- धर्मेंद्र का जन्म 8 दिसंबर 1935 को पंजाब के लुधियाना जिले के नसराली गांव में एक साधारण परिवार में हुआ था
- उन्होंने 1960 में 'दिल भी तेरा हम भी तेरे' से अपने फिल्मी करियर की शुरुआत की थी और जल्दी ही लोकप्रिय हुए
- 1970 के दशक में धर्मेंद्र एक्शन किंग बने और 'शोले' फिल्म से उन्हें अपार सफलता मिली जो आज भी याद की जाती है
बॉलीवुड की चमक धमक वाली बेरहम दुनिया में, जहां सितारे आतिशबाजी की तरह चमक कर अंधेरे में खो जाते हैं. लेकिन धर्मेंद्र वो सितारे रहे जो जितनी चमक और दृढ़ता के साथ जलते रहे वैसा दूसरों के बूते की बात नहीं थी. 8 दिसंबर 1935 को पंजाब के लुधियाना जिले के नसराली गांव में एक साधारण स्कूल हेडमास्टर के घर जन्मे धरम सिंह देओल यानी धर्मेंद्र खेतों से परे कुछ बड़ा करने के लिए बने थे. 89 साल की उम्र में जब उनका 90वां जन्मदिन सिर्फ एक महीने दूर था, धर्मेंद्र दुनिया को अलविदा कह गए. धर्मेंद्र हमेशा भारतीय सिनेमा के निर्विवाद 'ही-मैन' रहेंगे—ये खिताब सिर्फ मांसपेशियों और गर्जना भरी डायलॉग डिलीवरी की वजह से नहीं है बल्कि जिंदगी भर जुनून, अडिग हिम्मत और दर्शकों से अटूट रिश्ते से कमाया हुआ है.
किशोरावस्था से थोड़ा बाहर निकले धर्मेंद्र गांव के अखाड़ों में पहलवानी करते, गांव की सीमाओं से परे सपने देखते. लेकिन 1958 में फिल्मफेयर के न्यू टैलेंट हंट का एक साधारण अखबारी विज्ञापन सब बदल गया. मलेरकोटला में खिंचवाई फोटो के साथ बॉम्बे (तब का मुंबई) पहुंचे. एक जाट लड़का पंजाब से अपने सपनों को पूरा करने के लिए पहुंचा था. 1960 में दिल भी तेरा हम भी तेरे से डेब्यू भले साधारण रहा, 1961 में 'शोला और शबनम' से चिंगारी भड़की. अनपढ़ (1962) और बंदिनी (1963) ने उनके करियर में जादुई काम किया.
1960 का दशक धर्मेंद्र का रोमांटिक दौर था. वो मैटिनी आइडल बने. फूल और पत्थर (1966) में हैंडसम हीरो. आई मिलन की बेला (1964) और हकीकत (1964) में दिल छू लेने वाले किरदार ने उनकी बहुमुखी प्रतिभा साबित की. ममता (1966) में रोमांस से लेकर इज्जत (1968) में डबल रोल तक. दशक के अंत में सत्यकाम (1969) ने आलोचकों की वाहवाही बटोरी, साबित किया कि वो सिर्फ मसल्स नहीं, गहराई वाले एक्टर हैं.
बॉलीवुड हमेशा बदलता रहता है.उसने उनसे एक्शन की मांग की. 1970 का दशक शुरू हुआ और धर्मेंद्र बन गए एक्शन किंग. मेरा गांव मेरा देश (1971) ने उन्हें रफ-टफ बागी बना दिया, एक और फिल्मफेयर नॉमिनेशन. फिर आया स्वर्ण युग, सीता और गीता (1972), हेमा मालिनी की डबल रोल वाली धमाकेदार हिट; यादों की बारात (1973), सलीम-जावेद की पहली 'मसाला' ब्लॉकबस्टर; जुगनू (1973), एक और चार्टबस्टर. लेकिन कोई भी फिल्म शोले (1975) को मात नहीं दे सकी. वीरू के रूप में, अमिताभ बच्चन के जय के साथ हंसते-मजाक करते धर्मेंद्र ने डायलॉग दिए जो पीढ़ियों तक गूंजते हैं. उस वक्त भारत की सबसे ज्यादा कमाई वाली फिल्म, कुछ थिएटर्स में पांच साल तक चली.
1970 और 1980 के दशक धर्मेंद्र के लिए कामयाबी भरे थे: इस 1987 में धर्मेंद्र ने बैक टू बैक 7 हिट इंसानियत के दुश्मन, लोहा, हुकूमत, आग ही आग, वतन के रखवाले, मर्द की जुबान और जान हथेली पे आई थीं. उनके नाम 74 हिट हैं, जिनमें 7 ब्लॉकबस्टर और 13 सुपरहिट.
धर्मेंद्र की कहानी बॉलीवुड स्क्रिप्ट जैसी थी. 19 साल की उम्र में 1954 में प्रकाश कौर से शादी, सनी, बॉबी, विजेता और अजीता के पिता बने. लेकिन तुम हसीं मैं जवान (1970) के सेट पर हेमा मालिनी से प्यार हुआ. 1980 में दूसरी शादी के लिए इस्लाम कबूल किया (हालांकि वो कहते हैं आर्य समाज रीति से हिंदू ही रहे). हेमा मालिनी से उनकी दो बेटियां ईशा और अहाना देओल हैं. राजनीति में बीजेपी सांसद बने बीकानेर से (2004-2009).
हाल के सालों में धर्मेंद्र ने खूबसूरती से कैरेक्टर रोल्स की ओर रुख किया, अपने (2007) में बेटों के साथ सीन चुराए, यमला पगला दीवाना ट्राइलॉजी (2011-2018), और रॉकी और रानी की प्रेम कहानी (2023) में शानदार परफॉर्मेंस दी.
89 की उम्र में भी वे अपने फार्महाउस पर खूब इंजॉय करते थे. फैन्स के साथ सोशल मीडिया के जरिये कनेक्ट रहते थे धर्मेंद्र वो ही पंजाब दे पुत्तर है जो जड़ों से जुड़े, दिल से जवान थे. बॉलीवुड बदल गया, लेकिन ही-मैन का जादू नहीं. जैसा वो कहते थे, 'मैं अब भी लड़ सकता हूं.' इसमें कोई शक नहीं, क्योंकि धर्मेंद्र सिर्फ एक्टर नहीं, एक युग हैं...
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