हम अपने आदेश को वापस लेने या संशोधित करने के इच्छुक नहीं, बिहार शराबबंदी कानून मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा

अदालत ने बिहार निषेध और उत्पाद शुल्क अधिनियम, 2016 के तहत दर्ज लगभग 40 आरोपियों को जमानत की पुष्टि की थी. पीठ ने कहा कि हम अपने आदेश को वापस लेने या संशोधित करने नहीं जा रहे हैं.

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा हमारा आदेश जमानत तक ही सीमित था.
नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में शराबबंदी कानून के करीब 40 आरोपियों को जमानत देने के खिलाफ बिहार सरकार की अर्जी पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया है. CJI एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने राज्य सरकार द्वारा 11 जनवरी के आदेश को स्पष्ट करने की अर्जी को खारिज कर दिया. अदालत ने बिहार निषेध और उत्पाद शुल्क अधिनियम, 2016 के तहत दर्ज लगभग 40 आरोपियों को जमानत की पुष्टि की थी. पीठ ने कहा कि हम अपने आदेश को वापस लेने या संशोधित करने नहीं जा रहे हैं. आरोपी को दो साल से अधिक समय पहले जमानत दे दी गई थी और अब आप चाहते हैं कि हम हस्तक्षेप करें. हम राज्य सरकार द्वारा किसी भी याचिका पर विचार करने के इच्छुक नहीं हैं.

दरअसल बिहार सरकार की ओर से वरिष्ठ वकील रंजीत कुमार ने कहा था कि 11 जनवरी के आदेश का निषेध कानून के तहत अन्य अभियुक्तों द्वारा हवाला दिया जा सकता है और यह अधिनियम की कठोरता को कम कर सकता है. अधिनियम की धारा 76 के तहत अग्रिम जमानत का कोई प्रावधान नहीं है. हम केवल यह चाहते हैं कि यह अदालत यह कहे कि अधिनियम की धारा 76 पर कोई फैसला नहीं किया गया है, लेकिन बेंच ने कहा कि हमारा आदेश पढ़ें हमने क्या कहा? 

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हमने कहा कि इनमें से ज्यादातर आरोपियों को तीन-चार साल पहले जमानत मिल गई थी और इसलिए अब उन्हें वापस जेल भेजने का कोई आधार नहीं है. हमने यह भी कहा कि अभियोजन पक्ष को अपने मामले को साबित करने के लिए काम करना चाहिए और अगर वे दोषी हैं तो उन्हें दोषी ठहराया जाना चाहिए. हम जमानत आदेश के बारे में और कुछ नहीं कहने जा रहे हैं, साथ ही अधिनियम की संवैधानिकता किसी अन्य पीठ के समक्ष लंबित है इसलिए, हम अधिनियम पर टिप्पणी नहीं कर रहे हैं.

हमारा आदेश जमानत तक ही सीमित था. इस पर बिहार सरकार ने अर्जी वापस ले ली. दरअसल 11 जनवरी को, पीठ ने लगभग 40 आरोपियों को दी गई जमानत के खिलाफ राज्य सरकार द्वारा दायर कुछ अपीलों को खारिज कर दिया था. अदालत ने कहा था कि इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि हाईकोर्ट द्वारा आरोपियों को जमानत दिए जाने के बाद से अधिकांश मामलों में तीन/चार साल बीत चुके हैं, इसलिए हम इस स्तर पर उक्त अदालत द्वारा पारित आदेशों में हस्तक्षेप करने के इच्छुक नहीं हैं.

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आगे कहा था कि आरोपी द्वारा जमानत की शर्त के उल्लंघन की कोई विशेष शिकायत नहीं है. पीठ ने 11 जनवरी को अपने आदेश में कहा था कि कानून के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए पूरी गंभीरता से सजा दिलाने की कोशिश की जानी चाहिए.

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