साल 1947 में महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) का नामांकन हुआ. जबकि पांचवी और आखिरी बार उन्हें 1948 नामांकित किया गया लेकिन नामांकन की आखिरी तारीख से 2 दिन पहले उनकी हत्या कर दी गई थी. नोबेल समिति को गांधी जी के नाम पर 6 नामांकन प्राप्त हुए थे. पांचवी बार गांधी जी को नामांकित करने वालों में क्वेकर्स और अर्थशास्त्राी एमिली ग्रीन बाल्च शामिल थे.
इन कारणों से गांधी जी को नहीं मिला शांति का नोबेल पुरस्कार
1937
साल 1937 में गांधी जी को पहली बार शांति पुरस्कार (Nobel Prize) के लिए नामित किया गया था. लेकिन उन्हें यह पुरस्कार नहीं दिया गया था. नोबेल समिति के सलाकार जैकब वॉर्म-मूलर के गांधीजी के बारे में निगेटिव लिखने के चलते उन्हें साल 1937 में नोबेल पुस्कार नहीं दिया गया. Nobelprize.org पर दी गई जानकारी के मुताबकि जैकब वार्म-मूलर ने लिखा था, “भारतीय राजनीति के शलाका पुरुष गांधीजी अच्छे, विनम्र और आत्मसंयमी व्यक्ति हैं. भारत की जनता उन्हें बेहद प्यार और सम्मान देती है, लेकिन गांधी जी अंहिसा की नीति पर हमेशा कायम नहीं रहे. अंग्रेजों के खिलाफ उनके कई शांतिपूर्ण आंदोलन कभी भी हिंसक रूप ले सकते हैं. ऐसा ही कुछ चौरा चौरी में देखने को मिला जब भारतीयों ने ब्रिटिश सरकार की एक पुलिस चौकी को आग लगा दी थी जिससे कई पुलिसकर्मी जल के मर गए थे. जैकब वॉर्म-मूलर ने लिखा कि गांधीजी का आंदोलन केवल भारतीय हितों तक सीमित रहा, दक्षिण अफ़्रीका में उनका आंदोलन भी भारतीय लोगों के हितों के लिए था. गांधीजी ने अश्वेत समुदाय लिए कुछ नहीं किया है जिनकी दशा भारतीयों से भी बुरी थी.
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1938 और 1939
1938 और 1939 में भी गांधीजी को नामांकन के बावजूद नोबेल पुरस्कार नहीं दिया गया. उस समय अंतरराष्ट्रीय शांति आंदोलन में गांधीजी के कई आलोचक भी थे.
1947
1947 में गांधीजी को यूनाइटेड प्रॉविंस के प्रीमियर गोविंद वल्लभ पंत, बॉम्बे प्रेसिडेंसी के प्राइम मिनिस्टर बीजी खेर और सेंट्रल लेजिस्लेटिव एसेंबली के स्पीकर गणेश वासुदेव मावलंकर ने नामांकित किया था. उस समय नोबेल समिति के सलाहकार जेन्स अरुप सीप थे. तत्कालीन नोबेल कमेटी प्रमुख गुन्नर जान ने अपनी डायरी में लिखा कि जेन्स अरुप सीप की रिपोर्ट में गांधी के अनुकूल है लेकिन पूरी तरह से उनके पक्ष में नहीं. पाकिस्तान के साथ हालात बिगड़ने के बाद गांधीजी ने कहा, “मैं हर तरह के युद्ध का विरोधी हूं, लेकिन पाकिस्तान चूंकि कोई बात नहीं मान रहा है, इसलिए पाकिस्तान को अन्याय करने से रोकने के लिए भारत को उसके ख़िलाफ़ युद्ध के लिए जाना चाहिए. उस समय कमेटी ने गांधीजी के युद्ध वाले बयान को शांति-विरोधी माना और 1947 का नोबेल पुरस्कार मानवाधिकार आंदोलन क्वेकर को दे दिया गया. नोबेल कमेटी के अध्यक्ष ने लिखा है, ''नामांकित लोगों में गांधीजी सबसे बड़ी शख़्सियत थे. वह शांति के दूत ही नहीं, बल्कि सबसे बड़े देशभक्त थे. नोबेल कमेटी अध्यक्ष ने कमेटी के फ़ैसले का समर्थन करते हुए लिखा कि हमें यह भी दिमाग में रखनी चाहिए कि गांधीजी भोले-भाले नहीं हैं.''
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1948
गांधीजी को 1948 में भी शांति पुरस्कार के लिए नामित किया गया था, लेकिन नामांकन की आखिरी तारीख से 2 दिन पहले उनकी हत्या कर दी गई थी. नोबेल समिति को गांधीजी के नामांकन के लिए 6 पत्र प्राप्त हुए थे. गांधी जी को नामांकित करने वालों में क्वेकर्स और अर्थशास्त्राी एमिली ग्रीन बाल्च शामिल हैं. लेकिन इस बार भी गांधी जी को शांति पुरस्कार नहीं मिला था. इसका मुख्य कारण ये था कि गांधी जी की हत्या हो चुकी थी और उस समय तक मरणोपरांत किसी को नोबेल पुरस्कार नहीं दिया जाता था. लेकिन उस समय कुछ परिस्थितियों में मरणोपरांत को ये पुरस्कार दे सकते थे. ऐसे में समस्या ये थी कि गांधी जी को देने वाली पुरस्कार की राशि किसे दी जाए? क्योंकि गांधी जी न ही किसी किसी संगठन से जुड़े थे और न ही कोई वसीयत छोड़कर गए थे. ऐसे में 1948 में किसी को भी शांति का नोबेल पुरस्कार नहीं दिया गया था. नोबेल समिति ने अपनी टिप्पणी में कहा था, ''there was no suitable living candidate. (कोई जिंदा उम्मीवार नहीं हैं)''
गांधी को शांति पुरस्कार न देना नोबेल समिति की भूल थी
नोबेल समिति यह बात स्वीकार कर चुकी है कि महात्मा गांधी को शांति पुरस्कार नहीं देना एक चूक थी. साल 1989 में महात्मा गांधी की मौत के 41 साल बाद बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा को शांति पुरस्कार देते हुए नोबेल समिति के चेयरमैन ने महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि दी थी. बता दें कि गांधी के अहिंसावादी सिद्धांतों पर चलने वाले मार्टिन लूथर किंग और नेल्सन मंडेला जैसे लोगों को शांति का पुरस्कार दिया गया था.
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