सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक अहम फैसला सुनाते हुए कर्नाटक के गुलबर्ग में 2006 में पिस्तौल और हेंड ग्रेनेड के साथ गिरफ्तार व्यक्ति को 15 साल से ज्यादा जेल में रहने के बाद रिहा करने के आदेश दिए हैं. सुप्रीम कोर्ट ने हालांकि आर्म्स एक्ट और अन्य एक्सप्लोसिव एक्ट की धाराओं में उसकी सजा को बरकरार रखा है. उसे ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुनाई थी. अब्दुल रहमान उर्फ बाबू उर्फ अब्दुल्ला को कर्नाटक पुलिस ने आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा का आतंकी बताया था और दावा किया था कि वो पाकिस्तान से ट्रेनिंग लेकर आया है. लेकिन ट्रायल कोर्ट ने 2010 में उसके खिलाफ लगाई गई गैर-कानूनी गतिविधि अधिनियम यानी यूएपीए की धाराओं को हटा दिया.
जांच एजेंसी ये साबित नहीं कर पाई थी कि वो लश्कर का आतंकी है. हालांकि उसे राजद्रोह, आर्म्स एक्ट और एक्सप्लोसिव एक्ट के तहत दोषी करार देकर उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी. 2016 में कर्नाटक हाईकोर्ट ने इस मामले में राजद्रोह और भारत सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने की धाराओं को भी हटा दिया. लेकिन आर्म्स एक्ट और एक्सप्लोसिव एक्ट के तहत उम्रकैद बरकरार रखी. मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और सुप्रीम कोर्ट ने सिर्फ सजा के मुद्दे पर विचार किया.
जस्टिस एल नागेश्वर रॉव, जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस बीवी नागरत्ना की बेंच ने दोषी के वकील फर्रुख रशीद के माध्यम से वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ दवे की दलीलें सुनीं. कर्नाटक सरकार का भी पक्ष सुना. अपना फैसला सुनाते हुए अदालत ने कहा कि दोषी पहले ही 15 साल से ज्यादा का समय जेल में बिता चुका है, इसलिए जेल में गुजारे इसी वक्त को सजा मान लिया जाए और अब उसे जेल से रिहा कर दिया जाए. अदालत ने हालांकि आर्म्स एक्ट और एक्सप्लोसिव एक्ट के तहत दोषी करार देने के फैसले को बरकरार रखा.