टीवी चैनलों पर धरना प्रदर्शनों को लेकर जिस तरह की समझ बन रही है, अदालतों के भीतर से आती आवाज़ उन चैनलों को लोकतंत्र के पाठ पढ़ा रही है. सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कहा था कि बार बार धारा 144 का इस्तमाल नहीं कर सकते हैं. यह दुरुपयोग है. इसी कड़ी में तीस हज़ारी कोर्ट में चंद्रशेखर की ज़मानत की सुनवाई के दौरान और स्पष्टता आई है. मीडिया की हेडलाइन में तो यही बात आकर रह जाएगी कि जज ने कहा कि जामा मस्जिद पाकिस्तान में नहीं हैं जहां प्रदर्शन नहीं हो सकते. यह बात नहीं आएगी कि जज ने अपनी टिप्पणी में यह भी कहा कि लोग सड़क पर इसलिए हैं कि जो चीज़ें संसद में कही जानी चाहिए वो नहीं कही गईं.बल्कि इस बहस में जज ने जो सवाल उठाए और पुलिस के वकील जिस तरह से लाजवाब रहे, जवाब देते न बना, उससे यही लगता है कि पुलिस अब कानून से कम इशारे से ज्यादा काम करने लगी है. तीस हज़ारी कोर्ट की जज कामिनी लौ के सवाल और टिप्पणियां काफी महत्वपूर्ण हैं. ये और बात है कि सुनवाई अभी जारी है.