असम में चल रही परिसीमन प्रक्रिया का मामले में 10 विपक्षी नेता सुप्रीम कोर्ट पहुंचे हैं. असम में चल रही परिसीमन प्रक्रिया को चुनौती दी है. याचिका में चुनाव आयोग द्वारा अपनाई गई कार्यप्रणाली और 20.06.2023 को अधिसूचित उसके प्रस्तावों को चुनौती दी गई है. याचिकाकर्ता कांग्रेस, रायजोर दल, असम जातीय परिषद, सीपीआई (एम), सीपीआई, टीएमसी, एनसीपी, राजद और आंचलिक गण मोर्चा से संबंधित हैं. याचिका में चुनाव आयोग के 20.06.2023 को जारी हालिया मसौदा आदेश को चुनौती दी गई है. इसमें असम में 126 विधानसभा और 14 लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों की सीमा को फिर से समायोजित करने के हालिया प्रस्ताव किया गया है.
याचिकाकर्ताओं में लुरिनज्योति गोगोई (असम जातीय परिषद); देबब्रत सैकिया (कांग्रेस); रोकीबुल हुसैन (कांग्रेस); अखिल गोगोई (रायजोर दल); मनोरंजन तालुकदार (सीपीआई (एम)); घनकंटा चुटिया (तृणमूल कांग्रेस); मुनिन महंत (सीपीआई); दिगंता कोंवर (आंचलिक गण मोर्चा); महेंद्र भुइयां (राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी); और स्वर्ण हजारिका (राष्ट्रीय जनता दल) शामिल हैं. याचिका में विभिन्न जिलों के लिए अलग-अलग औसत विधानसभा आकार लेकर ECI द्वारा अपनाई गई पद्धति को चुनौती दी गई है और तर्क दिया गया है कि परिसीमन की प्रक्रिया में जनसंख्या घनत्व या जनसंख्याकी कोई भूमिका नहीं है. याचिका में जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा (ए) को भी चुनौती दी गई है, जिसके अनुसार चुनाव आयोग अपनी शक्ति का प्रयोग करने का दावा कर रहा है.
याचिकाकर्ताओं ने इस प्रावधान को इस आधार पर चुनौती दी है कि यह मनमाना और अपारदर्शी होने के साथ-साथ असम राज्य के लिए भी भेदभावपूर्ण है. याचिका में तर्क दिया गया है कि देश के बाकी हिस्सों के लिए परिसीमन एक सेवानिवृत्त सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक उच्चाधिकार प्राप्त निकाय द्वारा किया गया है और जम्मू-कश्मीर के लिए भी वही आयोग बनाया गया था. याचिका में कहा गया है कि 8ए असम और तीन उत्तर-पूर्वी राज्यों के साथ भेदभाव करती है, जिसके लिए चुनाव आयोग को परिसीमन करने का अधिकार निर्धारित किया गया है.