भारत में लोगों को कई तरह की स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है. लोग इसके लिए अच्छे से अच्छा इलाज भी चाहते हैं. लेकिन हाल ही में हुई एक स्टडी में पता चला है कि लगभग 68 प्रतिशत वयस्कों को एडल्ट वेक्सीनेशन के बारे में जानकारी ही नहीं है. इस सर्वे में शामिल हुए अधिकांश लोगों को लगता था कि टीकाकरण सिर्फ बच्चों के लिए ही होता है. कुछ अन्य को लगा कि वे स्वस्थ थे, इसलिए उन्हें किसी भी टीकाकरण की जरूरत नहीं है.
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के अनुसार, जब एक व्यक्ति वयस्क हो जाता है तब भी टीकाकरण की जरूरत खत्म नहीं होती है. एक बच्चे के रूप में प्राप्त टीकों से कुछ ही वर्षो तक सुरक्षा मिलती है और नए तथा विभिन्न रोगों के जोखिम से निपटने के लिए और वेक्सीनेशन की जरूरत पड़ती है. आईएमए के अध्यक्ष डॉ. के.के. अग्रवाल ने कहा, स्वस्थ भोजन की तरह, शारीरिक गतिविधि और नियमित जांच-पड़ताल, एक व्यक्ति को स्वस्थ रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. टीके सबसे सुविधाजनक और सुरक्षित निवारक देखभाल उपायों में से एक हैं. शहरी जीवनशैली आज भी अस्वास्थ्यकर भोजन, नींद की कमी, काम के अनियमित घंटे और अक्सर यात्राएं शामिल करती हैं. इससे लोगों की प्रतिरक्षा कम हो गई है.
अग्रवाल ने कहा, इससे हम सब किसी भी बीमारी के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं. हमारे रहने और काम करने के स्थान अलग-अलग होते हैं और कभी-कभी हम सब सुदूर स्थानों पर घूमने भी जाते हैं. विभिन्न क्षेत्रों पर आने जाने से किसी भी संचारी रोग से ग्रस्त होने का खतरा पैदा हो जाता है. मेडिकल साइंस तरक्की कर चुकी है और कई स्वास्थ्य स्थितियों के लिए नई, बेहतर सुविधाएं और उपचार आज उपलब्ध हैं। हमारे बचपन के दौरान कई रोगों के टीके थे ही नहीं, लेकिन अब उन सब के टीके मौजूद हैं.
उन्होंने कहा कि भारत सरकार एडल्ट वेक्सीनेशन के लिए कदम उठा रही है. वर्ष 1985 में, एक व्यापक टीकाकरण कार्यक्रम देशभर में शुरू किया गया था जो टीबी, टेटनस, डिप्थीरिया, पोलियो और खसरे से निपटने के लिए था. अग्रवाल ने बताया, 50 वर्ष से अधिक आयु के लोगों को मौसमी इन्फ्लूएंजा (फ्लू), न्यूमोकोकल रोग (निमोनिया, सेप्सिस, मेनिन्जाइटिस), हेपेटाइटिस बी संक्रमण (जिन्हें मधुमेह है या हेपेटाइटिस बी का जोखिम है), टेटनस, डिप्थीरिया, पेरटुसिस और दाद (60 साल और उससे बड़े वयस्कों के लिए) जैसी स्थितियों से सुरक्षित रखने की आवश्यकता है.
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के अनुसार, जब एक व्यक्ति वयस्क हो जाता है तब भी टीकाकरण की जरूरत खत्म नहीं होती है. एक बच्चे के रूप में प्राप्त टीकों से कुछ ही वर्षो तक सुरक्षा मिलती है और नए तथा विभिन्न रोगों के जोखिम से निपटने के लिए और वेक्सीनेशन की जरूरत पड़ती है. आईएमए के अध्यक्ष डॉ. के.के. अग्रवाल ने कहा, स्वस्थ भोजन की तरह, शारीरिक गतिविधि और नियमित जांच-पड़ताल, एक व्यक्ति को स्वस्थ रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. टीके सबसे सुविधाजनक और सुरक्षित निवारक देखभाल उपायों में से एक हैं. शहरी जीवनशैली आज भी अस्वास्थ्यकर भोजन, नींद की कमी, काम के अनियमित घंटे और अक्सर यात्राएं शामिल करती हैं. इससे लोगों की प्रतिरक्षा कम हो गई है.
अग्रवाल ने कहा, इससे हम सब किसी भी बीमारी के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं. हमारे रहने और काम करने के स्थान अलग-अलग होते हैं और कभी-कभी हम सब सुदूर स्थानों पर घूमने भी जाते हैं. विभिन्न क्षेत्रों पर आने जाने से किसी भी संचारी रोग से ग्रस्त होने का खतरा पैदा हो जाता है. मेडिकल साइंस तरक्की कर चुकी है और कई स्वास्थ्य स्थितियों के लिए नई, बेहतर सुविधाएं और उपचार आज उपलब्ध हैं। हमारे बचपन के दौरान कई रोगों के टीके थे ही नहीं, लेकिन अब उन सब के टीके मौजूद हैं.
उन्होंने कहा कि भारत सरकार एडल्ट वेक्सीनेशन के लिए कदम उठा रही है. वर्ष 1985 में, एक व्यापक टीकाकरण कार्यक्रम देशभर में शुरू किया गया था जो टीबी, टेटनस, डिप्थीरिया, पोलियो और खसरे से निपटने के लिए था. अग्रवाल ने बताया, 50 वर्ष से अधिक आयु के लोगों को मौसमी इन्फ्लूएंजा (फ्लू), न्यूमोकोकल रोग (निमोनिया, सेप्सिस, मेनिन्जाइटिस), हेपेटाइटिस बी संक्रमण (जिन्हें मधुमेह है या हेपेटाइटिस बी का जोखिम है), टेटनस, डिप्थीरिया, पेरटुसिस और दाद (60 साल और उससे बड़े वयस्कों के लिए) जैसी स्थितियों से सुरक्षित रखने की आवश्यकता है.
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