फिल्म रिव्यू: 'पीएम नरेंद्र मोदी' बायोपिक नहीं बल्कि एक गुणगान है

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि फिल्म पीएम नरेंद्र मोदी बायोपिक है देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र की. इस फिल्म की कहानी में मोदी के बचपन से लेकर 2014 में उनके प्रधानमत्री बनने तक का सफर है.

नई दिल्ली:

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि फिल्म पीएम नरेंद्र मोदी बायोपिक है देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र की. इस फिल्म की कहानी में मोदी के बचपन से लेकर 2014 में उनके प्रधानमत्री बनने तक का सफर है. जिसमे दिखाया गया है की बचपन में मोदी चाय बेचते थे. तिरंगे और आर्मी को जहां देखते वहीं सल्यूट करते थे. बड़े हुए तो घर संसार त्याग कर सन्यासी बन गए और पहाड़ों के बीच धार्मिक गुरु ने उन्हें कहा कि उन्हें देश और लोगों कि सेवा करनी चाहिए और वापस आकर उन्होने संघ का प्रचार शुरू किया और धीरे धीरे प्रधानमंत्री बनने तक का सफर तय किया. 

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इस फिल्म कि कहानी पर मैं कोई टिप्पणी नहीं करुंगा क्योंकि जो मोदी को पसंद करते हैं उनके लिए ये कहानी सही है और जो उन्हें पसंद नहीं करते उनके लिए ये कहानी गलत लेकिन फिल्म देखने के बाद मैं ये जरूर कहूंगा कि ये बायोपिक नहीं बल्कि एक गुणगान है मोदी का. दुनियां जानती है कि मोदी शादीशुदा हैं वो अलग बात है की किन्ही कारणों से वो पत्नी से अलग हो गए. लेकिन इस फिल्म में दिखाया गया है की जब इनकी शादी की बात हो रही थी तभी ये सन्यासी बन गए. मुख्यमंत्री बनने के बाद भी मोदी जब घर जाते हैं तो घर की रसोई में बर्तन धोते हैं. 

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फिल्म की खूबियों की बात करें तो बहुत ही गिनी-चुनी हैं. फिल्म के पहले भाग में कुछ दृश्य अच्छे लगते हैं. सिनेमेटोग्राफी अच्छी है और प्रोडक्शन वैल्यू भी ठीक है. मगर फिल्म की स्क्रिप्ट बेहद कमज़ोर है. लंबे-लंबे बोर करने वाले सीन हैं. बहुत ही कमज़ोर निर्देशन है ओमंग कुमार का. विवेक ओबेरॉय इस फिल्म की सबसे कमज़ोर कड़ी हैं जिन्होंने नरेंद्र मोदी की भूमिका निभाई है. किसी भी एंगल से नरेंद्र मोदी नहीं लगे हैं विवेक ओबेरॉय. मोदी जैसी शख्सियत की भूमिका निभाने के लिए वैसा आत्मिविश्वास चेहरे पर नजर आना चाहिए जो कभी भी नजर नहीं आया. यानि विवेक का अभिनय बेहद कमजोर है. फिल्म किसी भी हिस्से में बांध नहीं पाती है फिर वो चाहे लिखाई का हिस्सा हो, निर्देशन का हिस्सा हो, कहानी का हिस्सा हो या फिर अभिनय का हिस्सा हो. इसलिए फिल्म के लिए मेरी रेटिंग है 1 स्टार. 

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