Top 10 Court Room Drama Movies: ये हैं बॉलीवुड की 10 बेहतरीन कोर्ट रूम ड्रामा फिल्में

Top 10 Court Room Drama Movies: बॉलीवुड की कई फिल्मों में भी अदालत की कार्यवाहीको बहुत अहम स्थान दिया गया है.

Top 10 Court Room Drama Movies: ये हैं बॉलीवुड की 10 बेहतरीन कोर्ट रूम ड्रामा फिल्में

Top 10 Court Room Drama Movies: कोर्ट रूम ड्रामा फिल्में

नई दिल्ली:

Top 10 Court Room Drama Movies: ‘मैं गीता पर हाथ रखकर कसम खाता हूं.....' अदालत में खड़े गवाह का इस तरह से कसम खाना हमने फिल्मों में कई बार देखा होगा. असली अदालत से तो कम ही लोगों को पाला पड़ता है, लेकिन फिल्मों ने लकड़ी का हथौड़ा ठोंकते हुए ‘साइलेंस-साइलेंस' कहने वाले ‘मीलॉर्ड' की तस्वीर हमारे जेहन में बैठा दी है. कोर्ट की कार्यवाही हमारे समाज और न्यायतंत्र का बहुत ही अहम हिस्सा है. शायद इसीलिए बॉलीवुड की कई फिल्मों में भी अदालत की कार्यवाही को बहुत अहम स्थान दिया गया है. कुछ फिल्में तो ऐसी है जिनका क्लाइमेक्स या सबसे अहम भाग ही कोर्ट सीन रहा है. यहां हम बॉलीवुड के 10 बेहतरीन कोर्ट रूम ड्रामा फिल्मों की बात करेंगे.

एक रुका हुआ फैसला (1986)

कोर्ट रूम ड्रामा फिल्मों की फेहरिस्त की शुरुआत एक ऐसी फिल्म से करते हैं जिसके बारे में चर्चा कम ही की गई है. ‘एक रुका हुआ फैसला' एक अंडररेटेड फिल्म है, लेकिन फिल्म का कंटेंट इतना दमदार है कि इसे बेहतरीन कोर्टरूम ड्रामा फिल्मों में शामिल किया जाना बहुत जरूरी है. ये कहानी उस वक्त की है जब किसी फैसले पर पहुंचने के लिए प्रतिष्ठित लोगों की ज्यूरी की मदद ली जाती थी. इस फिल्म में हत्या के एक मामले को लेकर ज्यूरी के सदस्यों के बीच तनाव, कशमकश, न्याय के लिए उनकी प्रतिबद्धता को बहुत ही बेहतरीन ढंग से दिखाया गया है. पंकज कपूर, अन्नू कपूर, के के रैना, एम के रैना जैसे मंझे हुए कलाकारों के अभिनय ने इस फिल्म को एक मास्टरपीस बना दिया है. खास बात ये है कि फिल्म की शूटिंग केवल एक कमरे में की गई है. फिल्म का निर्देशन बासु चटर्जी ने किया है.

आर्टिकल 375 (2019)

पुरानी फिल्म के बाद अब बात हाल ही बनी एक बेहतरीन कोर्टरूम ड्रामा फिल्म की करते हैं. अजय बहल द्वारा निर्देशित आर्टिकल 375 की कहानी बलात्कार के एक केस के इर्द-गिर्द घूमती है. इस केस में सारे सुबूत आरोप आरोपी के खिलाफ होते हैं, लेकिन हकीकत ब्लैक एंड व्हाइट के बीच में ‘ग्रे एरिया' में होती है. फिल्म में कोर्ट की कार्यवाही बिना किसी फालतू लाग लपेट के दिखाने की कोशिश की गई है. ये फिल्म बलात्कार जैसे घृणित अपराध से जुड़े एक अन्य पक्ष को भी सामने लाती है. फिल्म में अक्षय खन्ना और ऋचा चड्ढा ने वकील की भूमिका बेहद प्रभावी ढंग से निभाई हैं.

पिंक (2016)

‘नो... मीन्स नो.' फिल्म में वकील की भूमिका निभा रहे अमिताभ बच्चन का ये डायलॉग काफी प्रभावी साबित हुआ था. ये फिल्म भी बलात्कार जैसे संवेदनशील मुद्दे को लेकर बनाई गई थी.  अमिताभ के अलावा तापसी पन्नू, कीर्ति कुल्हारी के दमदार अभिनय से सजी इस फिल्म में समाज की उस पुरुषवादी मानसिकता पर चोट की गई थी, जो किसी महिला के चरित्र को उसके कपड़ों या जीवनशैली से तय करता है.

जॉली एलएलबी (2013)

इस फिल्म में दर्शकों को हंसाने के लिए भरपूर मसाला है, लेकिन फिल्म एक गंभीर संदेश भी देती है. अपनी पहचान और रोजी रोटी के लिए संघर्ष कर रहा नवोदित वकील जॉली कैसे एक हाई प्रोफाइल ‘हिट एंड रन' केस से जुड़ जाता है और कैसे ये नौसिखिया वकील ताकतवर सिस्टम से टकराता है ये देखना बेहद दिलचस्प है. फिल्म की जान जज की भूमिका निभा रहे सौरभ शुक्ला का काम है. जज का ये किरदार आपको गुदगुदाएगा भी और सोचने पर भी मजबूर कर देगा. निर्देशन सुभाष कपूर का है.

