प्राइम टाइम इंट्रो : कहानी लायला की...

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  • प्रकाशित: अप्रैल 10, 2015
जब भी आप खुद को या किसी को देखते हैं तो सोचते ही होंगे कि आप अपनी नजरों से देख रहे हैं। दरअसल आंखें भले ही आपकी हों लेकिन नजर पूरी तरह से आपकी नहीं है। ये जो नजर है उसे कई तरीके से गढ़ा जाता है। कुछ आप गढ़ते हैं, कुछ समाज, धर्म, राजनीति, फिल्‍में, किताबें और बहुत कुछ।

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