
एआर रहमान भारत का गौरव हैं. वह एक मात्र भारतीय हैं, जिन्होंने दो अकादमी अवार्ड जीता है. बहुत कम लोग जानते हैं कि रहमान हिंदू थे और अपने पिता के निधन के बाद उन्होंने धर्म परिवर्तन कर लिया था. जी हां, रहमान का जन्म एक पारंपरिक हिंदू परिवार में हुआ था. आइए जानें कि उनके इस्लाम धर्म अपनाने के पीछे क्या कारण थे. बता दें कि तमिलनाडु के मद्रास में दिलीप कुमार राजगोपाला के रूप में जन्मे रहमान ने चार साल की उम्र में पियानो सीखकर संगीत की दुनिया में कदम रखा. उनके पिता आर.के. शेखर, एक फिल्म स्कोर संगीतकार थे.
जब रहमान नौ साल के थे उनके पिता का निधन हो गया. अपने पिता के संगीत उपकरणों के किराएसे परिवार का खर्चा चलने लगा. अपने पूरे परिवार की जिम्मेदारी रहमान पर आ गई, जिन्होंने पढ़ाई के साथ-साथ आय के लिए छोटे-मोटे काम भी किए. काम करना बंद न कर पाने के कारण रहमान अक्सर क्लास मिस कर देते थे और परीक्षाओं में फेल हो जाते थे.
इस वजह से बदला धर्म
गरीबी से त्रस्त स्थिति ने रहमान को इतना परेशान कर दिया कि उन्होंने अपनी सारी उम्मीदें खो दीं. यह वह क्षण था जब वह एक प्रसिद्ध सहकर्मी, कादरी साहब से मिले और उनके मूल्यों और शिक्षाओं से प्रभावित हुए. इसलिए, उन्होंने 23 साल की उम्र में अपनी मां और बहनों के साथ इस्लाम धर्म अपनाने का फैसला किया. करण थापर के साथ एक पुराने साक्षात्कार में, रहमान ने अपने धर्म परिवर्तन के बारे में बात की और कहा, ‘एक सूफी था जो मरने से कुछ दिन पहले उसका इलाज कर रहा था. हम बाद में 7-8 साल बाद उससे मिले और तब हमने एक और आध्यात्मिक मार्ग अपनाया जिसने हमें शांति दी.'
हिंदू ज्योतिष ने रखा नाम
रहमान और उनकी मां हिंदू धर्म को मानते थे और हबीबुल्लाह रोडहाउस की दीवारों पर हिंदू देवताओं की तस्वीरें थीं, जहां वे बड़े हुए थे. इस्लाम धर्म अपनाने के बाद रहमान ने अपना नया नाम 'अब्दुल रहमान' अपना लिया, क्योंकि उन्हें अपना असली नाम दिलीप कुमार पसंद नहीं था. दिलचस्प बात ये है कि रहमान को उनका नया नाम एक हिंदू ज्योतिषी से मिला था.
चाहते थे आत्महत्या करना
एआर रहमान के पिता की मृत्यु ने उन्हें अंदर तक तोड़ दिया. यह उनके जीवन का सबसे बड़ा सदमा था, जिसने उन्हें बदल दिया. हिंदुस्तान टाइम्स के साथ एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया, "25 साल की उम्र तक, मैं आत्महत्या के बारे में सोचता था. हममें से ज़्यादातर को लगता है कि यह काफ़ी नहीं है. क्योंकि मैंने अपने पिता को खो दिया था, एक खालीपन था...बहुत सी चीज़ें हो रही थीं. लेकिन इसने मुझे एक तरह से ज़्यादा निडर बना दिया. मृत्यु हर किसी के लिए एक स्थायी चीज है. चूंकि हर चीज़ की एक समाप्ति तिथि होती है, तो किसी भी चीज़ से क्यों डरना."
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