सुप्रीम कोर्ट ने बीफ ट्रांसपोर्ट के मामले में असम सरकार को फटकार लगाई है. कोर्ट ने कहा कि राज्य को इन लोगों के पीछे भागने के बजाय बेहतर काम करने चाहिए. दरअसल, गोमांस परिवहन के आरोपी व्यक्ति को कोर्ट ने राहत दी है. कोर्ट ने कहा कि आम आदमी अपनी आंखों से नहीं बता सकता कि ले जाया जा रहा मांस गोमांस है या नहीं. कोर्ट का मानना है कि आम आदमी सिर्फ देखकर विभिन्न जानवरों के कच्चे पैक किए गए मांस में अंतर नहीं कर सकता.
असम के अधिकारियों को फटकार लगाते हुए जस्टिस एएस ओक और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने कहा कि वे अपने संसाधनों और समय का उपयोग अन्य उत्पादक कार्यों में करने के बजाय मांस परिवहन में शामिल लोगों का पीछा कर रहे हैं. एक ट्रांसपोर्टर को अंतरिम राहत देते हुए पीठ ने यह टिप्पणी की, जिसपर पैक किए गए कच्चे मांस के परिवहन के लिए मामला दर्ज किया गया था.
न्यायालय ने आरोपी के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही पर रोक लगा दी और मामले को आगे के विचार के लिए 16 अप्रैल को सूचीबद्ध किया. पीठ ने कहा कि इस याचिका पर अंतिम सुनवाई की आवश्यकता है. इस उद्देश्य के लिए याचिका 16 अप्रैल को सूचीबद्ध की जाएगी. अंतरिम राहत अगले आदेश तक जारी रहेगी. अंतरिम राहत दिए जाने के मद्देनजर, हम निर्देश देते हैं कि एफआईआर के आधार पर मामला अगले आदेश तक आगे नहीं बढ़ेगा
यह तब हुआ जब आरोपी, एक गोदाम मालिक ने कोर्ट को बताया कि वह गोदाम से केवल कच्चा पैक किया हुआ मांस ले जा रहा था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आरोपी विवादित मांस की पैकिंग या निर्माण में शामिल नहीं था.
हालांकि, असम सरकार ने कहा कि आरोपी इसे बेच रहा था. लेकिन कोर्ट ने प्रथम दृष्टया कहा कि असम मवेशी संरक्षण अधिनियम की धारा 8 के तहत यह अपराध नहीं बनता है. धारा 8 सक्षम प्राधिकारी की अनुमति के बिना गोमांस बेचने पर रोक लगाती है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रावधान तभी लागू होगा जब आरोपी को पता हो कि बेचा जा रहा मांस गोमांस है और प्रावधान में "ज्ञान" पहलू को पढ़ा जाना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की कि विक्रेता की ओर से यह ज्ञान स्थापित करना होगा कि वह जो मांस बेच रहा है वह गोमांस है, तभी धारा 8 के तहत अपराध बनता है.