
हॉरर-कॉमेडी फिल्म है 'स्त्री'
नई दिल्ली:
'स्त्री' की कहानी एक छोटे शहर की है जहां एक डायन रात को आती है और जो भी मर्द रात को निकलता है उसे उठाकर ले जाती है, वो उन घरों में नहीं जाती जिनकी दीवारों पर लिखा होता है स्त्री कल आना. अब यहां मुश्किल यह है कि इस स्त्री से कैसे निबटा जाए और इस मुश्किल का हल जानने के लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी.
Stree Movie Review: राजकुमार राव और श्रद्धा कपूर की 'स्त्री' दर्शकों को आएगी पसंद, कॉमेडी-हॉरर का है कॉकटेल
खामियां
इस फिल्म की एक खामी मुझे लगी इसका क्लाइमैक्स जिसे मैं बता तो नहीं सकता क्योंकि अगर बताया तो आपको क्लाइमैक्स पता चल जाएगा और आपका फिल्म देखने का मजा किरकिरा हो जाएगा. लेकिन जो बात मुझे खली वो यह है कि श्रद्धा का किरदार अंत में कुछ और मोड़ लेता है और किरदार का ये बदलाव आपको उलझा देता है, फिल्म में स्त्री एक मेटाफर भी है यानी इसे रूपक की तरह इस्तेमाल किया है और उस हिसाब से श्रद्धा के किरदार का ये बदलाव फिल्म के सीक्वल की और इशारा करने के अलावा और कुछ नहीं कहता. इसके अलावा श्रद्धा का किरदार एक पहेली है और फिल्म की कहानी में उस पर कुछ सवाल उठाए जाते हैं. मसलन ये किरदार मंदिर क्यों नहीं जाता ये प्रसाद क्यों नहीं खाता पर जब श्रद्धा का किरदार उजागर होता है तो इन सवालों के जवाब और इस किरदार का ध्येय साफ नहीं होता. इसके अलावा फिल्म के गाने जुबान पर नहीं टिकते, आते हैं और निकल जाते हैं.
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खूबियां
मैं तारीफ करना चाहूंगा निर्देशक अमर कौशिक की जिन्होंने एक कसी और आपको बांधे रखने वाली फिल्म बनाई है. साथ ही तारीफ राज और डीके के कसे हुए स्क्रीन्प्ले की जो आपको एक सेकंड के लिए भी हिलने नहीं देता. ये फिल्म एक हॉरर कामेडी है और शायद हिंदी सिनेमा की सही मायने में पहली हॉरर कामेडी है जहां आपको डर भी लगेगा और हंसी भी आएगी. अमर कौशिक के निर्देशन की खासियत यह है की उन्होंने हॉरर सीन बेहतरीन तरीके से फिल्माए हैं. असल में ये जॉनर थोड़ा रिस्की है और इसे कायदे से अंजाम देना मुश्किल काम है. लेकिन ये काम अमर कौशिक ने काबिलेतारीफ किया है. साथ ही फिल्म में संदेश भी है कि महिलाओं की इज्जत करना सीखें, अगर आपने ने उनका सम्मान नहीं किया तो आपको अपमान सहना पड़ सकता है और ये बात लेखक और निर्देशक ने मनोरंजन के साथ बखूबी कही है. अभिनय की बात करें तो राजकुमार, अपारशक्ति, अभिषेक बनर्जी और पंकज त्रिपाठी सभी का बेहतरीन काम, श्रद्धा ठीक हैं और उनके पास ज्यादा कुछ करने को था भी नहीं यानी उनके किरदार में ज्यादा परतें नहीं हैं. फिल्म का बैकग्राउंड स्कोर और कैमरा वर्क दोनों ही फिल्म को मजबूत करता है.
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रेटिंगः 3.5 स्टार
डायरेक्टरः अमर कौशिक
कलाकारः राजकुमार राव. श्रद्धा कपूर, पंकज त्रिपाठी, अपारशक्ति खुराना, अभिषेक बनर्जी और विजय राज
...और भी हैं बॉलीवुड से जुड़ी ढेरों ख़बरें...
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इस फिल्म की एक खामी मुझे लगी इसका क्लाइमैक्स जिसे मैं बता तो नहीं सकता क्योंकि अगर बताया तो आपको क्लाइमैक्स पता चल जाएगा और आपका फिल्म देखने का मजा किरकिरा हो जाएगा. लेकिन जो बात मुझे खली वो यह है कि श्रद्धा का किरदार अंत में कुछ और मोड़ लेता है और किरदार का ये बदलाव आपको उलझा देता है, फिल्म में स्त्री एक मेटाफर भी है यानी इसे रूपक की तरह इस्तेमाल किया है और उस हिसाब से श्रद्धा के किरदार का ये बदलाव फिल्म के सीक्वल की और इशारा करने के अलावा और कुछ नहीं कहता. इसके अलावा श्रद्धा का किरदार एक पहेली है और फिल्म की कहानी में उस पर कुछ सवाल उठाए जाते हैं. मसलन ये किरदार मंदिर क्यों नहीं जाता ये प्रसाद क्यों नहीं खाता पर जब श्रद्धा का किरदार उजागर होता है तो इन सवालों के जवाब और इस किरदार का ध्येय साफ नहीं होता. इसके अलावा फिल्म के गाने जुबान पर नहीं टिकते, आते हैं और निकल जाते हैं.
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कलाकारः राजकुमार राव. श्रद्धा कपूर, पंकज त्रिपाठी, अपारशक्ति खुराना, अभिषेक बनर्जी और विजय राज
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