
पिछले कुछ सालों से भारतीय सिनेमा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना रहा है. फिर चाहे ऑस्कर में 'आरआरआर' हो, पिछले साल कान फिल्म फेस्टिवल में 'ऑल वी इमेजिन ऐज लाइट्स' और 'सनफ्लावर्स: द फर्स्ट वंस टू नो' हों या फिर इस साल वेनिस फिल्म फेस्टिवल में अनुपर्णा रॉय की फिल्म 'सॉन्ग्स आफ द फॉरगॉटन ट्रीज' हो. अनुपर्णा वेनिस फिल्म फेस्टिवल के ओरिज़ोंटी सेक्शन में बेस्ट डायरेक्टर (Best Director) का सम्मान पाने वाली पहली भारतीय निर्देशक हैं. एनडीटीवी से बातचीत में जब उनसे पूछा गया कि किस कहानी का आईडिया उन्हें कहां से मिला तो जड़ें जुड़ीं उनकी नानी से.
सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने कहा, "मेरे अंदर एक फितूर था कि मैं दो औरत की गहराइयों को दिखाऊंगी. दो औरत के रिश्ते को समझूंगी. मेरी नानी की चाइल्ड मैरिज हुई थी और जब वो शादी करके आईं तो उनके पास पहले से एक स्टेप डॉटर थी. दोनों की उम्र लगभग बराबर थी और दोनों की बॉन्डिंग इतनी गहरी थी कि कभी मां-बेटी वाली नहीं लगी. नाना के गुजर जाने के बाद दोनों औरतों ने ही घर संभाला. बच्चों की शादी, साथ में खाना खाना, साथ में खाना बनाना, एक काम करके आती तो दूसरी पैसे लाती. यह एक बहुत ही अलग संगमिश्रण था, जेंडर से परे. तभी मेरे मन में सवाल आया कि क्या दो औरतें कभी मिलकर घर बसा सकती हैं? उसी से इस फ़िल्म का सीड मेरे भीतर आया".
भारतीय सिनेमा के लिए यह उपलब्धि न केवल एक गर्व का पल है बल्कि आने वाले फिल्मकारों के लिए प्रेरणा भी. 'सॉन्ग्स ऑफ द फॉरगॉटन ट्रीज' के जरिये अनुपर्णा रॉय ने साबित किया है कि भारतीय कहानियां न केवल लोकल स्तर पर बल्कि वैश्विक मंच पर भी गहरी छाप छोड़ सकती हैं.
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