Bollywood Gold: जिंदगी के सफर में गुज़र जाते हैं जो मकां, वो फिर नहीं आते, एक पंक्ति जो जीवन का सार लगती है. यह और इसी तरह की कितनी ही पंक्तियां निकली हैं गीतकार आनंद बख्शी (Anand Bakshi) की कलम से. आनंद साहब के लिए कहा जाता है कि वो कहीं भी और कभी भी गाना लिख सकते थे. किसी के मुंह से निकली कोई बात हो या किसी के हाव-भाव, आनंद साहब मिनटों में गाना बना देते थे. ऐसी ही एक कमाल की कहानी है मार दिया जाए या छोड़ दिया जाए गाने के पीछे. आइए जानते हैं यह किस्सा.
1971 में रिलीज हुई फिल्म मेरा गांव मेरा देश बड़े परदे पर आई तो ब्लॉकबस्टर साबित हुई. इस फिल्म में आशा पारेख, विनोद खन्ना और धर्मेंद्र (Dharmendra) मुख्य किरदारों में थे और फिल्म को डायरेक्ट किया था राज खोसला ने. इस फिल्म के सभी गाने सींस के अनुसार बेहद सटीक थे, खासकर मार दिया जाए या छोड़ दिया जाए गाना. असल में इस गाने को लिखने की प्रेरणा आनंद बख्शी साहब को स्कूल में पढ़ी एक कहानी से मिली थी.
लता मंगेशकर को नहीं दे सके 3000, तो मुकेश ने इस फिल्म के लिए 1000 रुपए में गाया यह गाना
मार दिया जाए या छोड़ दिया जाए गाने के संगीतकार थे लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, लिखा आनंद बख्शी ने था और गाया था लगा मंगेशकर (Lata Mangeshkar) ने. अब फिल्म में सीन था कि वैंप ने हीरो को बांध लिया है और बस उसके साथ क्या होगा इसका फैसला लेना है. आनंद साहब को गाना लिखने के लिए स्कूल में पढ़ी एक लाइन याद आई जो उन्होंने एक कहानी में पढ़ी थी जिसमें एलेक्जैंडर ने हिंदूस्तान पर हमला किया था तो पोरस को कैद कर लिया गया था और तब यह सवाल था कि अब क्या किया जाए, मार दिया जाए या उन्हें छोड़ दिया जाए. बस यही लाइन उन्हें याद आई और उन्होंने गाना लिख दिया.
Anand Bakshi ने School में पढ़ी कहानी और लिख दिया यह गाना | Bollywood GoldNDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं