नई दिल्ली:
दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिल्ली सरकार की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें उच्च न्यायालय के एकल न्यायाधीश के अंतरिम आदेश पर रोक लगाने की मांग की गई थी . एकल न्यायाधीश ने अपने अंतरिम आदेश में नर्सरी दाखिले के लिए स्कूल से दूरी के पैमाने पर रोक लगाई थी. मुख्य न्यायाधीश जी रोहिणी और न्यायमूर्ति संगीता ढींगरा सहगल की पीठ ने एकल न्यायाधीश को याचिकाओं पर शीघ्र फैसला करने को कहा.
पीठ ने कहा, ‘‘हमनें याचिका (दिल्ली सरकार की) को खारिज कर दिया है. हमनें हालांकि एकल न्यायाधीश को निर्देश दिया है कि वह याचिकाओं (दिल्ली सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली) पर जितनी जल्दी हो सके, फैसला करें.’’ पीठ ने यह भी कहा कि एकल न्यायाधीश को अपने अंतरिम आदेश में की गई टिप्पणी को ध्यान में रखकर आगे नहीं बढ़ना चाहिए.
खंडपीठ 14 फरवरी के एकल न्यायाधीश के अंतरिम आदेश के खिलाफ दायर आम आदमी पार्टी सरकार की याचिका पर सुनवाई कर रही थी.
एकल न्यायाधीश ने दिल्ली सरकार के नर्सरी दाखिले के नए नियम पर रोक लगाते हुए कहा था, ‘‘एक छात्र के शैक्षिक भविष्य को सिर्फ इस बात से तय नहीं किया जा सकता कि नक्शे पर उसकी स्थिति कहां है.’’ न्यायमूर्ति मनमोहन ने इस पैमाने को ‘‘मनमाना और भेदभावपूर्ण’’ करार देते हुए कहा था कि इससे सिर्फ उन अभिभावकों को फायदा होगा जो अच्छे निजी विद्यालयों के पास रहते हैं.
एकल न्यायाधीश के अंतरिम आदेश को चुनौती देते हुए दिल्ली सरकार ने कहा था कि स्कूल से दूरी के पैमाने के अभाव में स्कूल मनमाने और अपारदर्शी तरीके से दाखिला देंगे. इतना ही नहीं, स्कूल हद से ज्यादा फीस वसूलने को भी न्यायसंगत ठहराएंगे. दिल्ली सरकार ने कहा कि एकल न्यायाधीश द्वारा पारित आदेश ‘‘पूर्णत: गलत’’, ‘‘त्रुटिपूर्ण’’ और ‘‘कानून के खिलाफ’’ है. सरकार ने खंडपीठ से अनुरोध किया था कि कि वो इस आदेश के अमल पर रोक लगाए.
दिल्ली सरकार ने 19 दिसंबर 2016 और सात जनवरी को अपने दो निर्देशों में दिल्ली विकास प्राधिकरण की जमीन पर बने 298 निजी स्कूलों के लिए यह अनिवार्य किया था कि वो उन बच्चों को दाखिला दें जो स्कूल के पास रहते हैं या स्कूल से एक निश्चित दूरी के दायरे में रहते हैं.
एकल न्यायाधीश ने दिल्ली सरकार के आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अंतिम फैसला होने तक सात फरवरी की अधिसूचना पर रोक लगाने का आदेश दिया था.
पीठ ने कहा, ‘‘हमनें याचिका (दिल्ली सरकार की) को खारिज कर दिया है. हमनें हालांकि एकल न्यायाधीश को निर्देश दिया है कि वह याचिकाओं (दिल्ली सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली) पर जितनी जल्दी हो सके, फैसला करें.’’ पीठ ने यह भी कहा कि एकल न्यायाधीश को अपने अंतरिम आदेश में की गई टिप्पणी को ध्यान में रखकर आगे नहीं बढ़ना चाहिए.
खंडपीठ 14 फरवरी के एकल न्यायाधीश के अंतरिम आदेश के खिलाफ दायर आम आदमी पार्टी सरकार की याचिका पर सुनवाई कर रही थी.
एकल न्यायाधीश ने दिल्ली सरकार के नर्सरी दाखिले के नए नियम पर रोक लगाते हुए कहा था, ‘‘एक छात्र के शैक्षिक भविष्य को सिर्फ इस बात से तय नहीं किया जा सकता कि नक्शे पर उसकी स्थिति कहां है.’’ न्यायमूर्ति मनमोहन ने इस पैमाने को ‘‘मनमाना और भेदभावपूर्ण’’ करार देते हुए कहा था कि इससे सिर्फ उन अभिभावकों को फायदा होगा जो अच्छे निजी विद्यालयों के पास रहते हैं.
एकल न्यायाधीश के अंतरिम आदेश को चुनौती देते हुए दिल्ली सरकार ने कहा था कि स्कूल से दूरी के पैमाने के अभाव में स्कूल मनमाने और अपारदर्शी तरीके से दाखिला देंगे. इतना ही नहीं, स्कूल हद से ज्यादा फीस वसूलने को भी न्यायसंगत ठहराएंगे. दिल्ली सरकार ने कहा कि एकल न्यायाधीश द्वारा पारित आदेश ‘‘पूर्णत: गलत’’, ‘‘त्रुटिपूर्ण’’ और ‘‘कानून के खिलाफ’’ है. सरकार ने खंडपीठ से अनुरोध किया था कि कि वो इस आदेश के अमल पर रोक लगाए.
दिल्ली सरकार ने 19 दिसंबर 2016 और सात जनवरी को अपने दो निर्देशों में दिल्ली विकास प्राधिकरण की जमीन पर बने 298 निजी स्कूलों के लिए यह अनिवार्य किया था कि वो उन बच्चों को दाखिला दें जो स्कूल के पास रहते हैं या स्कूल से एक निश्चित दूरी के दायरे में रहते हैं.
एकल न्यायाधीश ने दिल्ली सरकार के आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अंतिम फैसला होने तक सात फरवरी की अधिसूचना पर रोक लगाने का आदेश दिया था.
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