खास बातें
- PPF खाता खुलवाने का होता है फायदा
- सरकार दो प्रकार से देती है टैक्स में छूट
- खाता में जमा पैसे पर मिलता है लोन
नई दिल्ली: भविष्य निधि के जरिए सरकार हर नौकरीपेशा का पैसा जमा कर उस पर ब्याज देती रही है. यह पैसा हमेशा से नौकरी पेशा को समय पर एकमुश्त रकम देता है जो वह रिटायरमेंट के बाद या फिर नौकरी छोड़ने के बाद प्रयोग में लाता है. सरकार इस प्रकार के फंड में पैसा जमा कराने का एक और रास्ता उपलब्ध कराती है. यह है पीपीएफ. पब्लिक प्रॉविडेंट फंड (पीपीएफ) कई दशकों से निवेशकों के लिए बचत और बचत को ब्याज के माध्यम से बढ़ाने का अच्छा माध्यम है.
कहा जाता है कि पीपीएफ से मिलने वाला रिटर्न सावधि जमा से अच्छा होता है. वैसे यह अलग विषय है और इसमें हर जागरूक आदमी की अपनी समझ काम करती है. कुछ एफडी के बेहतर बताते हैं तो कुछ पीपीएफ को. सबकी अपनी जरूरतें और प्राथमिकताएं होती हैं. उसी आधार पर हर आदमी की अपनी राय बनती है.
पीपीएफ में पैसे लगाने पर एक तरफ आयकर में छूट मिलती है वहीं यहां से मिलने वाले पैस पर भी कोई कर नहीं लगता.आयकर अधिनियम की धारा 80 सी के तहत यहां पर टैक्स में छूट मिलती है. पीपीएफ में मैच्योरिटी पर मिलने वाली रकम पर भी आयकर के सेक्शन 10 के तहत किसी तरह का टैक्स नहीं लगता है.
बता दें कि पिछले कुछ साल से फिक्स डिपॉजिट्स (एफडी) पर ब्याज दरें घटने से भी पीपीएफ में निवेशकों की दिलचस्पी बढ़ी है. पीपीएफ 15 साल की स्कीम है, जिसमें 5 साल का लॉक-इन पीरियड है. पहले पीपीएफ खाता केवल पोस्ट ऑफिस में और एसबीआई बैंकों की चुनिंदा शाखाओं में खोला जा सकता था लेकिन अब यह निजी बैंकों में भी खोला जा सकता है. इतना ही नहीं यह खाता ऑनलाइन भी खोला जा सकता है.
पीपीएफ खाता खुलवाने के लिए उम्र की समय सीमा नहीं है. अगर आपका ईपीएफ (इंप्लायी प्रॉविडेंट फंड) खाता है तो भी आप पीपीएफ खाता खोल सकते हैं. पीपीएफ खाते में सालभर में अधिकतम 12 बार पैसे जमा किये जा सकते हैं. पीपीएफ में जमा पैसे के बदले लोन भी लेने का मौका खाताधारक के पास होता है. इसके अलावा खाते से आंशिक निकासी की भी सुविधा रहती है.
पीपीएफ में कम या ज्यादा रिटर्न नहीं मिलता है. पीपीएफ पर ब्याज दरें सरकार तय करती है. हर 3 महीने में सरकार पीपीएफ पर ब्याज दरों की समीक्षा करती है. सरकार बॉन्ड यील्ड के आधार पर इसकी ब्याज दरें तय करती है. 1968 में पीपीएफ पर 4 फीसदी सालाना ब्याज मिलता था, जबकि साल 1986 से साल 2000 तक सालाना ब्याज 12 फीसदी था. फिलहाल यानी अक्टूबर-दिसंबर 2017 के दौरान इस पर 7.8 फीसदी ब्याज मिल रहा था जबकी इसकी वर्तमान दर (अप्रैल 2018) में 7.6 प्रतिशत है. यह ब्याज टैक्स के दायरे में नहीं आता है.