
एक वक्त था जब बॉलीवुड पर एक्शन फिल्मों का राज था. पोस्टरों पर बस बंदूकें, घूंसे और बदला नजर आता था. लेकिन तभी एक दिन यश चोपड़ा अपनी कार में सफर कर रहे थे और उन्हें एहसास हुआ कि इन लड़ाई-झगड़ों के बीच कहीं प्यार खो गया है और बस, उसी पल उन्होंने तय कर लिया कि अब वक्त है रोमांस को फिर से जिंदा करने का...और यूं जन्म हुआ चांदनी का.
कर्ज में डूबे यश चोपड़ा का रोमांटिक दांव
साल 1988 में विजय और फासले जैसी फिल्मों की नाकामी से यश चोपड़ा बुरी तरह टूट चुके थे. उन पर कर्ज का बोझ था और दिल में गहरा मलाल. तब उन्होंने फैसला किया कि वो एक ऐसी फिल्म बनाएंगे जो उनके करियर को नई दिशा देगी. रोमांस उनका फोर्टे था और उन्होंने उसी पर भरोसा किया. नतीजा थी चांदनी जो साल 1989 में रिलीज हुई और बस छा गई.
श्रीदेवी बनीं बॉलीवुड की असली चांदनी
जब स्क्रीन पर श्रीदेवी आईं तो मानो जादू चल गया. उनकी मासूमियत, नजाकत और अदाएं दर्शकों के दिलों में उतर गईं. चांदनी सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि यश चोपड़ा का प्यार से लिखा गया खत थी, जिसे श्रीदेवी ने अपनी अदाकारी से अमर कर दिया.
कहानी, म्यूजिक और स्टाइल सब कुछ सुपरहिट
चांदनी में एक नहीं, बल्कि दो हीरो थे, ऋषि कपूर और विनोद खन्ना. एक था रोमांटिक प्रेमी, दूसरा समझदार और सहारा देने वाला इंसान. लेकिन असली नायिका थी खुद चांदनी. एक आत्मनिर्भर और मजबूत औरत जो अपनी जिंदगी के फैसले खुद लेती है. फिल्म के गाने, म्यूजिक, और श्रीदेवी का व्हाइट लुक सब ट्रेंड बना. डिजाइनर लीना दरू के बनाए गए सफेद चूड़ीदार-कुर्ते और लेहरिया दुपट्टे उस वक्त हर लड़की की पसंद बन गए. दिल्ली के चांदनी चौक से लेकर मुंबई की दुकानों तक हर जगह 'चांदनी आउटफिट' बिकने लगे.
‘चांदनी' ने लौटाया बॉलीवुड का रोमांस
यश चोपड़ा का ये रोमांटिक दांव चल गया. चांदनी न सिर्फ सुपरहिट रही बल्कि इसने यशराज फिल्मों को नई जान दी. इस फिल्म के बाद फिर से बॉलीवुड में रोमांटिक म्यूजिकल्स का दौर लौट आया और तब से लेकर आज तक जब भी चांदनी की बात होती है. लोगों के जहन में श्रीदेवी की मुस्कुराहट, सफेद साड़ी और बारिश में वो गाना गूंज उठता है 'मेरे हाथों में नौ नौ चूड़ियां है'..
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