रवीश कुमार का प्राइम टाइम : 20 हज़ार देने वाले का पता लगे, 20 करोड़ देने वाला छुप जाये

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  • प्रकाशित: सितम्बर 20, 2022
पारदर्शिता की नई परिभाषा अगर आपको समझनी है तो 2017 में पास इलेक्टोरल बॉन्ड के कानून से समझ सकते हैं. इस कानून के पास होने के बाद आप कभी नहीं जान सकते कि किसी एक दल को कई सौ या कई हज़ार करोड़ रुपये का चंदा किस कंपनी या कंपनियों के किस समूह से मिलता है? 

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