राष्ट्रपति के पास पहुंचा महा विकास अघाड़ी बनाम BJP का मामला, विधानमंडल सदस्यों ने SC के दखल को रोकने की मांग की

पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट ने जहां इस निलंबन को असंवैधानिक करार करने के बाद रद्द कर दिया था, तो वहीं महाराष्ट्र विधानसभा के प्रतिनिधिमंडल ने राष्ट्रपति से मुलाकात कर विधायिका में न्यायालय के हस्तक्षेप को रोकने का आग्रह किया.

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महाराष्ट्र विधानसभा में 12 विधायकों को निलंबित करने का मामला अब राष्ट्रपति के पास पहुंच गया है. (फाइल फोटो)
मुंबई/नई दिल्ली:

महाराष्ट्र विधानसभा की ओर से बीजेपी के 12 विधायकों को निलंबित करने का मामला अब राष्ट्रपति के पास पहुंच गया है. विधान परिषद के चेयरमैन, उप सभापति ने राष्ट्रपति से मुलाकात कर विधायिका में सुप्रीम कोर्ट की दखल को रोकने की मांग की है. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मुलाकात के बाद शुक्रवार शाम महाराष्ट्र विधान परिषद के चेयरमैन रामराजे नाइक निम्बालकर, उप सभापति नीलम गोरहे और विधानसभा के डिप्टी स्पीकर नरहरि जिरवाल ने एक प्रेस कांफ्रेंस साझा कर महाराष्ट्र विधानसभा से निलंबित 12 बीजेपी विधायकों का मुद्दा उठाया.

पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट ने जहां इस निलंबन को असंवैधानिक करार करने के बाद रद्द कर दिया था, तो वहीं महाराष्ट्र विधानसभा के प्रतिनिधिमंडल ने राष्ट्रपति से मुलाकात कर विधायिका में न्यायालय के हस्तक्षेप को रोकने का आग्रह किया. इस मामले पर महाराष्ट्र विधान परिषद के उप सभापति नीलम गोरहे ने NDTV से कहा कि, "मुद्दा यही है कि कौन से हद तक विधिमंडल का जो अधिकार है, उसकी सुरक्षा करें. सुप्रीम कोर्ट के नतीजे को भी राष्ट्रपति महोदय पलट सकते हैं. हम सभी विधानसभा के अधिकारियों से कहते हैं कि यह तय करें कि हस्तक्षेप कहां तक मंजूर है."

पिछले महीने विधायकों के निलंबन फैसले को रद्द करते समय सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि, "यह निलंबन असंवैधानिक और मनमाना है. जुलाई 2021 में चल रहे मॉनसून सत्र के लिए ही यह निलंबन रह सकता था. यह फैसला लोकतंत्र के लिए खतरा और तर्कहीन है."

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बीजेपी अब महाराष्ट्र सरकार को घेरती नजर आ रही है और उनका आरोप है कि सुप्रीम कोर्ट में सरकार ने अपना पक्ष नहीं रखा. वहीं, बीजेपी विधायक आशीष शेलार ने कहा कि, "सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस देकर कहा था कि विधिमंडल इस पर अपना पक्ष कोर्ट के सामने रखे. लेकिन विधिमंडल ने कोर्ट में नहीं जाने का निर्णय लिया. विधिमंडल ने तब यह भी कहा था कि हम कोर्ट के सामने नहीं जाएंगे, इसलिये अब इनका समय चला गया."

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महाराष्ट्र सरकार के सामने एक चुनौती यह भी है कि अगर वो सुप्रीम कोर्ट के आदेश को नहीं मानते हैं, तो यह अदालत का अपमान होगा और अगर वो इसे मानते हैं, तो फिर यह विधायी प्रक्रिया में सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप होगा, इसलिए वो इस मुद्दे को लेकर अब राष्ट्रपति के पास पहुंचे हैं.

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