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Dhadak 2 Review In Hindi: रिलीज हुई सिद्धांत चतुर्वेदी और तृप्ति डिमरी की धड़क 2, पढ़ें रिव्यू

Dhadak 2 Review In Hindi: 1 अगस्त को सिद्धांत चतुर्वेदी और तृप्ति डिमरी की धड़क 2 सिनेमाघरों में रिलीज हो गई हैं. यहां पढ़ें फिल्म का रिव्यू

Dhadak 2 Review In Hindi: रिलीज हुई सिद्धांत चतुर्वेदी और तृप्ति डिमरी की धड़क 2, पढ़ें रिव्यू
Dhadak 2 Review: धड़क 2 का हिंदी रिव्यू
नई दिल्ली:

कास्ट – सिद्धांत चतुर्वेदी, तृप्ति डिमरी, साद बिलग्रामी, ज़ाकिर हुसैन, सौरभ सचदेव, आदित्य ठाकरे, विपिन शर्मा।
निर्देशक – शाजिया इक़बाल
बैकग्राउंड स्कोर – तनुज टिक्कू
लेखक – शाजिया इक़बाल, राहुल बड़वेलकर
सिनेमेटोग्राफी – सिल्वेस्टर फोंसेका

कहानी

एक दलित युवक (सिद्धांत चतुर्वेदी) लॉ कॉलेज में पढ़ाई करने आता है जहां उसकी मुलाक़ात एक उच्च जाति की लड़की (तृप्ति डिमरी) से होती है. दोनों के बीच दोस्ती होती है जो धीरे-धीरे मोहब्बत में बदल जाती है. लेकिन ये प्रेम सामाजिक बंधनों और जातिगत पूर्वाग्रहों से घिरा होता है. कॉलेज का माहौल, समाज की सोच और लड़की के परिवार की सख़्त सोच दोनों के रिश्ते के सामने बड़ी दीवार बन जाती है. कहानी उन संघर्षों की है, जहाँ प्यार और आत्म-सम्मान के बीच लड़ाई होती है, और हर मोड़ पर सिस्टम, परंपरा और असमानता सवाल बनकर खड़ी होती है.

खास बात

यह फिल्म तमिल फ़िल्म परियेरुम पेरुमल का रीमेक है और जातिवाद के ख़िलाफ़ एक सशक्त आवाज़ उठाती है. फ़िल्म देखकर इस बात पर बहस हो सकती है कि क्या आज भी ऐसा होता है, या फिर यह फ़िल्म किसी मक़सद से बनाई गई है? या यह सब हम बीते सालों में फ़िल्मों में काफ़ी देख चुके हैं? ये सारी बहसें अपनी जगह, लेकिन फिल्मकार को किसी भी विषय को किसी भी दौर में अपने अंदाज़ में कहने का पूरा हक़ है. बाक़ी फ़ैसला दर्शकों का है कि उन्हें यह फ़िल्म कैसी लगती है. बेहतर होगा कि इसे न्यूट्रल होकर सिर्फ़ सिनेमा के नज़रिए से परखा जाए.

कमियां

1. फ़िल्म पहले ही सीन में साफ़ कर देती है कि इसका ध्येय जातिवाद के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाना है. प्रेम कहानी इसका एक पहलू बन जाती है, जिससे दर्शकों को लग सकता है कि यह फ़िल्म प्रेम कहानी में जातिवाद का संघर्ष नहीं है, बल्कि जातिवाद में फँसी एक प्रेम कहानी है.
2. फ़िल्म का पहला हाफ़ इधर-उधर भटकता है. नैरेटिव और स्क्रीनप्ले में गड़बड़ है, और सिर्फ़ जातिवाद को अलग-अलग तरीक़े से दर्शाया जाता है, जिससे कहानी आगे बढ़ती हुई नहीं लगती.
3. हर सीन में फ़िल्म बहुत ज्ञान देती है. जातिवाद को लेकर इतनी स्पून-फ़ीडिंग है कि आपको महसूस होता है – हमें समझ आ गया कि आप क्या कहना चाहते हैं, अब आगे बढ़िए.
4. सौरभ सचदेव का किरदार अधूरा लगता है – उसका इतिहास, उसकी सोच और उसके एक्शन के पीछे ठोस कारण नहीं दिए गए हैं. ऐसा लगता है जैसे कहानी की सुविधा के लिए किरदार खड़ा कर दिया गया, लेकिन उसे ज़मीन नहीं दी गई.
5. फर्स्ट हाफ में फ़िल्म खिंचती है, ड्रैग करती है. कुछ सीन क्लिशे लगते हैं और फ़िल्म की लंबाई बढ़ाते हैं, मिसाल के तौर पर – जब तृप्ति का किरदार छत पर नील को अपना अतीत बताता है.

ख़ूबियां

1. आज के मसाला और ‘लार्जर दैन लाइफ' फ़िल्मों के दौर में सामाजिक सरोकार वाला विषय उठाना प्रशंसनीय है और धर्मा जैसी प्रोडक्शन हाउस का इस विषय को छूना वाक़ई तारीफ़ के क़ाबिल है.
2. फ़िल्म के दृश्य प्रभावशाली हैं और दिल को छूते हैं.
3. निर्देशक शाजिया में अच्छे निर्देशक के गुण हैं, पर उन्हें कहानी को बिना खींचे कहने और स्क्रीनप्ले में कसाव बनाए रखने के अपने क्राफ्ट को और निखारने की ज़रूरत है.
4. फ़िल्म में सिद्धांत ने बेहतरीन काम किया है और बहुत सहज तरीक़े से उन्होंने अभिनय किया है. तृप्ति डिमरी कई दृश्यों में उभरकर आती हैं और उनका काम ठीक है.
5. विपिन शर्मा, ज़ाकिर हुसैन, आदित्य और साद ने अपने-अपने किरदारों के साथ न्याय किया है.
6. फ़िल्म के गाने अच्छे हैं और सेकंड हाफ में फ़िल्म बेहतर और कसी हुई लगती है.

कुल मिलाकर – मसले और सामाजिक सरोकार रखने वाली फ़िल्मों की कुछ वक़्त से कमी थी, और ऐसी फ़िल्में आनी भी चाहिए और चलनी भी चाहिए. दर्शक इस फ़िल्म को देख सकते हैं. 

स्टार- 3 स्टार

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