सुप्रीम कोर्ट ने नोएडा में 40 मंजिले दो टावर गिराने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के निर्देश के खिलाफ रीयल एस्टेट कंपनी सुपरटेक लि की अपील पर सुनवाई के लिए आज सहमत हो गया। कोर्ट ने कंपनी को आदेश दिया कि इन इमारतों के फ्लैटों की बिक्री या हस्तांतरण नहीं किया जाए।
प्रधान न्यायाधीश आरएम लोढा की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने इसके साथ ही सुपरटेक, नोएडा प्राधिकरण और विवादित टावरों के फ्लैट मालिकों की याचिकाओं पर नोटिस जारी किए। कोर्ट ने उस याचिकाकर्ता को भी नोटिस जारी किया है, जिसकी याचिका पर हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया था।
कोर्ट ने आश्चर्य व्यक्त किया कि नोएडा प्राधिकरण ने किस तरह 40 मंजिल की इमारत के निर्माण की अनुमति दी और यदि इन इमारतों को गिराना पड़ा तो प्राधिकरण को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा।
कोर्ट ने कहा कि यदि इन इमारतों को गिराया गया तो प्राधिकरण को ही इन फ्लैट मालिकों को धन का भुगतान करना होगा, क्योंकि उसी की मिलीभगत से इन इमारतों को मंजूरी दी गई थी। कोर्ट ने यह भी सवाल किया कि निर्माण के दौरान कैसे 24वीं मंजिल से 40 मंजिलों का निर्माण किया गया।
हाईकोर्ट ने नोएडा में सुपरटेक कंपनी के एमेराल्ड कोर्ट परियोजना में निर्माणाधीन 40 मंजिल के दो टावरों को गिराने का आदेश दिया था। इन टावरों में कुल 857 फ्लैट हैं, जिनमें से अभी तक करीब 600 फ्लैट बिक चुके हैं।
सुपरटेक कंपनी ने अपनी याचिका में दावा किया है कि इन दोनों टावरों का निर्माण ‘इमारत के स्वीकृत नक्शे’ के अनुरूप किया गया है और ‘इसमें किसी प्रकार का उल्लंघन नहीं हुआ है।’ इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 11 अप्रैल को इन टावरों को गिराने और इनमें मकान खरीदने वालों को उनका धन लौटाने का निर्देश कंपनी को दिया था।
हाईकोर्ट ने एमेराल्ड कोर्ट ओनर रेजीडेन्ट वेलफेयर एसोसिएशन की याचिका पर यह फैसला सुनाया था। इस संगठन ने आरोप लगाया था कि इन टावरों के निर्माण की मंजूरी उत्तर प्रदेश अपार्टमेन्ट कानून का उल्लंघन करके दी गई थी।
याचिका में यह भी दावा किया गया था कि नोएडा प्राधिकरण ने इन टावरों में 24 से अधिक मंजिलों के निर्माण की अनुमति इसके बगल की इमारत के बीच 16 मीटर की अनिवार्य दूरी बनाए रखने के प्रावधान के बगैर ही दी थी। याचिका में कहा गया था कि इस वजह से यह असुरक्षित ही नहीं थी बल्कि इससे हवा और रोशनी भी बाधित हो रही है।