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नोटबंदी का असर GDP पर पड़ेगा, अर्थव्यवस्था को कैशलैस बनाने में पांच साल लगेंगे : ASSOCHAM

नोटबंदी का सबसे बुरा असर असंगठित क्षेत्र पर ही पड़ा है. सभी छोटे और मझोले उद्योग और कारोबार कैश की किल्लत से जूझ रहे हैं. व्यापार सिकुड़ता जा रहा है और अब इसका असर अर्थव्यवस्था पर पड़ना तय माना जा रहा है.
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NDTV Profit हिंदी07:43 PM IST, 13 Dec 2016NDTV Profit हिंदी
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नरेला मंडी के दिहाड़ी मज़दूर पिछले कई हफ्तों से तनाव में हैं. नोटबंदी की वजह से मंडी में मज़दूरों का काम 70 फीसदी तक घट गया है. जो काम बचा भी है. उसका भुगतान कारोबारी चेक से कर रहे हैं. 8 नवंबर के बाद से मज़दूरी के एवज में कैश मिला नहीं. ज़्यादातर मज़दूरों के बैंक खाते नहीं हैं, इसलिए परेशानी और बढ़ गई है. ठेकेदार उनके चेक बैंक में जमा करता है और कैश के संकट के इस दौर में  बैंक से पैसे निकालने में दिनों लग जाते हैं.

दरअसल नोटबंदी का सबसे बुरा असर असंगठित क्षेत्र पर ही पड़ा है. सभी छोटे और मझोले उद्योग और कारोबार कैश की किल्लत से जूझ रहे हैं. व्यापार सिकुड़ता जा रहा है और अब इसका असर अर्थव्यवस्था पर पड़ना तय माना जा रहा है.

एसोचैम के सेक्रेटरी जनरल डीएस रावत कहते हैं कि इसका सीधा असर जीडीपी विकास दर पर पड़ेगा. रावत ने एनडीटीवी से कहा, 'नोटबंदी का निश्चित तौर पर असर जीडीपी ग्रोथ रेट पर पड़ेगा. मेरा अनुमान है कि असर 1.5% तक होगा. सबसे ज़्यादा असर रोज़गार पर पड़ रहा है विशेषकर छेटो-छोटे कारखानों में. और एक्सपोर्ट सेक्टर पर...'

रावत कहते हैं कि अर्थव्यवस्था को कैश से कैशलैस बनाने में कम से कम पांच साल लगेंगे, वो भी तब जब सरकार सक्रियता से पहल करे. ये प्रक्रिया जटिल है और करोड़ों लोगों को इसके लिए ट्रेन करना पड़ेगा. विशेषकर ग्रामीण इलाकों में इसके लिए ज़रूरी तकनीकी ढ़ांचा तैयार करने में लंबा वक्त लगेगा.

एसोचैम का आकलन है कि नोटबंदी का सबसे बुरा असर सूक्ष्म, छोटे और मध्यम उद्योगों पर पड़ा है. नोटबंदी की वजह से असंगठित क्षेत्र में रोज़गार के अवसर तेज़ी से घट रहे हैं. ये आकलन एसोचैम से जुड़े उद्योगों की राय के आधार पर तैयार किया गया है.

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