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जाट में Sunny Deol से टकराने के बाद इस एक्टर ने थामी कलम, अब दर्शकों के सामने लाएंगे कास्टिंग काउच का काला सच

जाट फिल्म का ये एक्टर ने बंदूक की जगह हाथ में कलम थाम ली है और वो कुछ ऐसी कहानियां लेकर आ रहे हैं जो दिल को छूकर निकल जाएंगी.

जाट में Sunny Deol से टकराने के बाद इस एक्टर ने थामी कलम, अब दर्शकों के सामने लाएंगे कास्टिंग काउच का काला सच
सनी देओल की जाट एक्टर ने थामी कलम
  • साल 2025 में रिलीज हुई जाट फिल्म में सनी देओल एक्शन अवतार में थे, जबकि रणदीप हुड्डा ने प्रभावशाली भूमिका निभाई थी.
  • रणदीप हुड्डा अब ऑनस्क्रीन बंदूक की जगह असल जिंदगी में लेखन को अपना क्रिएटिव हथियार बना चुके हैं.
  • वे मुंबई के अंधेरी, वर्सोवा और आराम नगर पर आधारित शॉर्ट स्टोरीज की सीरीज पर काम कर रहे हैं, जो इंसानी भावनाओं को दर्शाती हैं.
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नई दिल्ली:

साल 2025 में एक फिल्म रिलीज हुई. इस फिल्म में सनी देओल एक्शन अवतार में नजर आए. उन्हें टक्कर देने के लिए ऐसा ऐसा एक्टर आया जिसे किरदार में पूरी तरह उतर जाने के लिए पहचाना जाता है. इस एक्शन फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर एवरेज कारोबार किया, लेकिन फैन्स ने इसकी जमकर तारीफ की. जाट फिल्म का अब ये एक्टर ऑनस्क्रीन बंदूक थामने की बजाय असल जिंदगी में कलम को अपना हथियार बना चुका है. ये एक्टर कोई और नहीं बल्कि जाट का राणातुंगा है. रणदीप हुड्डा ने बताया कि भले ही एक्टिंग उनका पहला प्यार है, लेकिन लेखन उनके लिए सबसे संतोषजनक क्रिएटिव प्रोसेस बन गया है, जहां वह अपने दिल से जुड़ी कहानियों को लिख पा रहे हैं.

जाट एक्टर रणदीप हुड्डा अपने अनुभवों और आस-पास देखी गई बातों को कहानियों में बदल रहे हैं, जिनमें इंसानी भावनाओं की गहराई और उनके आसपास की दुनिया का सच झलकता है. वह फिलहाल मुंबई के अंधेरी में वर्सोवा और आराम नगर पर आधारित शॉर्ट स्टोरीज की सीरीज पर काम कर रहे है. इन कहानियों में हर रविवार सड़क किनारे खड़े बांसुरी वाले की कहानी, मुंबई में स्ट्रगल करते एक्टर्स का सफर, कास्टिंग काउच की कड़वी सच्चाई और ऐसी कई कहानियां शामिल हैं, जिन्हें अक्सर देखा तो जाता है, लेकिन शायद ही कोई सुनाता है.

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जाट एक्टर रणदीप हुड्डा ने अपने इस नए सफर के बारे में कहा, 'इन सालों में मैंने लेखन से गहरा जुड़ाव महसूस किया है. यह किसी भी क्रिएटिव प्रोसेस का सबसे अच्छा हिस्सा बन गया है. एक्टिंग में मैं दूसरों की लिखी कहानियों का हिस्सा बनता हूं, लेकिन लेखन में मैं अपनी देखी और महसूस की गई कहानियां खुद गढ़ सकता हूं. वर्सोवा और आराम नगर इंसानी महत्वाकांक्षा और सर्वाइवल के गवाह रहे हैं, और मैं इन कहानियों को सामने लाना चाहता था.

रणदीप हुड्डा ने कहा कि 'हर रविवार मैं एक बांसुरी वाले को देखता हूं, जो एक ही कोने पर खड़ा होकर बांसुरी बजाता है, जिसकी धुनें शहर की आवाजों में कहीं खो जाती हैं. उसके पीछे एक दुनिया है, स्ट्रगल कर रहे एक्टर्स, रोज की चुनौतियां, छोटे-छोटे सपने और टूटते दिल. इन कहानियों को लिखना मुझे एक उद्देश्य और हमारे आसपास की जिंदगी की परतों को समझने का मौका देती है.'
 

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