विश्व रैंकिंग में 58वें से 51वें नंबर पर पहुंचा JNU का सामाजिक अध्ययन केंद्र

विश्व रैंकिंग में 58वें से 51वें नंबर पर पहुंचा JNU का सामाजिक अध्ययन केंद्र

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू)

नई दिल्ली:

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के कुछ छात्रों पर देशद्रोह का मामला दर्ज किए जाने से पैदा हुए विवाद के बीच जेएनयू के सामाजिक प्रणाली अध्ययन केंद्र (सीएसएसएस) को क्यूएस विश्व रैंकिंग में 51वें पायदान पर रखा गया है। पिछले साल जेएनयू को 58वें पायदान पर रखा गया था ।

जेएनयू ने विश्व रैंकिंग में ऐसे समय में छलांग लगाई है जब पिछले महीने परिसर में अफजल गुरु पर आयोजित एक कार्यक्रम के बाद से विश्वविद्यालय विवादों में घिरा है। इन विवादों की वजह से लोगों के मन में यह सवाल पैदा होने लगा था कि क्या इससे विश्वविद्यालय की छवि को झटका लगेगा।

दिलचस्प बात यह है कि नौ फरवरी को आयोजित विवादित कार्यक्रम के सिलसिले में देशद्रोह के आरोप का सामना कर रहे कुछ छात्र सामाजिक प्रणाली अध्ययन केंद्र में ही पढ़ाई करते हैं।

भारत में समाजशास्त्र के प्रतिष्ठित विभागों में से एक है CSSS
जेएनयू का सामाजिक प्रणाली अध्ययन केंद्र भारत में समाजशास्त्र के प्रतिष्ठित विभागों में से एक है। इस विभाग में करीब 450 छात्र अध्ययन करते हैं। इस विभाग में हर साल करीब 35 छात्रों को एम.फिल की डिग्री दी जाती है जबकि 25 छात्र पीएचडी का शोध-पत्र जमा करते हैं।

इस विभाग में डॉ. बी आर अंबेडकर चेयर भी है जो भारत सरकार के सामाजिक न्याय मंत्रालय द्वारा प्रायोजित है। यह बाबासाहेब अंबेडकर के बौद्धिक योगदानों से जुड़ी गतिविधियों का समर्थन और संचालन करता है और अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के छात्रों को शोध कार्य के लिए छात्रवृतियां देता है।

पिछले हफ्ते जेएनयू को शोध एवं नवोन्मेष में उत्कृष्टता के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार विजेता घोषित किया गया था। 

रैंकिंग में दुनिया भर के करीब 800 विश्वविद्यालय
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने मॉलिकुलर पैरासाइटोलॉजी, खासकर मलेरिया-निरोधक, लेशमेनियासिस और अमीबायसिस, के क्षेत्र में उत्कृष्ट काम के लिए जेएनयू के मॉलिकुलर पैरासाइटोलॉजी ग्रुप को सम्मानित किया था। इस हफ्ते की शुरूआत में जारी 2015-16 की क्यूएस वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग में शोध की गुणवत्ता, स्नातकों के रोजगार, छात्र-शिक्षक अनुपात, शिक्षण मानकों और अंतरराष्ट्रीय छात्रों की संख्या जैसे पहलुओं पर गौर किया गया था। इस रैंकिंग में दुनिया भर के करीब 800 विश्वविद्यालयों की रेटिंग की गई।

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शैक्षणिक प्रतिष्ठा पर सबसे अधिक जोर
बहरहाल, क्यूएस रैंकिंग में सबसे ज्यादा जोर शैक्षणिक प्रतिष्ठा पर दिया गया। इसके लिए दुनिया के करीब 60,000 शिक्षाविदों को सर्वेक्षण में शामिल किया गया और उनसे अपनी संस्थाओं को छोड़कर अन्य संस्थाओं के बारे में राय ली गई।