रेटिंग एजेंसियां भारत के विकास दर के साथ अच्छा नहीं कर रही हैं. काग़ज़ पर लिखती हैं, मिटाती रहती हैं. जिस हिसाब से रेटिंग एजेंसियों ने विकास दर में कटौती की है, अगर मुमकिन हुआ तो एक दिन इन एजेंसियों की भी छंटनी की जाने लगेगी, इन्हें ज्ञान दिया जाने लगेगा कि रेटिंग का फार्मूला सही नहीं है.