जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय
नयी दिल्ली:
जामिया मिलिया इस्लामिया ने अपने कर्मचारियों के बच्चों के लिए पांच फीसदी सीटें आरक्षित करने का फैसला किया है, जबकि दिल्ली उच्च न्यायालय ने 1997 में ही ऐसी व्यवस्था को खत्म कर दिया था।
विश्वविद्यालय के कुछ शिक्षकों ने राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के समक्ष यह मुद्दा उठाया है। राष्ट्रपति के समक्ष दिए आवेदन में जामिया के जनसंचार केंद्र के प्रोफेसर ओबैद सिद्दीकी ने कहा, ‘‘उच्च न्यायालय ने 1997 में जामिया मिलिया इस्लामिया के स्थायी कर्मचारियों के बेटे-बेटियों-पत्नियों को दिए पांच फीसदी आरक्षण को रद्द कर दिया था।’’ आवेदन में कहा गया है, ‘‘करीब एक दशक तक इस तरह का आरक्षण जारी नहीं रहा, लेकिन विश्वविद्यालय ने एक बार फिर इस प्रक्रिया को शुरू कर दिया है।’’ हाल ही में विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद की ओर से यह फैसला किया गया कि कर्मचारियों के बच्चों के लिए सभी कार्यक्रमों में उपलब्ध सीटों के ऊपर की पांच फीसदी सीटें आरक्षित रहेंगी।
शिक्षकों के इस आवेदन में कहा गया, ‘‘यह जामिया मिलिया इस्लामिया अधिनियम का उल्लंघन है। दाखिले और आरक्षण से जुड़े अध्यादेशों को नहीं बदला गया है। विश्वविद्यालय ने जानबूझकर और दुर्भावना के साथ ऐसे आरक्षणों को जायज ठहराने के लिए पिछले दरवाजे की प्रक्रियाओं का अनुसरण किया था।’’ उधर, जामिया के प्रवक्ता मुकेश रंजन ने कहा, ‘‘ये मौजूदा सीटों से उपर की सीटें हैं और मौजूदा सीटों में से नहीं हैं। इसमें भी उसी तरह की योग्यता की शर्तें होंगी जो सामान्य श्रेणियों के लिए होती हैं।’’
विश्वविद्यालय के कुछ शिक्षकों ने राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के समक्ष यह मुद्दा उठाया है। राष्ट्रपति के समक्ष दिए आवेदन में जामिया के जनसंचार केंद्र के प्रोफेसर ओबैद सिद्दीकी ने कहा, ‘‘उच्च न्यायालय ने 1997 में जामिया मिलिया इस्लामिया के स्थायी कर्मचारियों के बेटे-बेटियों-पत्नियों को दिए पांच फीसदी आरक्षण को रद्द कर दिया था।’’ आवेदन में कहा गया है, ‘‘करीब एक दशक तक इस तरह का आरक्षण जारी नहीं रहा, लेकिन विश्वविद्यालय ने एक बार फिर इस प्रक्रिया को शुरू कर दिया है।’’ हाल ही में विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद की ओर से यह फैसला किया गया कि कर्मचारियों के बच्चों के लिए सभी कार्यक्रमों में उपलब्ध सीटों के ऊपर की पांच फीसदी सीटें आरक्षित रहेंगी।
शिक्षकों के इस आवेदन में कहा गया, ‘‘यह जामिया मिलिया इस्लामिया अधिनियम का उल्लंघन है। दाखिले और आरक्षण से जुड़े अध्यादेशों को नहीं बदला गया है। विश्वविद्यालय ने जानबूझकर और दुर्भावना के साथ ऐसे आरक्षणों को जायज ठहराने के लिए पिछले दरवाजे की प्रक्रियाओं का अनुसरण किया था।’’ उधर, जामिया के प्रवक्ता मुकेश रंजन ने कहा, ‘‘ये मौजूदा सीटों से उपर की सीटें हैं और मौजूदा सीटों में से नहीं हैं। इसमें भी उसी तरह की योग्यता की शर्तें होंगी जो सामान्य श्रेणियों के लिए होती हैं।’’
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