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This Article is From May 25, 2018

Movie Review: भारतीय होने का गर्व महसूस कराएगी 'परमाणु', जॉन अब्राहम की दमदार एक्टिंग

परमाणु की कहानी 11 और 13 मई 1998 के पोखरन न्यूक्लियर टेस्ट के इर्द -गिर्द घूमती नजर आती है. जहां अमेरिका को गच्चा देकर भारत एक न्यूक्लियर देश के तौर पर उभरा है.

Movie Review: भारतीय होने का गर्व महसूस कराएगी 'परमाणु', जॉन अब्राहम की दमदार एक्टिंग
Parmanu The Story of Pokhran: फिल्म में जॉन अब्राहम और डायना पेंटी
नई दिल्ली: परमाणु की कहानी 11 और 13 मई 1998 के पोखरन न्यूक्लियर टेस्ट के इर्द -गिर्द घूमती नजर आती है. जहां अमेरिका को गच्चा देकर भारत एक न्यूक्लियर देश के तौर पर उभरा है. यह फिल्म इस घटना से प्रेरित जरूर है पर इसे काफी हद तक काल्पनिक जामा भी पहनाया गया है. फिल्म की कहानी में अश्वत रैना एक इंजिनियर-ब्यूरोक्रैट और फौजी का बेटा है जिसकी एक पत्नी और एक बच्चा है. अश्वत देशभक्त है और देश के लिए कुछ करना चाहता है. पड़ोसी देश एक के बाद एक न्यूक्लियर टेस्ट कर रहा है, एक ब्यूरोक्रैट मीटिंग के तहत अश्वत प्रस्ताव रखता है कि भारत को भी अब एक न्यूक्लियर देश होना चाहिए और उसने इसकी रूप-रेखा भी तैयार की हुई है. 

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फिल्म में आगे यह दिखाया गया है कि इस मसले से जुड़ी मीटिंग में कोई और अश्वत का प्लान ख़ुद के नाम से आधा अधूरा प्लान प्रधानमंत्री के सामने रखता है, जिसके चलते न्यूक्लियर टेस्ट की कोशिश होती है, लेकिन अमेरिका द्वारा ये कोशिश पकड़ी जाती है और बलि का बकरा बनता है अश्वत. 3 साल बाद फिर राजनीतिक गलियरों में फेर बदल होती है और गुमसुम ज़िंदगी जी रहे अश्वत को फिर से न्यूक्लियर टेस्ट का ज़िम्मा सौंपा जाता है. आगे क्या होगा इसके लिए आपको फ़िल्म देखनी चाहिए.
क्या हैं खामियां
- इस फ़िल्म की सबसे बड़ी ख़ामी है इसकी स्क्रिप्ट जिसके तहत बजाय जॉन के किरदार को इस घटना में पिरोया जाता बल्कि घटना को जॉन के इर्द गिर्द फैलाया गया. ऊपर से इसका ट्रीटमेंट जो कि बहुत ही फ़िल्मी और बॉलीवुडिया है. 
- फ़िल्म में अश्वत रैना की पारिवारिक ज़िंदगी की बजाय अगर 1948 के बाद से भारत के न्यूक्लियर देश बनने के आड़े जो मुश्किलें आ रही थी उन्हें दिखाया जाता तो ज्यादा बेहतर होता. साथ ही राजनीतिक गलियारों की उथल पुथल को भी फिल्म का हिस्सा बनाया जाना चाहिए. 
- फिल्म के जो अहम पहलू थे जैसे इस टेस्ट के लिए जो दिमागी रस्सकाशी हुई होगी या बारीकियां इस टेस्ट को कामयाब करने के लिए रही होंगी, उन्हें विस्तार से दर्शाया जाता तो फ़िल्म का स्क्रीनप्ले बेहतर होता. अभी ये फ़िल्म सतही तौर पर बनायी हुई प्रतीत होती है जिसमें गहरायी नहीं है. 
- साथ ही इतनी कड़ी गर्मी में काम कर रहे किरदारों के मेकअप और लुक पर भी ध्यान देना चाहिए था क्योंकि सारे किरदार राजस्थान की भौगोलिक परिस्थितियों से अछूते नज़र आते हैं. कई जगह पर गाने और शोर करता बैक्ग्राउंड स्कोर फिल्म को 90 के दशक का सिनेमा बना देता है.

देखें ट्रेलर-


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क्या हैं खूबियां
- इस फ़िल्म की ख़ूबी है इसका विषय. अगर आप इन टेस्ट्स के बारे में सिर्फ ऑनलाइन जाकर पढ़ेंगे तो पूरी फ़िल्म आपके नज़रिए से आपकी आंखों के सामने घूम जाएगी और आपको लगेगा की एक फ़िल्म के लिए ये सटीक विषय है. 
- अगर आपने इन टेस्ट्स के बारे में नहीं पढ़ा है या जानकारी नहीं है तो ये फ़िल्म आपको पसंद आ सकती है और आप को बांधे रख सकती है.
- बतौर उस दर्शक के जो सिर्फ़ मनोरंजन के लिए फ़िल्म देख चाहता है लेकिन अगर आपको जानकारी है तो आप इस से निराश हो सकते हैं. कई जगह पर ये फ़िल्म आपको गर्व महसूस कराएगी और जब-जब फिल्म की कहानी अमेरिकी उपग्रह को मात देती नज़र आएगी तो आपको महसूस होगा कि ये घटना इतनी अहम क्यों है. 
- फ़िल्म के गाने अच्छे और मैलोडियस हैं. अभिनय की बात करें तो योगेन्द्र टिक्कु, अनुजा साठे और बोमन ईरानी का काम अच्छा लगा. मेरी और से इस फ़िल्म को 2.5 स्टार्स.

कास्ट एंड क्रू
स्टार कास्ट: जॉन अब्राहम, डायना पेंटी, अनुजा साठे, बोमन ईरानी, विकास कुमार और योगेन्द्र टिक्कू
निर्देशन: अभिषेक शर्मा 
बैक्ग्राउंड स्कोर: संदीप चौटा
संगीत: सचिन जिगर और जीत गांगुली

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