बौद्ध क्यों कर रहे हैं बोधगया मंदिर कानून के खिलाफ प्रदर्शन, किस बात पर है विवाद

बिहार के बोधगया में स्थित महाबोधि मंदिर के प्रबंधन को लेकर बौद्ध धर्म मानने वाले लोग पिछले काफी समय से वहां प्रदर्शन कर रहे हैं. इसको लेकर दुनिया के कुछ देशों में भी प्रदर्शन हुआ है. आइए जानते हैं कैसा और कितना पुराना है यह विवाद.

विज्ञापन
Read Time: 5 mins
नई दिल्ली:

बिहार के बोधगया में स्थित महाबोधि मंदिर का नियंत्रण बौद्धों को सौंपने को लेकर पिछले दो महीने से अधिक समय से आंदोलन चल रहा है. बौद्ध धर्म की सबसे पवित्र जगहों में से एक के नियंत्रण को लेकर यह कई दशक पुराना विवाद है. इसको लेकर एक बार फिर बौद्धों ने आंदोलन की राह पकड़ी है.बोध गया और देश के दूसरे हिस्सों में प्रदर्शन कर रहे बौद्ध बोधगया मंदिर अधिनियम, 1949 (बीजीटीए) को रद्द करने की मांग कर रहे हैं. महाबोधि मंदिर का संचालन इसी कानून के तहत किया जाता है. इस कानून के तहत मंदिर का संचालन करने के लिए बनी समिति में बौद्धों के साथ-साथ हिंदुओं को भी शामिल किया जाता है. बौद्ध धर्म के अनुयायी इसी के विरोध में इस कानून को खत्म करने की मांग कर रहे हैं. इसको लेकर दुनिया के दूसरे देशों में भी प्रदर्शन हुए हैं. आइए जानते हैं कि दशकों पुराने इस विवाद की वजह क्या है.

महाबोधि मंदिर के लिए ताजा प्रदर्शन की शुरूआत तब हुई जब इस साल 27 फरवरी की रात मंदिर में गैर बौद्ध  अनुष्ठानों के खिलाफ उपवास कर रहे बौद्ध भिक्षुओं के एक समूह को मंदिर परिसर से जबरन हटा दिया गया.इस प्रदर्शन का नेतृत्व अखिल भारतीय बौद्ध मंच (एआईबीएफ) नाम का संगठन कर रहा है. 

बोधगया का महाबोधि मंदिर.

बौद्धों के लिए महत्वपूर्ण है बोध गया

सिद्धार्थ को 589 ईसा पूर्व में बोधगया में ही बोधि वृक्ष (पीपल का पेड़) के नीचे ध्यान की अवस्था में ज्ञान की प्राप्ती हुई थी. इसी के बाद वो गौतम बुद्ध बने.बोध गया में सम्राट अशोक ने तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में एक मंदिर बनवाया था.पांचवीं शताब्दी में आए चीनी यात्री फाहियान ने अपने यात्रा वृतांत में मंदिर का जिक्र किया है. 

Advertisement

19वीं शताब्दी तक यह मंदिर जीर्ण-शीर्ण अवस्था में था. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के संस्थापक अलेक्जेंडर कनिंघम ने 1880 के दशक में इसकी मरम्मत करवाई. यूनेस्को ने 2002 में महाबोधि मंदिर को विश्व धरोहर स्थल का दर्जा दिया.

Advertisement

महाबोधि मंदिर का प्रबंधन

महाबोधि मंदिर की आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक 13वीं शताब्दी तक मंदिर का प्रबंधन बौद्ध धर्म मानने वालों के हाथ में था. लेकिन तुर्क आक्रमणकारियों के आगमन के बाद और 1590 में महंत घमंडी गिरी नाम के एक संन्यासी के गया पहुंचने तक इसका प्रबंधन किसके हाथ में था, यह पता नहीं है. महंत घमंडी गिरी ने बोधगया मठ की स्थापना की. इसके बाद यह एक हिंदू मठ बन गया.गिरी के वंशज आज भी महाबोधि मंदिर के प्रबंधन में शामिल हैं. वो इसे एक हिंदू धार्मिक स्थल बताते हैं. वो गौतम बुद्ध को भगवान विष्णु का नौवां अवतार मानते हैं. 

Advertisement

बोध गया के महाबोधि मंदिर को बौद्धों को सौंपने की मांग 19वीं शताब्दी में शुरू हुई. इस आंदोलन की शुरुआत श्रीलंकाई भिक्षु अनागारिक धम्मपाल ने की. वो महाबोधि मंदिर को नियंत्रित करने वाले हिंदू पुजारियों के खिलाफ अदालत गए.उनके आंदोलन का परिणाम यह हुआ कि 1949 में बिहार विधानसभा ने बोधगया मंदिर कानून 1949 बना. जब यह कानून पारित हुआ तो अनागारिक धम्मपाल की मृत्यु हो चुकी थी. 

Advertisement

कौन करता है महाबोधि मंदिर का प्रबंधन

बोधगया मंदिर कानून में महाबोधि मंदिर के संचालन के लिए एक समिति बनाने का प्रावधान है. इस समिति में एक अध्यक्ष और आठ सदस्य रखने का प्रावधान है. इनकी नियुक्ति राज्य सरकार करती है. इसके आठ सदस्यों में चार बौद्ध और चार हिंदू का होना अनिवार्य है. गया जिले का जिलाधिकारी इस समिति का पदेन अध्यक्ष होता है. इसमें यह भी प्रावधान है कि राज्य सरकार उस अवधि के लिए एक हिंदू को समिति का अध्यक्ष नामित करेगी, जब गया का जिलाधिकारी गैर-हिंदू होगा. 

दो बौद्ध भिक्षुओं ने बोधगया मंदिर अधिनियम, 1949 को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे रखी है.

इस कानून ने बौद्धों को मंदिर प्रबंधन में हिस्सेदारी तो दी, लेकिन प्रभावी नियंत्रण हिंदुओं के पास ही रहा. यही वह मुद्दा है, जिसको लेकर बौद्ध धर्म को मानने वाले आंदोलन कर रहे हैं. बौद्धों का कहना है कि इस प्रावधान की वजह से बौद्ध धर्म के मंदिर में हिंदू अनुष्ठान कराए जाते हैं. इसलिए वो बोधगया मंदिर कानून 1949 को हटाने की मांग कर रहे हैं. 

कितना जटिल है यह मुद्दा

बौद्धों की यह मांग कानूनी रूप से काफी जटिल है. बौद्धों का यह मामला उपासना स्थल कानून, 1991 के दायरे में आता है. यह कानून किसी भी पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र को 15 अगस्त, 1947 के अनुसार बनाए रखने का प्रावधान करता है. लेकिन इस कानून के कुछ प्रावधानों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है. इन याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है.

बौद्धों ने बोधगया मंदिर कानून, 1949  को चुनौती भी दी है. दो बौद्ध भिक्षुओं ने सुप्रीम कोर्ट में बीजीटीए को रद्द करने की याचिका दायर की थी. लेकिन आज तक यह मामला कोर्ट में सूचीबद्ध नहीं किया गया है.

ये भी पढ़ें: अब सेंट्रल और स्टेट वक्फ काउंसिल में कितने गैर मुस्लिम, कितनी महिलाएं होंगी, किरेन रिजिजू ने संसद में बताया

Featured Video Of The Day
Iran-America Atomic Talks: Oman में होगी बातचीत, सीधी या परोक्ष - क्या होगा तरीका? | NDTV Duniya
Topics mentioned in this article