बड़े पर्दे पर किसी ऐतिहासिक फिल्म को देखना यानी कि खुद उस वक्त में पहुंच जाना. उस दौर के इतिहास को रियल बनाने के लिए अच्छे मेकर्स सारे इंतजाम करते हैं. आलीशान और बुलंद किले तानते हैं. युद्ध के इफेक्ट्स को रियल बनाने के लिए हाथी और घोड़ों का इस्तेमाल होता है. लीड कैरेक्टर से लेकर कुछ वक्त के लिए स्क्रीन पर दिखने वाले किरदार तक की पोशाकों और ज्वेलरी पर काम होता है. एक एक ड्रेस और ज्वेलरी पर बारीक काम करने के लिए मेकर्स जमीन आसमान एक कर देते हैं.
मुगल-ए-आजम
15वीं सदी के दौर को जिंदा करने के लिए फिल्म मेकर के. आसिफ ने माखनलाल एंड कंपनी को काम सौंपा था. दिल्ली से खास टेलर बुलवाकर कपड़े तैयार करवाए गए. जूतों के लिए आगरा से कलाकार आए और ज्वेलरी हैदराबाद से तैयार हुई.
जोधा अकबर
ऐश्वर्या को जोधा के रूप में पेश करने और ऋतिक रोशन को अकबर सा ग्रेट दिखाने के लिए डिजाइनर नीता लुल्ला ने कई दिनों तक अकबरनामा का अध्ययन किया था. इस किताब की हर एक तस्वीर को बारीकी से समझ कर ड्रेस और ज्वेलरी तैयार की गई.
बाजीराव मस्तानी
इस फिल्म में ड्रेस और ज्वेलरी डिजाइनिंग का काम संभाल रहीं अंजू मोदी ने चार सौ साल पुराने इतिहास पर रिसर्च कर लुक तैयार किए थे. बाजीराव के लिए मराठा लुक की स्टडी की गई थी और मस्तानी के लिए निजामी डिजाइनिंग समझी गई थी.
देवदास
शाहरुख खान और ऐश्वर्या राय को देवदास और पारो बनाने के लिए तीन तीन डिजाइनर्स ने दिन रात मेहनत की. 1930 से 1940 के दशक के बीच की बंगाली संस्कृति समझने के लिए नीता लुल्ला, अबू जानी-संदीप खोसला और रेजा शरीफी ने मिलकर काम किया.
डिटेक्टिव ब्योमकेश बख्शी
फिल्म में डिटेक्टिव बने सुशांत सिंह राजपूत को बंगाली लुक देने के लिए डिजाइनर वंदना कटारिया ने 40 के दशक के बंगाली कल्चर पर बेस्ड ढेरों किताबें पढ़ीं. उसके बाद सुशांत सिंह राजपूत का लुक फाइनल किया गया.
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