जॉली एलएलबी-2 (2017)

जॉली एलएलबी की ही तरह ये भी सुभाष कपूर द्वारा निर्देशित एक कॉमेडी कोर्ट रूम ड्रामा है, जो एक गंभीर संदेश भी देता है. इस बार सुभाष कपूर ने अरशद वासरी के बजाय अक्षय कुमार और बोमन ईरानी के बजाय अन्नू कपूर को लिया था. लेकिन जज त्रिपाठी के रूप में सौरभ शुक्ला का जादू इसमें भी कायम है. एक गैरसंजीदा वकील जॉली (अक्षय कुमार) कैसे एक फर्जी एनकाउंटर के मुकदमे से जुड़ जाता है इसी पर आधारित है ये कहानी. अन्नू कपूर, सौरभ शुक्ला, कुमुद मिश्रा ने अपने अभिनय से फिल्म में जान फूंक दी है.

दामिनी (1993)

अदालत में वकील का चोगा पहनकर जब सनी देओल “तारीख पर तारीख.... ” वाला डायलॉग बोलते हैं तो सिनेमा हॉल तालियों से गूंज उठता है. हालांकि राजकुमार संतोषी की ये फिल्म रियल कोर्ट से अलग कुछ नाटकीयता लिए हुए था, लेकिन फिर भी इसके संवेदनशील संवादों की वजह से दर्शकों ने इस फिल्म को खूब पसंद किया. फिल्म एक घरेलू नौकरानी के रेप के मामले के इर्द-गिर्द घूमती है. इस घटना को मुख्य गवाह ‘दामिनी' यानि मीनाक्षी शेषाद्रि को किन मुसीबतों का सामना करना पड़ता है इसी पर फिल्म आधारित है. सनी देओल और अमरीश पुरी के बीच अदालत के संवाद इस फिल्म का प्रमुख आकर्षण है.

ओ माय गॉड (2012)

उमेश शुक्ला द्वारा निर्देशित ये फिल्म धर्म के नाम पर समाज में फैलाए गए पाखंड पर चोट करती है. नास्तिक कांजी (परेश रावल) की दुकान भूकंप के कारण ढह जाती है और इंश्योरेंस कंपनी इसे एक्ट ऑफ गॉड करार देकर इंश्योरेंस राशि का भुगतान करने से इंकार कर देती है. परेशान कांजी इसे लेकर भगवान पर मुकदमा दायर कर देता है. इसे अनोखे मुकदमे के कारण कई लोगों की पोल खुलती है और कोर्ट रूप में हंसी के फव्वारे भी छूटते हैं. ये फिल्म तेलगु में भी गोपाला-गोपाला के नाम से बनाई गई है. जिसमें तेलगु सुपरस्टार वैंकटेश ने परेश रावल वाला रोल किया है, तो पवन कल्याण ने अक्षय कुमार की तरह भगवान की भूमिका निभाई है.

रुस्तम (2016)

ये फिल्म नौसेना के एक अधिकारी के जीवन से जुड़ी सत्य घटना पर आधारित बताई जाती है. नौसेना का ये अधिकारी एक व्यक्ति की गोली मारकर हत्या कर देता है और खुद को कानून के हवाले कर देता है. अब ज्यूरी को इस बात का फैसला करना होता है कि ये एक सुनियोजित हत्या है या फिर आत्मरक्षा में हुए एक अप्रत्याशित घटना.

ऐतराज (2004)

अब्बास-मस्तान की इस फिल्म में कोर्ट की कार्यवाही काफी प्रमुखता से दिखाई गई है. फिल्म की कहानी बलात्कार के एक झूठे आरोप को लेकर बुनी गई है. इस फिल्म में प्रियंका चोपड़ा का किरदार एक नेगेटिव शेड लिए हुए है, जो अपने पूर्व प्रेमी अक्षय कुमार पर बलात्कार का झूठा आरोप लगा देती है. करीना कपूर जो अक्षय कुमार की पत्नी होने के साथ एक वकील भी है अपने पति के बचाव में खड़ी हो जाती है.

मेरी जंग (1985)

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शोमैन सुभाष घई की ये फिल्म वैसे तो काफी नाटकीयता लिए हुए है, लेकिन अनिल कपूर और अमरीश पुरी के बीच संवादों की जंग ने इस फिल्म को काफी दिलचस्प बना दिया. फिल्म के एक दृश्य में वकील की भूमिका निभा रहे अनिल कपूर जहर दिए जाने के आरोप को झुठलाने के लिए भरे कोर्ट रूम में जहर पी लेते हैं. इस फिल्म का एक बड़ा हिस्सा कोर्ट रूम में शूट किया गया है, लिहाजा इसे कोर्ट रूम ड्रामा की लिस्ट में शामिल किया जा सकता है.