टीका अभियान को लेकर कुछ सवाल उठ रहे हैं. क्या इसे सफल बनाने के लिए कुछ राज्यों में कुछ दिनों से टीके की रफ्तार कम की गई? ताकि टीका बचा कर 21 जून को लगाया जाए जिससे कि नंबर बड़ा लगे? दूसरा क्या सारा मकसद 21 जून को एक रिकार्ड बनाना ही था? अगर नहीं था तो फिर 22 जून को सब कुछ ठंडा क्यों पड़ गया? 22 जून को उसका आधा भी उत्साह नहीं दिखा. उत्साह नहीं था या टीका नहीं था? 21 जून को चार बजे तक 47 लाख टीके लग चुके थे. 22 जून को करीब 6 लाख 23 लाख टीके ही लग पाए थे. चार बजे तक. इतने लोगों के मरने और अर्थव्यवस्था के तबाह हो जाने के बाद भी अगर इस अभियान को ईवेंट मैनेजमेंट की तरह पेश करना था तब इसका मतलब यही है कि हम कोविड को लेकर हेडलाइन हड़पने की मानसिकता से आगे नहीं बढ़ सके हैं. उसकी भी विडंबना देखिए कि वो हेडलाइन पुरानी पड़ चुकी है.