स्थानीय निकाय चुनावों में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) आरक्षण के मामले में मध्य प्रदेश सरकार को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है. शिवराज सिंह सरकार ने SC के फैसले पर संशोधन याचिका दायर की थी जिसकी सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने आज पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग की रिपोर्ट को मंजूर करते हुए मध्यप्रदेश में OBC आरक्षण के तहत चुनाव का आदेश दे दिया. सुप्रीम कोर्ट ने राज्य चुनाव आयोग को एक हफ्ते के भीतर चुनाव की अधिसूचना जारी करने को कहा है. इससे पहले, 10 मई के आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मध्यप्रदेश पंचायत चुनाव में OBC आरक्षण लागू नहीं होगा. बहरहाल, देश की सर्वोच्च अदालत के आज के फैसले के साथ मध्यप्रदेश में स्थानीय निकाय के चुनाव पर 'पंचायत' खत्म हो गई है.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए सीएम शिवराज सिंह चौहान ने कहा, 'बीजेपी जो कहती है वो करती है.हम चुनाव करवा रहे थे फर्स्ट फेज के फॉर्म भरे जा चुके थे.ओबीसी को वंचित करने का पाप किया तो उन्होंने किया था. मैंने विधानसभा में भी संकल्प व्यक्त किया था कि चुनाव में जाएंगे तो ओबीसी आरक्षण के साथ. ओबीसी को न्याय मिला. अब वे लोग खंबा नोच रहे हैं.'पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग की रिपोर्ट को आधार मानकर सुप्रीम कोर्ट ने पंचायत चुनाव में आरक्षण का आदेश दिया है. SC ने कहा कि पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग की सिफारिश के आधार पर पंचायत चुनाव का नोटिफिकेशन जारी करे.ट्रिपल टेस्ट का पालन करते हुए पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग ने रिपोर्ट पेश की थी.
बता दें, राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से स्थानीय चुनावों में OBC आरक्षण न देने के 10 मई के आदेश में संशोधन की मांग पर संशोधन याचिका दायर की थी. इससे पहले 10 मई को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मध्यप्रदेश पंचायत चुनाव में OBC आरक्षण लागू नहीं होगा. कोर्ट ने राज्य चुनाव आयोग को 23, 263 स्थानीय निकायों के चुनाव कराने की प्रक्रिया शुरू करने को कहा था. सुप्रीम कोर्ट ने राज्य चुनाव आयोग को दो हफ्ते के भीतर अधिसूचना जारी करने का निर्देश दिया था. कोर्ट ने तब कहा था कि OBC आरक्षण के लिए तय शर्तों को पूरा करे बिना आरक्षण नहीं मिल सकता. खाली सीटों पर 5 साल में चुनाव करवाना संवैधानिक ज़रूरत है, इसे किसी भी वजह से टाला नहीं जाना चाहिए.
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा है कि आरक्षण किसी भी स्थिति में 50% से अधिक नहीं होगा, इसे लेकर कांग्रेस सरकार पर हमलावर है. पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता कमलनाथ ने कहा, 'हमारी सरकार द्वारा 14% से बढ़ाकर 27% किये गए ओबीसी आरक्षण का पूरा लाभ ओबीसी वर्ग को अभी भी नहीं मिलेगा क्योंकि निर्णय में यह उल्लेखित है कि आरक्षण 50% से अधिक नहीं होना चाहिए. हमें ओबीसी वर्ग का भला करने की कोई उम्मीद शिवराज सरकार से नहीं थी इसलिए हमने पहले से ही यह निर्णय ले लिया है कि हम निकाय चुनाव में 27% टिकट ओबीसी वर्ग को देंगे और इस वर्ग को उनका पूरा अधिकार देंगे. हम अपना वादा हर हाल में निभाएंगे. हमारा तो दृढ़ संकल्प है कि ओबीसी वर्ग को 27% आरक्षण का हक़ व अधिकार मिले, उसके लिए हम हर लड़ाई लड़ेंगे.'
मध्यप्रदेश में 1994 से पंचायत चुनाव में OBC आरक्षण लागू है. 2014 का आखिरी पंचायत चुनाव भी OBC आरक्षण के साथ ही हुआ था. 2014 तक प्रदेश की पंचायतों में अनुसूचित जाति की 16% सीटें , अनुसूचित जनजाति की 20% और OBC के लिए 14% सीटें रिजर्व थीं लेकिन, 2019 में तत्कालीन कमलनाथ सरकार ने रोटेशन और परिसीमन की कार्रवाई की. सत्ता में आते ही बीजेपी, कांग्रेस की सरकार में हुई रोटेशन-परिसीमन की कार्रवाई को समाप्त करने के उद्देश्य से एक अध्यादेश ले आई. इसे कांग्रेस ने सही नहीं माना और जबलपुर हाईकोर्ट में याचिका लगा दी. हाईकोर्ट से राहत नहीं मिलने पर वो सुप्रीम कोर्ट गई. गौरतलब है कि OBC, मध्य प्रदेश में सबसे बड़ा वोटिंग ब्लॉक है. बीजेपी ने पिछले 19 सालों में तीन OBC मुख्यमंत्री बनाए हैं जिनमें उमा भारती, बाबूलाल गौर और वर्तमान शिवराज सिंह चौहान शामिल हैं.मध्य प्रदेश पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य में 51 प्रतिशत OBC मतदाता हैं.
स्थानीय निकाय चुनावों पर 'पंचायत' तो खत्म हो गई. नतीजा वही रहा OBC को 14 फीसदी आरक्षण लेकिन आक्रमक दिखना सबकी मजबूरी है क्योंकि राज्य की कुल 230 विधानसभा सीटों में से 100 से अधिक के पास OBC वोटों का तय हिस्सा है जो 2003 के बाद से काफी हद तक बीजेपी के पक्ष में रहा है. हालांकि 2018 के चुनावों में OBCवोट बैंक कांग्रेस की ओर भी काफी संख्या में ट्रांसफर हो गया था.
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