Relationships: एक समय हुआ करता था जब युवा एकदूसरे से किसी पार्क या बुकस्टोर पर टकराते थे, आंखें एकदूसरे पर आकर टिकती थीं, कई-कई दिनों तक एकदूसरे से बातें करने के बहाने ढूंढे जाते थे, नंबर मांगा जाता था और फिर बातें होती थीं. इस तरह मोहब्बत का दौर शुरू होता था. लेकिन, अब समय बदल चुका है. कुछ समय पहले तक भी युवा डेटिंग ऐप्स पर प्यार ढूंढ रहे थे लेकिन अब प्यार की तलाश युवाओं को AI के ऐप्स तक ले आई है. आर्टिफिशियल इंटैलिंजेस (Artificial Intelligence) के इन ऐप्स पर आपको लोग नहीं मिलते बल्कि मशीनें मिलती हैं जो आपसे बातें करती हैं, भावनात्मक रूप से आपको जवाब देती हैं और आपके जीवन में गर्लफ्रेंड या बॉयफ्रेंड की जगह लेती हैं. लेकिन, क्या सचमुच लोगों को अब इंसानों में प्यार नहीं मिल रहा है और क्या लोग अब मशीनों से रिश्ते निभाने लगेंगे? आइए जानते हैं इन कंपेनियम ऐप्स के बारे में और इनपर एक्सपर्ट की राय.
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कैसे काम करते हैं कंपेनियन ऐप्स
AI के ऐसे कुछ ऐप्स हैं जिन्हें धड़ल्ले से डाउनलोड किया जा रहा है. कैरेक्टर AI ऐप भी इसी तरह की एक ऐप है जिसे 1.9 करोड़ बार डाउनलोड किया जा चुका है. इसके अलावा टॉकी AI और रेप्लिका नाम की ऐप ने 9 करोड़ डॉलर तक की कमाई कर ली है.
असल में इन ऐप्स पर आपको एक मशीनी रोबोट मिलता है जो आपसे भावनात्मक तरीके से जुड़ने के लिए बातें करता है, बातें सुनता है और एक साथी (Partner) की तरह आपको जवाब देता है. कई फिल्मों में भी आपको इसी तरह के AI असिस्टेंट देखने को मिले होंगे जिससे बात करने वाला व्यक्ति प्यार में पड़ जाता है. जोकिन फीनिक्स की फिल्म 'हर' इसका एक बेहतरीन उदाहरण है.
इन कंपेनियन ऐप्स में मशीन लर्निंग की एल्गोरिथम का इस्तेमाल करके यूजर्स की आदतें और पसंद वगैरह के बारे में समझा जाता है जिससे एआई पार्टनर (AI Partner) पर्सनल एडवाइस दे सकता है. इसके अलावा डाटा एनालिटिक्स का इस्तेमाल होता है और वॉइस असिस्टेंस से वॉइस कमांड दी जाती है जिससे यूजर को लगता है कि सचमुच कोई उसके साथ है, उससे बातें कर रहा है. इससे यूजर को लगता है कि वह सचमुच अपनी किसी ऑनलाइन गर्लफ्रेंड (Online Girlfriend) या बॉयफ्रेंड से बात कर रहा है.
लोगों को क्यों पड़ रही है AI गर्लफ्रेंड या बॉयफ्रेंड की जरूरतसोशियोलॉजिस्ट डॉ. रानी टोकस का कहना है कि, "AI के जरिए हमें क्यों पार्टनर की जरूरत पड़ रही है... यह सीधे तौर पर एक सामाजिक बदलाव की तरफ इशारा करता है. यह बदलाव बहुत पहले से हो रहा है. आए दिन हम मीडिया और दूसरे प्लेटफॉर्म पर युवा से जुड़े ऐसे कई मामले सुनते हैं, जिसे लेकर चिंता बढ़ जाती है. चाहे वो यूथ में गेमिंग को लेकर एडिक्शन हो या पार्टनर से जुड़ाव को लेकर. सवाल उठता है कि आखिर युवाओं को ऐसी कौन सी कमी महसूस हो रही है, जो वो AI में अपना पार्टनर तलाश रहे हैं. जवाब है अकेलापन और दूसरों पर भरोसे की कमी."
डॉ. रानी टोकस कहती हैं, "आज के युवा भीड़ में होकर भी खुद को अकेला महसूस करते हैं. बड़े-बड़े शहरों में उनके पास सबकुछ है. सोशल मीडिया पेज पर ढेर सारे फॉलोअर और फ्रेंड्स हैं. लेकिन, अपना कोई नहीं है. हाल के समय में सोशल इंस्टिट्यूट्स जैसे शादी, रिश्तेदारी सब सीमित हो गए हैं. युवाओं का शादी पर से भरोसा उठने लगा है. वो अकेला रहना पसंद करते हैं या लिव इन में रहना. शादी और परिवार की जिम्मेदारियां वो उठाने से कतराते हैं. सोशल इंस्टीट्यूशन में बिखराव की वजह से युवाओं में अकेलापन बढ़ रहा है."
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