
एक्ट्रेस नरगिस पर्दे पर अपनी छाप छोड़ने वाली सबसे महान अभिनेत्रियों में से एक थीं. उनकी प्रतिभा और सुंदरता ने उन्हें अपने समय की अभिनेत्रियों के बीच ऊंचा स्थान दिलाया. वह मदर इंडिया में एक बूढ़ी मां और एक बिगड़ैल शहरी लड़की (अंदाज़, 1949) के किरदार को समान रूप से सहजता से निभा सकती थीं. उन्होंने कई फिल्मों में काम किया और राज कपूर के साथ उनकी कई फिल्में हिंदी सिनेमा की क्लासिक फिल्मों में गिनी जाती हैं. हालांकि उनका जीवन हमेशा उथल-पुथल भरा रहा. राज के साथ उनका रिश्ता लंबे समय तक चला, जिसका अंत अच्छा नहीं रहा.
राज और नरगिस की प्रेम कहानी उनकी फिल्मों की तरह ही हिंदी सिनेमा के इतिहास का हिस्सा बनी रही. हालांकि, उनका सच्चा प्यार वह व्यक्ति था जिससे उन्होंने शादी की - वह थे सुनील दत्त. किश्वर देसाई की किताब, डार्लिंगजी- द ट्रू लव स्टोरी ऑफ़ नरगिस एंड सुनील दत्त के अनुसार, जब 1957 में सुनील नरगिस के जीवन में आए तो वह इतनी टूट चुकी थीं कि उनके मन में आत्महत्या के विचार आ रहे थे. लेकिन तभी मदर इंडिया के सेट पर वह आग के चपेट में आ गई थीं, तब सुनील दत्त ने उन्हें बचाया था. इसी दौरान दोनों के बीच प्यार पनपा. सुनील को गंभीर चोटें आई थीं. उनकी देखभाल करते हुए ही नरगिस ने अपने जीवन की हर छोटी-बड़ी बात उनके साथ साझा की और उन्हें सुनील से प्यार हो गया.
किश्वर की किताब, जो नरगिस की निजी डायरियों से संकलित की गई है, बताती है कि कैसे नरगिस मानती थीं कि अगर सुनील उनकी ज़िंदगी में नहीं आते, तो 8 मार्च तक उनकी मौत हो जाती. "अगर वह नहीं होते, तो शायद मैं 8 मार्च से पहले ही अपनी जान दे देती, क्योंकि सिर्फ़ मैं ही जानती हूं कि मेरे अंदर क्या उथल-पुथल चल रही थी. 'मैं चाहता हूं कि तुम ज़िंदा रहो,' उन्होंने कहा और मुझे लगा कि मुझे जीना है. सब कुछ फिर से शुरू करो."
नरगिस को सुनील की ओर इस बात ने आकर्षित किया कि वह उनके लिए कुछ करने वाले पहले व्यक्ति थे. वह ऐसी इंसान थीं जो या तो अपने परिवार के लिए या राज के लिए कुछ करती थीं. किश्वर लिखती हैं, "जब वह उनके बिस्तर के पास बैठीं, तो उन्हें एहसास हुआ कि आग से उन्हें बाहर निकालने के उनके साहस ने उन्हें प्रभावित किया था. यह बड़ी बात थी, जब किसी ने उनके लिए कुछ त्याग किया था. वह हमेशा दूसरों के लिए कुछ न कुछ करती थीं, चाहे वह अपने परिवार के लिए हो या राज के लिए..."
राज के साथ अपने नौ साल के रिश्ते के दौरान, नरगिस को एहसास हुआ कि राज उनके लिए अपना परिवार छोड़ने को तैयार नहीं थे. उसका अपना परिवार उसे सिर्फ़ 'पैसा कमाने वाली मशीन' समझता था. सुनील ही वह पहले व्यक्ति थे जिन्होंने उनके साथ एक 'सामान्य इंसान' जैसा व्यवहार किया, इतना कि उन्होंने अपना अतीत उनके सामने खोलकर रख दिया. अंततः 1958 में उनकी शादी हुई. नरगिस अपना आलीशान घर छोड़कर दत्त साहब और उनके परिवार के साथ एक बेडरूम वाले घर में रहने लगीं. नरगिस का 1981 में 51 वर्ष की आयु में अग्नाशय के कैंसर से निधन हो गया. उनकी मृत्यु के एक वर्ष बाद सुनील दत्त ने उनकी स्मृति में नरगिस दत्त मेमोरियल कैंसर फाउंडेशन की स्थापना की.
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