
आज टेक्नॉलॉजी और वीएफएक्स की मदद से फिल्मों में किसी भी तरह की काल्पनिक दुनिया को आसानी से दिखाया जा सकता है. स्क्रीन पर सब कुछ इतना वास्तविक लगता है मानो सच हो. लेकिन 80 के दशक में, जब वीएफएक्स नहीं था, तब एक सीन तैयार करना बेहद मुश्किल था. उस समय 50 लोगों को 100 की भीड़ दिखाने के लिए डायरेक्टर्स को गजब की तरकीबें सोचनी पड़ती थीं. आज 10 लोगों को 100 की भीड़ में बदलना आसान है, लेकिन तब यह बड़ा चुनौतीपूर्ण था. फिर भी, डायरेक्टर्स की रचनात्मकता ने कमाल कर दिखाया. ऐसा ही एक शानदार उदाहरण है 1985 में रिलीज हुई फिल्म 'अर्जुन' का.
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'अर्जुन' में एक रोमांचक सीन है, जिसमें चारों तरफ छाते ही छाते नजर आते हैं. इस सीन में डायरेक्टर को 2000 लोगों की भीड़ दिखानी थी, लेकिन उनके पास सिर्फ 1000 लोग थे. डायरेक्टर ने चतुराई दिखाते हुए हर व्यक्ति को दो-दो छाते पकड़ा दिए. चूंकि सीन बारिश का था, यह तरकीब एकदम सटीक बैठी. दो छातों की वजह से भीड़ दोगुनी दिखी, और सीन आसानी से शूट हो गया. लेकिन फिर भी कई मुश्किलें सामने आईं.

इस सीन में अभिनेता सत्यजीत पुरी पर गुंडे हमला करते हैं, और वे भीड़ को चीरते हुए भागते हैं. बारिश में शूटिंग के दौरान कैमरे के लेंस पर बार-बार नमी जमा हो रही थी, जिससे शूटिंग रुक रही थी. इतने सारे छातों की वजह से लोगों की आंखों में छातों की नोक चुभ रही थी. साथ ही, गुंडों को तलवारें लहराते हुए भीड़ में दौड़ना था, जिसने शूटिंग को और जटिल बना दिया.
'अर्जुन' की कहानी जावेद अख्तर ने टाइम्स ऑफ इंडिया के संडे संस्करण में छपी एक खबर से प्रेरित होकर लिखी थी. IMDb के अनुसार, मुंबई के एक गैंगस्टर की कहानी ने उन्हें यह स्क्रिप्ट लिखने का आइडिया दिया. यह सीन और फिल्म आज भी उस दौर की रचनात्मकता का शानदार उदाहरण है.
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