Blogs | Dr Vijay Agrawal |शुक्रवार जून 10, 2016 01:33 PM IST पूंजीपतियों की अकूत सम्पत्ति उनमें 'अमरता का बोध' पैदा कराने लगी है। यह वृत्ति उनमें भी है, जो स्वयं को समाज का 'विशिष्ट व्यक्ति' समझने लगे हैं। ज़ाहिर है, इससे साहित्य में आत्मकथाओं का सैलाब आ गया है। सिनेमा में भी शुरुआत हो चुकी है 'गुरु' से... देखें, यह आगे कहां तक जाती है।