नई दिल्ली:
राजस्थान के कोटा जिले के छत्रपुरा गांव में रहने वाले एक नरेगा लेबर के बेटे ने अपने मां-बाप और पूरे गांव का नाम रौशन किया है। अभिषेक मीणा नाम के इस छात्र को आईआईटी-दिल्ली में दाखिला मिला है। अभिषेक ने इस साल हुए आईआईटी-जेईई एग्जाम में 257 रैंक हासिल की है। हिंदी मीडियम स्कूल में पढ़ने वाले अभिषेक को 10वीं क्लास के एग्जाम तक आईआईटी के बारे में कोई आइडिया नहीं था।
काम आए दोस्त
अभिषेक का कहना है कि, जब मैंने 10वीं में 72 फीसदी मार्क्स हासिल किए, तब मेरे स्कूल के टीचरों ने मेरे पिता को मुझे आईआईटी की तैयारी और कोचिंग के लिए कोटा भेजने का सुझाव दिया। मैंने सिर्फ आईआईटी के लिए कोचिंग की और खुद से पढ़ाई कर के 12वीं के एग्जाम्स में 83 फीसदी मार्क्स हासिल किए। मेरे दोस्तों और कोचिंग फैक्ल्टी ने मुझे 12वीं एग्जाम्स के लिए नोट्स दिए और मेरी काफी मदद भी की।
नहीं मानी हार
साथ ही इस होनहार छात्र ने कहा कि, उसने आईआईटी के अपने पहले ही प्रयास में एग्जाम तो पास कर लिया पर उसे कोई कॉलेज एलॉट नहीं हुआ। लेकिन फिर भी उसके इरादों में कोई कमी नहीं आई और उसने दोबारा एग्जाम देने का फैसला किया।
पिता की खुशी का ठिकाना नहीं
आपको बता दें कि अभिषेक के पिता एक नरेगा लेबर हैं और नरेगा से मिलने वाली मजदूरी और खेती के पैसों से शायद ही वह अपने बेटे की कोचिंग फीस भर पाते। इसके चलते उन्होंने अपने बेटे की पढ़ाई के लिए एक स्थानीय कर्ज देनेवाले से 2 फीसदी ब्याज पर पैसे उधार लिए। बेटे की सफलता पर रामदयाल का कहना है कि वह इस बात से बेहद खुश है कि उसके बेटे ने एग्जाम पास किया और आईआईटी में दाखिला पाने वाला अपने गांव का पहला छात्र बना।
काम आए दोस्त
अभिषेक का कहना है कि, जब मैंने 10वीं में 72 फीसदी मार्क्स हासिल किए, तब मेरे स्कूल के टीचरों ने मेरे पिता को मुझे आईआईटी की तैयारी और कोचिंग के लिए कोटा भेजने का सुझाव दिया। मैंने सिर्फ आईआईटी के लिए कोचिंग की और खुद से पढ़ाई कर के 12वीं के एग्जाम्स में 83 फीसदी मार्क्स हासिल किए। मेरे दोस्तों और कोचिंग फैक्ल्टी ने मुझे 12वीं एग्जाम्स के लिए नोट्स दिए और मेरी काफी मदद भी की।
नहीं मानी हार
साथ ही इस होनहार छात्र ने कहा कि, उसने आईआईटी के अपने पहले ही प्रयास में एग्जाम तो पास कर लिया पर उसे कोई कॉलेज एलॉट नहीं हुआ। लेकिन फिर भी उसके इरादों में कोई कमी नहीं आई और उसने दोबारा एग्जाम देने का फैसला किया।
पिता की खुशी का ठिकाना नहीं
आपको बता दें कि अभिषेक के पिता एक नरेगा लेबर हैं और नरेगा से मिलने वाली मजदूरी और खेती के पैसों से शायद ही वह अपने बेटे की कोचिंग फीस भर पाते। इसके चलते उन्होंने अपने बेटे की पढ़ाई के लिए एक स्थानीय कर्ज देनेवाले से 2 फीसदी ब्याज पर पैसे उधार लिए। बेटे की सफलता पर रामदयाल का कहना है कि वह इस बात से बेहद खुश है कि उसके बेटे ने एग्जाम पास किया और आईआईटी में दाखिला पाने वाला अपने गांव का पहला छात्र बना।
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