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70 साल बाद वेनिस में गूंजा भारतीय सिनेमा का जादू, बिमल रॉय की 'दो बीघा जमीन' ने रचा इतिहास

बिमल रॉय की क्लासिक फिल्म ‘दो बीघा जमीन’ का नया 4K रीस्टोर वर्जन 4 सितंबर को वेनिस फिल्म फेस्टिवल के क्लासिक्स सेक्शन में दिखाया गया. 1953 में बनी यह फिल्म उस दौर के किसानों की तकलीफ और बदलते समाज की तस्वीर पेश करती है.

70 साल बाद वेनिस में गूंजा भारतीय सिनेमा का जादू, बिमल रॉय की 'दो बीघा जमीन' ने रचा इतिहास
70 साल बाद वेनिस में गूंजी बिमल रॉय की 'दो बीघा जमीन'
नई दिल्ली:

बिमल रॉय की क्लासिक फिल्म ‘दो बीघा जमीन' का नया 4K रीस्टोर वर्जन 4 सितंबर को वेनिस फिल्म फेस्टिवल के क्लासिक्स सेक्शन में दिखाया गया. 1953 में बनी यह फिल्म उस दौर के किसानों की तकलीफ और बदलते समाज की तस्वीर पेश करती है. वक्त भले बदल गया हो, लेकिन इसकी कहानी आज भी उतनी ही असरदार लगती है. स्क्रीनिंग को खास बनाने के लिए रॉय परिवार के 21 सदस्य पहुंचे, जिनमें तीन पीढ़ियों के लोग शामिल थे. इनमें 83 साल के बुज़ुर्ग से लेकर 8 साल के बच्चे तक मौजूद रहे. बिमल रॉय के बच्चे- रिनिकी रॉय भट्टाचार्य, अपराजिता रॉय सिन्हा और जॉय बिमल रॉय भी इस पल के गवाह बने.

फिल्म को फिर से परदे पर लाने की यात्रा आसान नहीं रही. क्राइटेरियन कलेक्शन, जानस फिल्म्स और फिल्म हेरिटेज फाउंडेशन ने मिलकर करीब तीन साल तक मेहनत की. नेशनल फिल्म आर्काइव ऑफ इंडिया में रखा असली नेगेटिव पानी और फंफूदी से खराब हो चुका था, कई फ्रेम टूट चुके थे और कुछ हिस्से तो गायब थे. आखिरकार ब्रिटिश फ़िल्म इंस्टीट्यूट में सुरक्षित एक 35mm डुप्लीकेट नेगेटिव के सहारे शुरुआती टाइटल और अंतिम रील जैसे हिस्सों को दोबारा तैयार किया गया.

नई पीढ़ी के निर्देशक भी प्रभावित

बिमल रॉय का सिनेमा आज भी फिल्मकारों के लिए प्रेरणा है. नई पीढ़ी के निर्देशकों में अमित राय जैसे नाम शामिल हैं, जिन्होंने ‘रोड टू संगम' और ‘ओह माय गॉड' जैसी फिल्मों का निर्देशन किया. अमित इतने प्रभावित रहे कि उन्होंने अपने बेटे का नाम ही 'बिमल' रख दिया. अमित राय ने एनडीटीवी से कहा, "दो बीघा जमीन' की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसकी कहानी म्यूजिक डायरेक्टर सलील चौधरी ने लिखी थी. आम तौर पर कोई संगीतकार लेखक नहीं होता, लेकिन चौधरी जी ने अपने अनुभवों से ऐसी गजब की कहानी रची कि विमल दा को इसे बनाने का मन हुआ. फिल्म का दूसरा अहम पहलू इसके नायक बलराज साहनी थे. संभ्रांत परिवार से आने के बावजूद उन्होंने किसान और रिक्शा खींचने वाले मजदूर की भूमिका इतनी ईमानदारी से निभाई कि दर्शक यकीन कर बैठे. इसके लिए वे असली रिक्शा चालकों के साथ रहे, उनके साथ खाया-सोया और सीखा कि रिक्शा कैसे खींचा जाता है. 

आगे कहा, "फिल्म का वह प्रसिद्ध दृश्य, जिसमें बलराज साहनी रिक्शा लेकर दौड़ते हैं, आज भी सिनेमा का सबसे यथार्थवादी दृश्य माना जाता है. यही वजह है कि ‘दो बीघा जमीन' ने न केवल फिल्मफेयर का बेस्ट फिल्म अवॉर्ड जीता बल्कि हिंदी सिनेमा की दिशा भी बदल दी. यह हर फिल्म प्रेमी और सिनेमा पढ़ने वालों के लिए अनिवार्य फिल्म है".

सत्तर साल बाद 'दो बीघा जमीन' का वेनिस में गूंजना सिर्फ़ एक क्लासिक की वापसी नहीं, बल्कि भारतीय सिनेमा के उस दौर को सलाम है, जिसने यथार्थवाद को दुनिया भर में पहचान दिलाई.

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