BHU और AMU की याचिका पर अब न्यायालय करेगा आदेश पारित
दिल्ली:
पोस्ट ग्रैज्युएट मेडिकल सीटें 50 प्रतिशत संस्थागत प्रतिभागियों के लिये सुरक्षित रखने की व्यवस्था निरस्त करने के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देते हुये बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय और भारतीय चिकित्सा परिषद भी अब उच्च्तम न्यायालय पहुंच गये हैं. न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की अवकाश कालीन पीठ ने इन याचिकाओं पर सुनवाई पूरी करने के बाद कहा कि इस पर गुरुवार को आदेश सुनाया जायेगा.
संक्षिप्त सुनवाई के दौरान दोनों विश्वविद्यालयों ने कहा कि उच्च न्यायालय के आदेश से शीर्ष अदालत के पहले के निर्णय और भारतीय चिकित्सा परिषद के नियमों का उल्ल्ंघन होता जिनमें संस्थाओं को 50 प्रतिशत सीटों पर अपनी अपनी संस्थाओं से प्रवेश देने की अनुमति दी गयी थी. भारतीय चिकित्सा परिषद ने भी इन दोनों केन्द्रीय विश्वविद्यालयों का समर्थन किया और कहा कि उच्च न्यायालय ने प्रतिपादित नियमों की व्याख्या करने में चूक की है.
बीएचयू की दलील
बीएचयू की ओर से अतिरिक्त सालिसीटर जनरल मनिन्दर सिंह ने उच्च न्यायालय के 29 मई के आदेश पर तत्काल रोक लगाने का अनुरोध करते हुए कहा कि समूची व्यवस्था को उलटा नहीं किया जा सकता है. उन्होंने पोस्ट ग्रेज्यूएट पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिये सौरभ चौधरी प्रकरण में शीर्ष अदालत द्वारा निर्धारित दिशानिर्देशों की ओर भी न्यायालय का ध्यान आकषिर्त किया. उन्होंने कहा कि यदि 50 प्रतिशत सीटों के लिये संस्थागत प्राथमिकता खत्म कर दी गयी तो फिर एम्स और पीजीआई, चंडीगढ जैसी दूसरी संस्थाओं का क्या होगा.
एएमयू की दलील
अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सलमान खुर्शीद ने कहा कि 50 प्रतिशत कोटे के प्रावधान के तहत पहले ही कुछ छात्रों को प्रवेश मिल चुका है. इसलिए उच्च न्यायालय के फैसले रोक लगाने की आवश्यकता है. पीठ ने यह कहते हुये इस प्रकरण में आदेश गुरुवार को सुनाने के लिये कहा कि हो सकता है कि उच्च न्यायालय ने नियमों की गलत व्याख्या कर दी हो.
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान 29 मई को अपने आदेश में इन दोनों केन्द्रीय विश्वविद्यालयों को नीट की रैंकिंग के आधार पर किसी भी मेडिकल कालेज के छात्रों को पीजी मेडिकल पाठ्यक्रमों में 50 प्रतिशत संस्थागत सीटों पर प्रवेश की अनुमति दी थी.
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
संक्षिप्त सुनवाई के दौरान दोनों विश्वविद्यालयों ने कहा कि उच्च न्यायालय के आदेश से शीर्ष अदालत के पहले के निर्णय और भारतीय चिकित्सा परिषद के नियमों का उल्ल्ंघन होता जिनमें संस्थाओं को 50 प्रतिशत सीटों पर अपनी अपनी संस्थाओं से प्रवेश देने की अनुमति दी गयी थी. भारतीय चिकित्सा परिषद ने भी इन दोनों केन्द्रीय विश्वविद्यालयों का समर्थन किया और कहा कि उच्च न्यायालय ने प्रतिपादित नियमों की व्याख्या करने में चूक की है.
बीएचयू की दलील
बीएचयू की ओर से अतिरिक्त सालिसीटर जनरल मनिन्दर सिंह ने उच्च न्यायालय के 29 मई के आदेश पर तत्काल रोक लगाने का अनुरोध करते हुए कहा कि समूची व्यवस्था को उलटा नहीं किया जा सकता है. उन्होंने पोस्ट ग्रेज्यूएट पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिये सौरभ चौधरी प्रकरण में शीर्ष अदालत द्वारा निर्धारित दिशानिर्देशों की ओर भी न्यायालय का ध्यान आकषिर्त किया. उन्होंने कहा कि यदि 50 प्रतिशत सीटों के लिये संस्थागत प्राथमिकता खत्म कर दी गयी तो फिर एम्स और पीजीआई, चंडीगढ जैसी दूसरी संस्थाओं का क्या होगा.
एएमयू की दलील
अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सलमान खुर्शीद ने कहा कि 50 प्रतिशत कोटे के प्रावधान के तहत पहले ही कुछ छात्रों को प्रवेश मिल चुका है. इसलिए उच्च न्यायालय के फैसले रोक लगाने की आवश्यकता है. पीठ ने यह कहते हुये इस प्रकरण में आदेश गुरुवार को सुनाने के लिये कहा कि हो सकता है कि उच्च न्यायालय ने नियमों की गलत व्याख्या कर दी हो.
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान 29 मई को अपने आदेश में इन दोनों केन्द्रीय विश्वविद्यालयों को नीट की रैंकिंग के आधार पर किसी भी मेडिकल कालेज के छात्रों को पीजी मेडिकल पाठ्यक्रमों में 50 प्रतिशत संस्थागत सीटों पर प्रवेश की अनुमति दी थी.
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