मूडीज की रिपोर्ट के बाद हालात संभले भी नहीं थे कि सरकारी बैंक एसबीआई ने ये कहकर सबको चौंका दिया है कि अर्थव्यवस्था की विकास दर दूसरी तिमाही में गिरकर 4.2 फीसदी रह जाएगी. यानी सरकार अर्थव्यवस्था को नहीं संभाल पा रही है. एसबीआई की रिपोर्ट से ये सवाल उठने लगा है कि क्या देश में मंदी दस्तक दे रही है?
इस साल जुलाई में बजट पेश करने के बाद वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अर्थव्यवस्था को दोबारा पटरी पर लाने के लिए एक के बाद एक कई बड़े ऐलान किए...कार्पोरेट टैक्स घटाया, बैंकों का मर्जर किया. रियल इस्टेट के लिए 25000 करोड़ के फंड के ऐलान जैसे बड़े फैसले किए. लेकिन अर्थव्यवस्था सरकार के नियंत्रण में आती नहीं दिख रही है.
SBI ने अपनी ताज़ा रिपोर्ट में कहा है कि इस साल की दूसरी तिमाही में GDP की विकास दर 4.2 प्रतिशत रहने का अनुमान है. SBI ने अगले वित्त वर्ष के लिए विकास दर का अनुमान भी 6.1 से घटाकर 5 प्रतिशत कर दिया है.
रवींद्र गुप्ता, चीफ मैनेजर, एसबीआई ने एनडीटीवी से कहा- SBI ने अपनी रिपोर्ट में GDP ग्रोथ फोरकास्ट डाउनग्रेड करने के चार कारण बताए हैं- ग्लोबल इकॉनामिक स्लोडाउन, लो ऑटो सेल्स, कंस्ट्रक्शन और इन्फ्रास्ट्रक्चर में इनवेस्टमेंट की कमी, कोर सेक्टर में ग्रोथ की गिरावट और एयर ट्रैफिक मूवमेंट में कमी.
उद्योग संघ एसोचौम ने एसबीआई की रिपोर्ट पर चिंता जताते हुए कहा है कि बैंकिंग सेक्टर में लिक्विडिटी का संकट बना हुआ है. दीपक सूद, सेक्रेटरी जनरल, एसोचैम ने एनडीटीवी से कहा-मार्केट में लिक्विडिटी का प्राब्लम अभी भी है. RBI ने 150 बेसिक पॉइंट तक रेट कट किया है. लेकिन अभी तक बैंकों ने 30 से 40 बेसिसपॉइंट तक ही बेनिफिट का ट्रांसमीशन किया है कस्टमर के लिए. हम सरकार से मांग करते हैं कि बैंकों से कहे कि RBI रेट कट का पूरा फायदा उद्योगों तक पहुंचे.
अरविंद विरमानी, पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार ने कहा, सरकार को और टैक्स रिफार्म करना होगा, डायरेक्ट टैक्स कोड लाना होगा, जीएसटी को और सरल, बेहतर और कारगर बनाना होगा.
एसबीआई रिपोर्ट से साफ है कि पिछले दो महीनों में अर्थव्यवस्था को दोबारा पटरी पर लाने के लिए जो बड़े फैसले सरकार ने किये उनका ज़मीन पर कोई कारगर असर होता नहीं दिख रहा है और सरकार को अर्थव्यवस्था की सेहत सुधारने के लिए नए सिरे से और बड़े फैसले लेने होंगे.