फिल्म के एक सीन में सिद्धार्थ मल्होत्रा और मनोज वाजपेयी
नई दिल्ली:
अय्यारी कहानी है कर्नल अभय सिंह और उसके शिष्य मेजर जय बक्शी की. ये दोनों आर्मी की एक सीक्रेट टुकड़ी का हिस्सा हैं और आर्मी में फैले भ्रष्टाचार के चलते मेजर जय बक्शी को आर्मी के प्रति अपना समर्पण बेमानी लगने लगता है, सो, वह बाग़ी हो जाता है. अब कर्नल अभय सिंह को अपने शिष्य को क़ाबू करना है, साथ ही बचानी है आर्मी की साख. इसके अलावा उन्हें रोकना है हथियारों की एक डील को, पर वह यह सब कर पाएंगे या नहीं, उसके लिए आपको फ़िल्म देखनी पड़ेगी.
'अय्यारी' रिलीज होने से पहले सिद्धार्थ मल्होत्रा ने बोली ये बात
फिल्म की खूबियां
सबसे बड़ी खूबी फिल्म की यह है कि फ़िल्म ज़्यादातर आपका ध्यान हटने नहीं देती और ऊपर से जब मनोज बाजपेई हों तो वो ऐसा कोई मौक़ा नहीं देते की आप उनपर से नज़र हटा सकें. एक समर्पित, ईमानदार और ज़िद्दी आर्मी अफ़सर का रंग उन्होंने बेहतरीन तरीके से अपने अभिनय में उतारा है. वहीं सिद्धार्थ ने सहज और सजग अभिनय का प्रदर्शन किया है, कई जगह उनकी डायलॉग डिलिवरी भी अच्छी है. फ़िल्म का दूसरा छोर उन्होंने बखूबी संभाला है.
वहीं नसीरूद्दीन शाह छोटे से किरदार में भी बड़े साबित होते हैं. साथ ही उनके दृश्य आपको भावनाओं को झकझोरते भी हैं, फ़िल्म का नरेटिव और स्क्रीन प्ले कई लोगों को उलझा सकता है पर मुझे अच्छा लगा क्योंकि ये आपको फ़िल्म से ध्यान हटाने नहीं देता, रकुल स्क्रीन पर अच्छी लगती हैं पर उनके पास ज़्यादा करने को कुछ नहीं है. विक्रम गोखले को काफी वक्त के बाद बड़ी स्क्रीन पर देख कर अच्छा लगा और कुमुद मिश्रा के दृश्य में वह प्रभावशाली हैं. अय्यारी मेरे हिसाब से सबको एक बार देखनी चाहिए और मेरी ओर से इसे 3 स्टार्स मिलने चाहिए.
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फिल्म की खामियां
फ़िल्म की लम्बाई थोड़ी ज़्यादा है, कुछ दृश्य आपको बोर तो नहीं करते पर सिर्फ़ किरदारों को ज़माने के लिए और फ़िल्म के नाम को जीवंत करने के लिए ये दृश्य रखे गए हैं. मसलन कश्मीर का एक दृश्य जो फ़िल्म में काफ़ी बाद में आता है, फ़िल्म का नरेटिव ध्यान ना देने पर आपको उलझन में डाल सकता है, सिद्धार्थ और रकुल की लव स्टोरी थोड़ा फ़िल्म को धीमा करती है.
सबसे बड़ी बात यह है कि फ़िल्म का मुद्दा बहुत अच्छा है लेकिन हल की ओर फ़िल्मकार नहीं जाता बल्कि मुद्दा फ़िल्म की कहानी में अस्थायी तौर पर घटनाक्रम में खत्म हो जाता है. यह ख़ामी मेरे लिए बड़ी नहीं है क्योंकि शायद नीरज दर्शकों को ज़्यादा ज्ञान नहीं देना चाहते थे और उन्होंने एक घटना को फ़िल्म का हिस्सा बनाकर उसके इर्द-गिर्द कहानी बुनी। फ़िल्म का बैकग्राउंड स्कोर फ़िल्म के सीन्स को बल नहीं देता बल्कि शोर ज़्यादा लगता है.
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कास्ट एंड क्रू
कास्ट: मनोज बाजपेयी, नसीरुद्दीन शाह, सिद्धार्थ मल्होत्रा, जूही बब्बर, अनुपम खेर
निर्देशन, लेखन और संवाद: नीरज पांडेय
संगीत: रोचक कोहली और अंकित तिवारी
बैकग्राउंड स्कोर: संजोय चौधरी
VIDEO: मिलिए फिल्म 'अय्यारी' के सितारों मनोज बाजपेयी और सिद्धार्थ मल्होत्रा से
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सबसे बड़ी खूबी फिल्म की यह है कि फ़िल्म ज़्यादातर आपका ध्यान हटने नहीं देती और ऊपर से जब मनोज बाजपेई हों तो वो ऐसा कोई मौक़ा नहीं देते की आप उनपर से नज़र हटा सकें. एक समर्पित, ईमानदार और ज़िद्दी आर्मी अफ़सर का रंग उन्होंने बेहतरीन तरीके से अपने अभिनय में उतारा है. वहीं सिद्धार्थ ने सहज और सजग अभिनय का प्रदर्शन किया है, कई जगह उनकी डायलॉग डिलिवरी भी अच्छी है. फ़िल्म का दूसरा छोर उन्होंने बखूबी संभाला है.
वहीं नसीरूद्दीन शाह छोटे से किरदार में भी बड़े साबित होते हैं. साथ ही उनके दृश्य आपको भावनाओं को झकझोरते भी हैं, फ़िल्म का नरेटिव और स्क्रीन प्ले कई लोगों को उलझा सकता है पर मुझे अच्छा लगा क्योंकि ये आपको फ़िल्म से ध्यान हटाने नहीं देता, रकुल स्क्रीन पर अच्छी लगती हैं पर उनके पास ज़्यादा करने को कुछ नहीं है. विक्रम गोखले को काफी वक्त के बाद बड़ी स्क्रीन पर देख कर अच्छा लगा और कुमुद मिश्रा के दृश्य में वह प्रभावशाली हैं. अय्यारी मेरे हिसाब से सबको एक बार देखनी चाहिए और मेरी ओर से इसे 3 स्टार्स मिलने चाहिए.
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सबसे बड़ी बात यह है कि फ़िल्म का मुद्दा बहुत अच्छा है लेकिन हल की ओर फ़िल्मकार नहीं जाता बल्कि मुद्दा फ़िल्म की कहानी में अस्थायी तौर पर घटनाक्रम में खत्म हो जाता है. यह ख़ामी मेरे लिए बड़ी नहीं है क्योंकि शायद नीरज दर्शकों को ज़्यादा ज्ञान नहीं देना चाहते थे और उन्होंने एक घटना को फ़िल्म का हिस्सा बनाकर उसके इर्द-गिर्द कहानी बुनी। फ़िल्म का बैकग्राउंड स्कोर फ़िल्म के सीन्स को बल नहीं देता बल्कि शोर ज़्यादा लगता है.
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कास्ट एंड क्रू
कास्ट: मनोज बाजपेयी, नसीरुद्दीन शाह, सिद्धार्थ मल्होत्रा, जूही बब्बर, अनुपम खेर
निर्देशन, लेखन और संवाद: नीरज पांडेय
संगीत: रोचक कोहली और अंकित तिवारी
बैकग्राउंड स्कोर: संजोय चौधरी
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