क्या समय से पहले रिहाई मांगना मौलिक अधिकार है? - बिलकिस बानो मामले पर सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने 17 अगस्त को कहा था कि राज्य सरकारों को दोषियों को छूट देने में चयनात्मक नहीं होना चाहिए और प्रत्येक कैदी को सुधार एवं समाज के साथ फिर से जुड़ने का अवसर दिया जाना चाहिए.

विज्ञापन
Read Time: 6 mins
नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो (Bilkis Bano) से सामूहिक बलात्कार और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के मामले में 11 दोषियों की समय पूर्व रिहाई को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए पूछा कि क्या दोषियों को माफी मांगने का मौलिक अधिकार है. अदालत ने पूछा कि क्या सुप्रीम कोर्ट के ऐसे फैसले नहीं हैं जिनमें पीड़ितों की अर्जी पर दोषियों की समय पूर्व रिहाई रद्द की गई है? जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ की तरफ से यह टिप्पणी की गई है. 

अदालत में इस मामले पर अगली सुनवाई चार अक्टूबर को तय की गई है. सुनवाई के दौरान दोषियों के वकील ने जब दोष सिद्धि के फैसले पर सवाल उठाए तो जस्टिस नागरत्ना ने आड़े हाथों लेते हुए कहा कि आप सही गलत नहीं कह सकते.आप पीछे जाकर दोष सिद्धि के फैसले पर सवाल नहीं उठा सकते.सही और गलत जैसे शब्दों का प्रयोग न करें.

 इसके बाद बचाव पक्ष के वकील ने कहा कि कोर्ट के फैसले के बाद मुझे सारी जिंदगी सलाखों के पीछे गुजारनी थी.लेकिन सही या गलत लेकिन नियमों के तहत ही मुझे समय पूर्व रिहाई मिली. उस पर विवाद उठाना उचित नहीं है क्योंकि ये सब मुझे नियमानुसार ही मिला. कोर्ट ने कहा कि कौन कहेगा कि आपको रिहाई नियमानुसार ही मिली? वकील ने कहा कि ये तो हाईकोर्ट ही तय करेगा.कोर्ट ने कहा लेकिन यहां हमारे पास तो पीड़ित खुद आई है.सुप्रीम कोर्ट में अब पीड़ित पक्ष अपनी दलीलें देगा.

ये भी पढ़ें-:

Featured Video Of The Day
India-Pakistan Tension: Indian Army ने बताया- पाकिस्तान के 35-40 जवान मारे गए | Operation Sindoor
Topics mentioned in this article